विदेशी जमीं पर भी बच्चों को पढ़ा रहे देश की रीति
देश की माटी से दूर रहने वाले भारतीय अपने बच्चों को देश की संस्कृति और सभ्यता से जोड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं।
मेरठ, जेएनएन। देश की माटी से दूर रहने वाले भारतीय अपने बच्चों को देश की संस्कृति और सभ्यता से जोड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं। हर साल घर लौटने पर बच्चों के लिए अमर चित्र कथा, जातक कथाएं, पंचतंत्र की कहानियां आदि का संग्रह ले जाते हैं। इन किताबों में धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और कॉमिक्स भी हैं। पूरे साल बच्चों को यह किताबें पढ़ने को मिलती हैं। यह सिलसिला हर साल इसी क्रम में चलता है जिससे विदेशी शिक्षण पद्धति और समाज में रहने के बाद भी बच्चे अपने देश की मिट्टी और सामाजिक संस्कारों से जुड़े रहें। जड़ों से जुड़े रहने की कवायद
भव्य भारतीय विरासत की पहली झलक देश की नई पीढ़ी को दिखाने और पढ़ाने के उद्देश्य से ही अमर चित्र कथा की ओर से कहानियों का संग्रह शुरू किया गया। बड़े होने पर लोग अपने व्यक्तित्व के विकास में उन्हीं सचित्र कहानियों की छाप को देखते भी हैं। वर्ष 1967 में शुरू हुआ कहानियों का सिलसिला अब चार से अधिक किताबों में तब्दील हो चुका है। इनमें महाकाव्यों और पुराणों की सर्वश्रेष्ठ कहानियां, भारतीय साहित्य की मनमोहक कहानियां, सदाबहार लोक कथाएं, दंत कथाएं एवं विवेक और हास्य की कथाएं, वीर पुरुषों व महिलाओं की मन छूने वाली कथाएं, विचारकों, समाज सुधारकों व राष्ट्र निर्माताओं की प्रेरक कहानियां, समकालीन साहित्य आदि से संबंधित कहानियां शामिल हैं।
दो महीने बिकती हैं सर्वाधिक किताबें
आबू लेन स्थित बुक स्टोर के संचालक तुषार नागिया के अनुसार विदेशों में ठंड के समय छुट्टियां रहती हैं और हमारे यहां शादियों का सीजन भी होता है। इस दौरान विदेशों में रहने वाले एनआरआइ मेरठ आते हैं। पूरे साल में नवंबर-दिसंबर में धर्म, संस्कृति और महापुरुषों की कहानियों की किताबें सबसे अधिक बिकती हैं। एक-एक परिवार 10 से 20 किताबें ले जाते हैं। ज्यादातर किताबें वह अंग्रेजी में ही ले जाते हैं, जिसे बच्चे पढ़ते हैं। यह अनुभव मेरे पिता का भी रहा और मैंने भी पिछले कई सालों में यह अनुभव किया है।
यहां लोग कम लेते हैं
तुषार के अनुसार भारतीय संस्कृति, भगवान से जुड़ी कहानियों की किताबें स्थानीय पाठक कम खरीदते हैं। अधिकतर विदेशों में रहने वाले लोग यहां आने पर किताबें ले जाते हैं। अमर चित्र कथा की किताबें देशभर में एक हजार से अधिक दुकानों के साथ ही ऑनलाइन भी भेजी जाती हैं। शादियां शुरू हो चुकी हैं। बाहर के जो लोग भी मेरठ आए होंगे, वह लौटने से पहले किताबें लेकर जाते हैं।