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Special On Father's Day: मिलिए मेरठ के इन सपूतों से, जिन्‍होंने कोरोनाकाल में सेवा करके पिता को दिया नया जीवन

यह एक अच्‍छी सीख है। मेरठ में कोविड की दूसरी लहर में बहुत से बच्चों ने संक्रमित पिता की न सिर्फ देखभाल की बल्कि दिन रात एक करके उन्हें महामारी के प्रकोप से बचा लिया। उनके प्रयासों से आज उनके पिता स्वस्थ होकर उनके बीच हैं।

By Prem Dutt BhattEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 10:00 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 10:00 AM (IST)
Special On Father's Day: मिलिए मेरठ के इन सपूतों से, जिन्‍होंने कोरोनाकाल में सेवा करके पिता को दिया नया जीवन
मेरठ में कोरोनाकाल के दौरान बेटों ने अपने पिताओं की खूब सेवा कर कर्तव्‍य निभाया।

मेरठ, जेएनएन। Father's Day कभी कंधे पे बैठाकर मेला दिखाता है पिता, तो कभी पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता, तो कभी न भूल पाऊंगा वो कहानी है पिता... पिता बच्चों के लिए उस छत की तरह हैं, जिसकी छांव में बच्चे खुद को महफूज महसूस करते हैं। पिता बच्चों की देखभाल और परवरिश कर उनका भविष्य संवारते हैं। वहीं, कोविड की दूसरी लहर में बहुत से बच्चों ने संक्रमित पिता की न सिर्फ देखभाल की बल्कि दिन रात एक करके उन्हें महामारी के प्रकोप से बचा लिया। उनके प्रयासों से आज उनके पिता स्वस्थ होकर उनके बीच हैं।

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दोनों स्वस्थ

बच्चे तो हमेशा बच्चे ही होते हैं साकेत निवासी गोपी चंद शर्मा के पिता रामगोपाल शर्मा की उम्र 88 साल है। वह 11 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हो गए और उनका इलाज घर में आयुर्वेदिक पद्धति से किया गया। गोपी चंद बताते हैं कि माता पिता एक साथ कोरोना संक्रमित थे। 12 दिन तक देखभाल करने के बाद दोनों स्वस्थ हैं, और हमारे बीच हैं। बच्चे चाहे कितने भी बड़े हो जाएं लेकिन पिता के साथ की उन्हें हमेशा जरूरत होती है।

पिता के आशीष से बड़ा कुछ नहीं होता

मयूर विहार निवासी अनुभव अग्रवाल के पिता विजय अग्रवाल की उम्र 62 साल है। जो 29 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए। अनुभव कहते हैं अस्पताल में एक दिन रखने के बाद हम उन्हें घर ले आए और उनका इलाज और देखभाल की। वह मुश्किल दिन थे, लेकिन सही देखभाल से वह स्वस्थ हो गए। पिता के आशीष से बड़ा बच्चों के लिए कुछ भी नहीं होता है।

नौकरी के साथ जरूरी थी सेवा

हनुमान चौक निवासी विशाल अग्रवाल साफ्टवेयर इंजीनियर हैं, काफी समय से वह घर से ही अपना काम कर रहे हैं। पिता ब्रजमोहन अग्रवाल का कुछ साल पहले एक्सीडेंट हो गया था, और वह चलने में असमर्थ हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमित होने पर उन्हें अधिक देखभाल की जरूरत थी। विशाल ने घर पर आफिस का काम करते हुए पिता की देखभाल की। विशाल का कहना है कि उस समय पिता को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी नौकरी से बड़ी थी।

ऐसे हुई फादर्स डे की शुरुआत

साल 1909 में एक अमेरिकी लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड ने पिता के सम्मान के लिए एक विचार का प्रस्ताव रखा। कई स्थानीय पादरियों ने इस विचार को स्वीकार किया, और 19 जून 1910 को सोनोरा स्मार्ट डोड द्वारा वाशिंगटन में पहला बार फादर्स डे मनाया गया। 1930 में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद डोड ने राष्ट्रीय स्तर पर उत्सव को बढ़ावा देना शुरू किया। इसके बाद एक मई 1972 को राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने फादर्स डे पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया। तभी से जून माह के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है।


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