बीस लाख की आबादी पर कुत्तों और बंदरों का खौफ, हररोज 80 से ज्यादा बन रहे शिकार Meerut News
बीस लाख की आबादी वाले शहर में आवारा कुत्तों और बंदरों का खौफ बढ़ता ही जा रहा है। हालात ऐसे हो गए हैं कि हररोज 80 से ज्यादा लोग इनका शिकार बन जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं।
By Ashu SinghEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 02:28 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 03:00 PM (IST)
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। मेरठ और आसपास के जिलों में कई बच्चे आवारा कुत्तों का निवाला बन चुके हैं। हाल ही में सहारनपुर में तीन माह के बच्चे को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला। यह सनसनीखेज खबर अगले दिन मीडिया की सुर्खियां बन गई। मेरठ के लोग भी इस खबर से सहम गए। लेकिन अफसोस, शासन-प्रशासन बेखबर है। आवारा आतंक पर लगाम लगाने इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार जनवरी को आदेश भी दिया था, लेकिन आदेश के पालन में नगर निगम प्रशासन की लेटलतीफी का खामियाजा जनता भुगत रही है।
घर या बाहर कहीं भी महफूज नहीं
हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रतिदिन 80 से ज्यादा लोग इनका शिकार बन पीएल शर्मा जिला अस्पताल रैबीज इंजेक्शन लगाने पहुंच रहे हैं। इस घटना से मेरठ के लोग भी सहम गए हैं। बढ़ते आवारा कुत्तों और बंदरों के आतंक से बच्चे, बुजुर्ग सहित कोई भी घर के अंदर या बाहर कहीं भी महफूज नहीं है। शहर में इनसे एक अलग दहशत पैदा हो गई है।
अभी तक टेंडर ही कर सका निगम
हाईकोर्ट ने चार जनवरी को आदेश दिया था कि शहर से आवारा कुत्तों को नसबंदी और एंटी रैबीज वैक्सीनेशन कर आबादी से बाहर एक स्थान पर रखने की व्यवस्था की जाए। बंदरों के लिए भी यही आदेश हुआ था। छह माह बीत चुके हैं, लेकिन नगर निगम ने कुछ दिन पहले आवारा कुत्तों की नसबंदी और एंटीरैबीज वैक्सीनेशन के लिए टेंडर निकाला है, जबकि बंदरों के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वहीं,आवारा कुत्तों को शहर से बाहर एक स्थान पर कांजी हाउस बनाकर उन्हें रखने की दिशा में नगर निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की है।
नसबंदी से नहीं जाएगी आक्रामकता
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.गजेंद्र सिंह का कहना है कि नसबंदी और एंटीरैबीज वैक्सीनेशन से केवल इतना फायदा होगा कि आवारा कुत्तों की संख्या पर लगाम लग जाएगी। किसी को काटेंगे तो रैबीज का असर कम हो जाएगा, लेकिन उनकी आक्रामकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
स्थायी समाधान तो करना ही होगा
शहर की 20 लाख आबादी के लिए आवारा कुत्ते और बंदर आफत बने हुए हैं। इनका स्थायी समाधान तो करना ही पड़ेगा। एनिमल केयर सोसायटी के अंशुमाली वशिष्ठ बताते हैं कि पशु क्रूरता अधिनियम के अनुसार आवारा कुत्तों या बंदरों को जहां से पकड़ना है वहीं पर नसबंदी और एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाकर फिर छोड़ना है। नसबंदी से इनकी आबादी पर लगाम लगाना ही स्थायी समाधान है। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
26 दिन में 539 लोगों को बनाया निशाना
पीएल शर्मा जिला अस्पताल के आंकड़े आवारा कुत्तों के आतंक को बयां कर रहे हैं। महज 26 दिन में 539 लोगों को आवारा कुत्तों ने निशाना बनाया है। वहीं, प्राइवेट अस्पतालों के आंकड़े भी मिला दिए जाएं तो स्थिति बहुत ही भयावह है।
इन क्षेत्रों में है बंदरों का आतंक
पत्थरवालान, बुढ़ाना गेट, सुभाष बाजार, सरायलाल, ठठेरपाड़ा, स्वामी पाड़ा, कानून गोयान, थापर नगर, सोती गंज, फूलबाग कालोनी, तिलक रोड, मानसरोवर, साकेत, शर्मा नगर, जवाहर क्र्वाटर, खैरनगर, लाल का बाजार, शहर सर्राफा, गंगानगर, राधा गार्डन, मीनाक्षीपुरम, कसेरू बक्सर, शताब्दी नगर, माधवपुरम, टीपी नगर, गुरुनानक नगर, ब्रह्मपुरी, भगवतपुरा, मलियाना, शास्त्रीनगर, जाग्रति विहार, सोफीपुर, शाइन सिटी, पल्लवपुरम, कंकरखेड़ा, शिवलोकपुरी आदि मोहल्लों में बंदरों का आतंक इतना अधिक है कि लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए घरों को लोहे के पिंजड़ों से ढकवाने का कार्य कर रहे हैं। नगर निगम बंदरों को पकड़कर शहर से बाहर करने की कोई योजना नहीं बना सका है। हालात ये हैं कि लोग घरों को लाखों रुपये खर्च कर लोहे के पिंजड़े से ढकने को मजबूर हैं।
घर या बाहर कहीं भी महफूज नहीं
हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रतिदिन 80 से ज्यादा लोग इनका शिकार बन पीएल शर्मा जिला अस्पताल रैबीज इंजेक्शन लगाने पहुंच रहे हैं। इस घटना से मेरठ के लोग भी सहम गए हैं। बढ़ते आवारा कुत्तों और बंदरों के आतंक से बच्चे, बुजुर्ग सहित कोई भी घर के अंदर या बाहर कहीं भी महफूज नहीं है। शहर में इनसे एक अलग दहशत पैदा हो गई है।
अभी तक टेंडर ही कर सका निगम
हाईकोर्ट ने चार जनवरी को आदेश दिया था कि शहर से आवारा कुत्तों को नसबंदी और एंटी रैबीज वैक्सीनेशन कर आबादी से बाहर एक स्थान पर रखने की व्यवस्था की जाए। बंदरों के लिए भी यही आदेश हुआ था। छह माह बीत चुके हैं, लेकिन नगर निगम ने कुछ दिन पहले आवारा कुत्तों की नसबंदी और एंटीरैबीज वैक्सीनेशन के लिए टेंडर निकाला है, जबकि बंदरों के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वहीं,आवारा कुत्तों को शहर से बाहर एक स्थान पर कांजी हाउस बनाकर उन्हें रखने की दिशा में नगर निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की है।
नसबंदी से नहीं जाएगी आक्रामकता
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.गजेंद्र सिंह का कहना है कि नसबंदी और एंटीरैबीज वैक्सीनेशन से केवल इतना फायदा होगा कि आवारा कुत्तों की संख्या पर लगाम लग जाएगी। किसी को काटेंगे तो रैबीज का असर कम हो जाएगा, लेकिन उनकी आक्रामकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
स्थायी समाधान तो करना ही होगा
शहर की 20 लाख आबादी के लिए आवारा कुत्ते और बंदर आफत बने हुए हैं। इनका स्थायी समाधान तो करना ही पड़ेगा। एनिमल केयर सोसायटी के अंशुमाली वशिष्ठ बताते हैं कि पशु क्रूरता अधिनियम के अनुसार आवारा कुत्तों या बंदरों को जहां से पकड़ना है वहीं पर नसबंदी और एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाकर फिर छोड़ना है। नसबंदी से इनकी आबादी पर लगाम लगाना ही स्थायी समाधान है। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
26 दिन में 539 लोगों को बनाया निशाना
पीएल शर्मा जिला अस्पताल के आंकड़े आवारा कुत्तों के आतंक को बयां कर रहे हैं। महज 26 दिन में 539 लोगों को आवारा कुत्तों ने निशाना बनाया है। वहीं, प्राइवेट अस्पतालों के आंकड़े भी मिला दिए जाएं तो स्थिति बहुत ही भयावह है।
इन क्षेत्रों में है बंदरों का आतंक
पत्थरवालान, बुढ़ाना गेट, सुभाष बाजार, सरायलाल, ठठेरपाड़ा, स्वामी पाड़ा, कानून गोयान, थापर नगर, सोती गंज, फूलबाग कालोनी, तिलक रोड, मानसरोवर, साकेत, शर्मा नगर, जवाहर क्र्वाटर, खैरनगर, लाल का बाजार, शहर सर्राफा, गंगानगर, राधा गार्डन, मीनाक्षीपुरम, कसेरू बक्सर, शताब्दी नगर, माधवपुरम, टीपी नगर, गुरुनानक नगर, ब्रह्मपुरी, भगवतपुरा, मलियाना, शास्त्रीनगर, जाग्रति विहार, सोफीपुर, शाइन सिटी, पल्लवपुरम, कंकरखेड़ा, शिवलोकपुरी आदि मोहल्लों में बंदरों का आतंक इतना अधिक है कि लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए घरों को लोहे के पिंजड़ों से ढकवाने का कार्य कर रहे हैं। नगर निगम बंदरों को पकड़कर शहर से बाहर करने की कोई योजना नहीं बना सका है। हालात ये हैं कि लोग घरों को लाखों रुपये खर्च कर लोहे के पिंजड़े से ढकने को मजबूर हैं।
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