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मेरठ में इतना बढ़ गया प्रदूषण कि आक्सीजन भी कम पड़ गई

मेरठ में पीएम की मात्रा 450 तक पहुंचने से हवा में आक्सीजन की मात्रा 2.5 फीसद घटी, कई मरीजों में 90 फीसद से कम हुई आक्सीजन, सांस फूलने के कारण कराना पड़ा भर्ती।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 02:10 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 02:10 PM (IST)
मेरठ में इतना बढ़ गया प्रदूषण कि आक्सीजन भी कम पड़ गई

जागरण संवाददाता, मेरठ। वायुमंडल में छाई धुंध में दीवाली का धुआं मिलते ही खतरनाक प्रभाव उभर आए। लोगों के शरीर में आक्सीजन की मात्रा घट गई है। ओपीडी में पहुंचे तमाम मरीजों को भर्ती करना पड़ा। खासकर, जिन मरीजों में आक्सीजन की मात्रा 93 फीसद थी, उनमें यह घटकर 85 के आसपास रह गई। अस्थमा, हार्ट एवं किडनी के मरीजों के लिए ये हालात खतरनाक हैं।

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मोनोआक्साइड ने भी निगली आक्सीजन

पटाखों में गंधक, मैग्नीशियम, पोटाश, लेड, सोडियम जैसी कई धातुएं होती हैं। बड़ी मात्रा में चली आतिशबाजी एवं पटाखों का जहरीला धुआं आसमान में पहुंचा। धुएं के साथ बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोआक्साइड गैस उत्सर्जित हुई, जो हवा में आक्सीजन खत्म करती है। उधर, गत 15 दिन से एनसीआर में स्माग की धुंध ने अब सेहत का दम घोंटना शुरू कर दिया। मेरठ की हवा में लंबे समय से सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा ज्यादा बनी हुई है।

अटैक का भी खतरा

औद्योगिक प्रदूषण से हवा में लेड, निकिल, कैडमियम, क्रोमियम, बोरान व अन्य रसायनों के सूक्ष्म कण घुल चुके हैं। दीवाली के दूसरे दिन पीएम-2.5 की मात्रा 358 व पीएम-10 की मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गई। रात में तापमान गिरने से सांस लेने की परत में प्रदूषित कणों की सांद्रता बढ़ जाती है। इससे अस्थमा के मरीजों को अटैक तक पड़ सकता है।

एलर्जी की दवाएं तक नाकाम

मेडिकल कालेज के ईएनटी विशेषज्ञ डा. कपिल सिंह का कहना है कि सप्ताहभर से एलर्जिक रानाइटिस एवं साइनोसाइटिस के मरीज अचानक बढ़े हैं। दीवाली के अगले दिन मरीजों में तेजी से सांस फूलने के लक्षण मिले। सांस एवं स्किन एलर्जी की तमाम दवाएं संक्रमण फैलाने वाले तमाम बैक्टीरिया पर नाकाम मिली हैं। पहले जो एलर्जी दस दिन में ठीक होती थी, अब 20 दिन की खुराक में नियंत्रित होगी। हाई एंटीबायोटिक से इलाज करना पड़ रहा है।

सर छोटू राम इंजीनिय¨रग कालेज के पर्यावरण वैज्ञानिक, डा. सुरेंद्र यादव बताते हैं कि हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा 450 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक पहुंचने पर हवा में 12 फीसद अतिरिक्त प्रदूषित कण पहुंचते हैं। इस प्रकार हवा में उपलब्ध 21 फीसद आक्सीजन में 2.52 फीसद की कमी हो जाती है, जो बेहद खतरनाक है। वहीं हृदय रोग विशेषज्ञ डा. ममतेश गुप्ता का कहना है कि वायु प्रदूषण में शामिल रासायनिक कण रक्तचाप बढ़ाते हैं। हृदय तक रक्त ले जाने वाली धमनियां सख्त होने लगती हैं। धुआं शरीर में पहुंचने से रक्त प्रवाह में रुकावट बनाता है। आक्सीजन की कमी से फेफड़ों के साथ ही हार्ट पर भी लोड बढ़ता है। अत्यधिक प्रदूषण से हार्ट अटैक का भी खतरा है।

नाक, कान व गला विशेषज्ञ सुमित उपाध्याय का कहना है कि एलर्जी के मरीजों पर तमाम दवाएं बेअसर हो रही हैं। इधर, धुआं ज्यादा होने से एलर्जिक रानाइटिस एवं साइनोसाइटिस के मरीज ओपीडी में पहुंच रहे हैं। एलर्जी व अस्थमा के जो मरीज सामान्य रूप से दवा ले रहे थे, उन्हें डोज बढ़ानी पड़ी है।


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