वह आश्रम.. जहां विदुर संग हुई थी नीति चर्चा Meerut News
हस्तिनापुर में स्थित एक आश्रम है जो विदुर का आश्रम कहा जाता है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ठहरे हुए थे और विदुर के घर की साग भी खाई थी।
मेरठ, जेएनएन। हम सबने दो शब्दों को खूब सुना है। ‘साग विदुर घर खायो’ और ‘विदुर नीति’। तो हम जिन विदुर के बारे में यह सुनते आए हैं उन विदुर का आश्रम यहीं हस्तिनापुर में है। यहीं पर श्रीकृष्ण ठहरे थे। साग खाया था। साग से याद आया कि अपने क्षेत्र में साग बहुत खाया जाता है तो क्या पता कि महाभारत के समय से ही इस क्षेत्र में साग हमारी थाली का अनिवार्य व्यंजन रहा हो। यही वह आश्रम है जहां श्रीकृष्ण ने विदुर से भविष्य के संभावित युद्ध को देखते हुए नीति पर चर्चा की थी। श्रीकृष्ण यहां इसलिए आए थे क्योंकि वह आपसी लड़ाई टालने के लिए कौरवों व पांडवों को समझा सकें। रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी में इसका जिक्र भी है..
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आए,
पांडव का संदेशा लाए..
..तो समय निकालिए और एक बार इस आश्रम को भी देख आइए। यहां आपको जो भी दिखाई देगा उससे आपका अनुभव बदल जाएगा। मेरठ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर हस्तिनापुर पहुंचने पर हमें जैन तीर्थ यानी जंबू तीर्थ से पहले ही दाएं मुड़ना होगा। कुछ दूर आगे बढ़ने पर दाईं तरफ पांडव टीला व उल्टा खेड़ा टीला मिलेगा। उस रास्ते पर प्रवेश करने पर यहां से सीधे उल्टा खेड़ा टीला के बराबर से गुजरने वाली सड़क पर बढ़ जाएं। रास्ता सीधे पांडवेश्वर मंदिर जाता है। पांडवेश्वर मंदिर के अंदर दर्शन करना चाहें तो जाएं वरना बाहर से ही शीश झुकाकर भोले का आशीर्वाद लें और वहीं से मंदिर के बाईं तरफ पीछे की ओर पक्का रास्ता जाता है। मंदिर के पास से लगता है कि रास्ता किसी जंगल का है और ऊंचाई पर जा रहा है। जी हां, सही सोच रहे हैं। यही रास्ता विदुर आश्रम की ओर जा रहा है। आश्रम ऊंचे टीले पर है, इसलिए अगर वाहन से हैं तो कुछ मीटर की ऊंचाई चढ़ने के लिए तैयार रहें। या फिर चाहें तो मंदिर के पास ही वाहन खड़ा करके पैदल भी जा सकते हैं। वैसे तो रास्ता जंगल की ओर जाता हुआ दिखाई देता है पर डरने की जरूरत नहीं है। वह प्राकृतिक नजारा है जिसकी तरफ आपका कैमरा बिना क्लिक हुए रह ही नहीं सकता। ऊंचाई पर जाती हुई यह सड़क दो तरफ ले जाती है। बाईं तरफ वाली ऊंचाई पर बढ़ेंगे तो विदुर आश्रम पहुंचेंगे। अगर दाईं तरफ वाली ऊंचाई पर बढ़ेंगे तो रास्ता जंगल की ओर जाता है, लेकिन वहां भी भगवान शिव की मूर्ति विराजमान है।
पौराणिक समय में गंगा किनारे इस आश्रम की वैभवता देखते ही बनती होगी। खैर बात करते हैं विदुर आश्रम की। यहां पर कुछ साधु भक्ति में लीन दिखाई देगे। ठीक वहीं बना था विदुर आश्रम। आश्रम में पहुंचने पर कुछ मठ नुमा मंदिर भी दिखाई देंगे। इसके बारे में जानना भी दिलचस्प है। ये मुगल काल के हैं। इस मठ में भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग विराजमान है। इन मठों से कुछ कदमों की दूरी पर मां भगवती का मंदिर है। जहां पर विराजित मां भगवती की प्राचीन मूर्ति के दर्शन होते है। मां भगवती की मूर्ति के साथ- साथ भगवान गणोश व शेरावाली माता की भी प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं।
आश्रम परिसर की गुफा जताती है जिज्ञासा
आश्रम परिसर में एक गुफा भी है। मां भगवती के मंदिर से नीचे की ओर उतरकर इस गुफा को देख सकते हैं। बताया जाता है कि इस स्थान पर प्राचीन समय में महंत आनंद गिरि महाराज ने तपस्या की थी। वर्तमान में मंदिर के गो¨वद गिरि महाराज ने बताया कि आनंद गिरि महाराज ने ही 1837 में मंदिर की प्रतिष्ठा की थी। उस समय दो मठों का जीर्णोद्धार कराया था।