पछुआ हवा : कोरोना का दमघोंटू दौर बना अभिशाप, रिक्शा में मरीज और सिलेंडर में सांस Meerut News
Special Column कोरोना का दमघोंटू दौर अभिशाप बनकर सामने खड़ा है। अस्पतालों की नब्ज धीरे-धीरे बैठ रही है। जिला अस्पताल में एक दृश्य ने सबको हैरान कर दिया।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। Special Column कोरोना का दमघोंटू दौर अभिशाप बनकर सामने खड़ा है। अस्पतालों की नब्ज धीरे-धीरे बैठ रही है। जिला अस्पताल में एक दृश्य ने सबको हैरान कर दिया। एक महिला कोरोना की जांच कराने के लिए ई-रिक्शा में आक्सीजन का सिलेंडर लेकर पहुंची। महिला की सांस फूल रही थी। वो लगातार दूसरे दिन पहुंची थी। अस्पताल प्रशासन ने इस मरीज को ऐसे देखा, जैसे कैंपस में कोई नुक्कड़ नाटक का सेट लगाया जा रहा है। डाक्टरों ने कौतूहल में मरीज की केस हिस्ट्री स्टाफ से पता कर लिया, किंतु पास नहीं गए। इसे महामारी का साइड इफेक्ट बताया। आक्सीजन सिलेंडर लेकर गई मरीज चर्चा में आ गई, किंतु उसकी जांच नहीं हुई। यह कोरोना संक्रमण से ज्यादा खतरनाक है। मेडिकल कालेज में भी लंबे इंतजार की वजह से सांस फूलने वाले कई मरीजों की मौत हो गई। समझ लीजिए, अपनी सांस अब अपने हाथ।
अपनी सरकार में ही कार्यकर्ता बेकरार
भाजपाइयों के तेवर ढीले होने के साथ-साथ बिखरे-बिखरे भी हैं। सपा की सरकार में भाजपाइयों ने विपक्ष के हर किरदार को जमकर निभाया। धरना प्रदर्शन और वंचितों को न्याय दिलाने के सियासी हथकंडों में महारत हासिल थी। किंतु केंद्र और राज्य में अपनी सरकार आने पर उनका तेवर किसी काम का नहीं रहा। बाजार में निकल जाएं तो पुलिस नहीं सुनती। विभागों में पहुंच जाएं तो अधिकारी तवज्जो नहीं देते। संगठन में जाएं तो वहां पार्टी में आए नए चेहरों का कद बड़ा हो चुका है। जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाएं तो उन पर पार्टी के सिद्धांतों का सुदर्शन चक्र छोड़ दिया जाता है। सियासी गुरुकुल जाएं तो मौन साधने का व्रत दिला दिया जाता है। लखनऊ पहुंच जाएं तो खामोश रहने की लोकतांत्रिक सलाह दी जाती है। पार्टी के नींव के पत्थरों की कोई सुन ले तो अच्छा। उनका तेवर अब दर्द बन गया है।
बड़ी दुआ के बाद मिली दवा
कोरोना संक्रमण की दवा खोजने के लिए शोध की सुरंग में भटक रहे विज्ञान ने राहत की सांस ली है। एलोपैथी की दुनिया में अंधेरा छाने के बाद आयुर्वेद ने दर्जनों नई दवाओं को इलाज में कारगर बताते हुए अतीत में लौटने का मंत्र भी दिया। होमियोपैथ, यूनानी, नेचुरोपैथी और बीज मंत्रों से उपचार की उम्मीदों को नई ताकत मिली। कई वनस्पतियों के नए गुणधर्म पता किए गए। किंतु बाजार की नजरें वैक्सीन और एंटी वायरल ड्रग पर टिकी हुई हैं। विशेषज्ञों ने दिसंबर से पहले वैक्सीन की कल्पना करने को बेमानी बताया है। कारगर दवाओं को लेकर कयासों की तरंगें ऊंची-नीची हो रही थीं। मुंबई की एक कंपनी ने फैबीफ्लू नामक दवा बाजार में उतार दी है। मेरठ के दवा बाजार में हलचल तेज है। लंबे इंतजार और कामनाओं के बाद जो दवा मिली है। कारगर कितना है, यह जुलाई में पता चलेगा।
चलिए सर, मेडिकल ही घूम आएं
मेडिकल कालेज अमूमन कोई नहीं जाना चाहेगा, किंतु अधिकारी अब क्या करें? मेडिकल कालेज में मरीजों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है, ऐसे में अधिकारियों की ड्यूटी लगा दी है। कचहरी और कमिश्नरी के परिसर तक सिमटने के बजाय अधिकारी किसी भी वक्त मेडिकल कालेज के लिए निकल पड़ते हैं। फाइलों की दुनिया से निकलकर वो हकीकत से रूबरू होते हैं। अब उन्हें रास भी आने लगा है। 15 जून से लखनऊ की टीम नियमित रूप से मरीजों का हालचाल लेने पहुंच रही है। जिलाधिकारी और सीडीओ की भी गाड़ी किसी वक्त मेडिकल कैंपस में दाखिल हो जाती है। शनिवार को अधिकारियों ने एक बार फिर सीसीटीवी पर कोरोना मरीजों से बातचीत की। उनके आने जाने से मरीजों की तबीयत में भले ही सुधार न हो, किंतु व्यवस्था जरूर सेहतमंद होगी। मरीज आत्मबल की खुराक से ठीक हो जाएगा। इसका असर दिखा भी है।