प्रकाश प्रदूषण घटा तो दिखने लगे तारे
लॉकडाउन के चलते मेरठ की हवा शुद्ध हो गई है। पहले जो दृश्यता तीन से पांच किलोमीटर थी वह अब बढ़कर 10 किलोमीटर तक हो गई है। पर्यावरण तो इस दौरान साफ हुआ है लेकिन प्रकाश का प्रदूषण बढ़ा है। इसकी वजह से अब खुले आसमान में तारे कम नजर आ रहे हैं। हालांकि रविवार को दीपक जलाने के क्रम में जब शहर की रोशनी बंद हुई तो उस समय अधिक तारे नजर आए। यह कहना है जिला विज्ञान समन्वयक दीपक शर्मा का।
मेरठ, जेएनएन। लॉकडाउन के चलते मेरठ की हवा शुद्ध हो गई है। पहले जो दृश्यता तीन से पांच किलोमीटर थी, वह अब बढ़कर 10 किलोमीटर तक हो गई है। पर्यावरण तो इस दौरान साफ हुआ है, लेकिन प्रकाश का प्रदूषण बढ़ा है। इसकी वजह से अब खुले आसमान में तारे कम नजर आ रहे हैं। हालांकि रविवार को दीपक जलाने के क्रम में जब शहर की रोशनी बंद हुई तो उस समय अधिक तारे नजर आए। यह कहना है जिला विज्ञान समन्वयक दीपक शर्मा का।
रविवार को शहर की कृत्रिम रोशनी को बंद करने के बाद जो दीप जलाए गए, उसमें प्रकाश का स्तर 1.9 दिखा। मार्च की तुलना में आसमान में अधिक तारे दिखाई दिए। विज्ञान समन्वयक दीपक शर्मा ने बताया कि दस साल पहले वर्ष 2009 में प्रगति विज्ञान संस्था ने डार्क स्काई कार्यक्रम के तहत मेरठ जिले में 15 स्थानों पर तारों की गणना की थी। जिसमें प्रकाश प्रदूषण का भी पता चला था। उस समय जो गणना हुई थी, उसमें सबसे अधिक प्रकाश का स्तर 0.5 और सबसे कम 2.4 आया था। इसका औसत उस समय 1.4 आया था। 28 मार्च, 2020 को जब लॉकडाउन में तारों की गणना का प्रयोग किया गया, तो प्रकाश प्रदूषण का स्तर बढ़कर 0.7 हो गया। यानी दस साल पहले की तुलना में तारे आधे ही दिखाई दिए। रविवार पांच अप्रैल को संस्था की टीम ने तारों की गणना की। रात आठ बजे जब शहर की लाइट जल रही थी, उस समय प्रकाश का स्तर 1.1 मिला, जो 0.7 की तुलना में बेहतर था। लाइट बुझने के बाद प्रकाश का स्तर 1.9 हो गया। यह है आदर्श स्थिति
कृत्रिम रोशनी अधिक जलती है तो यह प्रकाश प्रदूषण का कारण बनता है। तारों की गणना करते हुए अगर तारों का सूचकांक 3.8 आता है, तो यह आदर्श स्थिति मानी जाती है, लेकिन इतने तारे वहां दिखाई देते हैं, जहां 10 किलोमीटर के क्षेत्रफल में कोई रोशनी न जलती हो।