जोश व जज्बे से भरी है मेरठ के शूटर शार्दुल की कहानी, एशियन गेम्स से देश भर में मिली थी पहचान
मेरठ (Meerut) के शूटर शार्दुल की कहानी कठिनाई जोश और जज्बे से भरी हुई है। एशियन गेम्स में रजत पदक जीतने के बाद इनकों पहचलान मिली थी। इनकी तारीफ खेल मंत्री से लेकर ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले अभिनव ब्रिंद्रा ने भी की है।
[अमित तिवारी] मेरठ। ऊंची मंजिल तक पहुंचकर सफलता के झंडे गाड़ने के लिए कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। और अक्सर ऐसे रास्ते हर पल धैर्य, आत्मविश्वास और लगन की परीक्षा सबसे पहले लेते हैं। अगस्त 2018 में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता और पालमबांग में आयोजित एशियाई खेलों में भारतीय निशानेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया था। उन्हीं अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजों में 15 साल के शार्दुल विहान ने भी डबल ट्रैप शूटिंग में रजत पदक अपने नाम किया था। एशियन गेम्स में रजत पदक जीतकर पूरे देश में छा जाने वाले शार्दुल विहान का सफर भी तमाम कठिन रास्तों से होकर ही गुजरा है। पदक जीतने के लिए उन्होंने पग पग पर अपने धैर्य की परीक्षा दी है। कभी विचलित नहीं हुए। उनकी सफलता को चार चांद उस समय भी लग गए जब एशियाई गेम्स में रजत पदक जीतने पर शार्दुल विहान की तारीफ पूर्व ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा और पूर्व ओलंपिक सिल्वर मेडलिस्ट और तत्कालीन खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने भी की। मेरठ के मोदीपुरम कंकरखेड़ा क्षेत्र के रहने वाले शार्दुल विहान ने शूटिंग में कई सितारे अपने नाम किए हैं।
हर दिन तय किया 240 किलोमीटर का सफर
शूटिंग के प्रशिक्षण के लिए शार्दुल विहान सालों साल हर दिन मेरठ से दिल्ली और दिल्ली से फिर मेरठ का सफर तय करते रहे हैं। दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित डॉक्टर कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में पहुंचने और वहां से वापस घर पहुंचने में करीब 240 से 245 किलोमीटर का सफर शार्दुल को हर दिन तय करना पड़ता है। शार्दुल हर दिन सुबह 4:00 बजे उठते हैं और उसके बाद अपने चाचा धर्मेंद्र शर्मा के साथ उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। वह यहां से दिल्ली जाते। वहां दिनभर शूटिंग करते और शाम को लौट कर वापस मेरठ पहुंचते। एशियन गेम्स में पदक जीत पाना उनके साथ उनके चाचा, उनके ड्राइवर, उनके पिता दीपक विहान आदि के लिए बेहद गौरव बड़ा क्षण था। शूटिंग रेंज पर समय से पहुंचे, इसलिए शार्दुल विहान नाश्ता भी कार में ही किया करते। इन तमाम परिस्थितियों से आगे बढ़ते हुए उन्होंने निशानेबाजी में देश का नाम ऊंचा करने के साथ ही मेरठ का नाम ऊंचा किया है। शार्दुल के कोच अर्जुन अवॉर्डी और पूर्व ओलंपियन ट्रैप शूटर अनवर सुल्तान ने छोटी उम्र में ही शार्दुल के हुनर को पहचान लिया था। लेकिन उसे तराशने के लिए और राष्ट्रीय फलक तक पहुंचाने के लिए उन्हें शार्दुल के 12 साल का होने का इंतजार करना पड़ा।
शार्दुल ने 9 साल की आयु में ही शूटिंग शुरू कर दी थी
शार्दूल ने पहले क्रिकेट खेला। फिर बैडमिंटन खेलने लगे। जब इन दोनों खेलों में मन नहीं रमा तो शूटिंग शुरू की। छोटी उम्र में खेल के प्रति रुझान देख परिवार के लोगों ने भी प्रोत्साहित किया। लेकिन जब शूटिंग में आगे बढ़े तो सार्दुल का ध्यान इस खेल पर ठीक उसी तरह टिक गया जिस तरह शूटिंग में निशाना साधते समय लक्ष्य पर निगाहें टीका कर रखनी पड़ती है। फिर क्या था, नौ साल की आयु में ही शूटिंग शुरू हुई और शार्दुल ने अपने निशानेबाजी को धार देना भी शुरू कर दिया। 10 साल की उम्र में ही शार्दुल ने नॉर्थ जोन में रजत पदक भी जीत लिया था। 32वें नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर पदक जीता तो नियमों का हवाला देते हुए उन पर तीन साल का प्रतिबंध लगा दिया गया, क्योंकि हथियार 12 साल की उम्र के पहले कोई नहीं रह सकता। शार्दुल ने भी तीन साल का इंतजार किया और उसके बाद निशानेबाजी की कड़ी ट्रेनिंग शुरू कर दिया। एशियन गेम्स के पहले ही वह जूनियर व सीनियर नेशनल में एक साथ स्वर्ण पदक जीता था। नेशनल प्रतियोगिताओं में 4 पदक जीत चुके थे और निशानेबाजों में अपना नाम मजबूती से दर्ज करा दिया था।
पूरी तैयारी के साथ की निशानेबाजी में वापसी
2012 में करीब तीन साल का प्रतिबंध पूरा होने के बाद साल 2015 में जब शार्दुल विहान ने फिर से गन उठाई तो उन्हें निशाना साधने में अधिक समय नहीं लगा। अपने प्रदर्शन को बरकरार रखते हुए सन 2015 में फिर से प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। उसके बाद से उन्हें जिस भी अंतरराष्ट्रीय मैच में खेलने का मौका मिला उसमें पदक लेकर ही लौटे। एशियन गेम्स तक शार्दुल ने 5 अंतरराष्ट्रीय पदक जीते जिनमें 3 स्वर्ण व दो कांस्य पदक थे। राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने लगातार स्वर्ण पदक जीते। अपने प्रदर्शन से सभी को चौकाते रहे। महज 15 साल की आयु में ही पुरुषों की डबल ट्रैप में हिस्सा लेकर निशानेबाजों में अपना अमिट छाप छोड़ दिया।
अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी किया देश का नाम रोशन
शार्दुल विहान ने साल 2015 में ही जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में लोनाटो में हिस्सा लिया था। इसमें उनका स्कोर 125 रहा और वह चैंपियनशिप में 11वें स्थान पर रहे। साल 2017 में मास्को में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप हुई जिसमें बेहतरीन प्रदर्शन के साथ छठे स्थान पर रहे। इसी तरह साल 2017 में आईएसएसएफ की जूनियर वर्ल्ड कप परपेत्तो में आयोजित हुई जिसमें शार्दुल में 121 का स्कोर किया और दसवें स्थान पर रहे। साल 2018 में चांगवोन में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में डबल ट्रैप मेन में 15वें स्थान पर रहे। साल 2018 में जकार्ता के एशियन गेम्स में रजत पदक जीता। इसके अलावा साल 2017 में मॉस्को के डबल ट्रैप जूनियर वर्ल्ड शॉट गन चैंपियनशिप में टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीता था। साल 2018 के चांगवोन में भी डबल ट्रैप सीनियर में टीम इवेंट में कांस्य पदक जीत चुके हैं।