Move to Jagran APP

आपके बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन और कोकीन एक समान है, इस तरह करें बचाव

दुनियाभर के थेरेपिस्ट और मनोचिकित्सक यह बताने लगे हैं कि छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल देना मतलब उनके हाथ में एक वाइन की बोतल या एक ग्राम कोकीन देने जैसा है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 20 Nov 2019 12:06 PM (IST)Updated: Wed, 20 Nov 2019 02:17 PM (IST)
आपके बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन और कोकीन एक समान है, इस तरह करें बचाव
आपके बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन और कोकीन एक समान है, इस तरह करें बचाव

मेरठ, [जागरण स्‍पेशल]। रोते बच्चे को स्मार्टफोन मिलते ही आंखें चमक उठती हैं। बच्चा खाना न खाए तो मोबाइल पर वीडियो चलते ही पूरी प्लेट साफ हो जाती है। यह कमोबेश हर दूसरे घर का नजारा है। पर क्या आपने कभी यह सोचा कि बच्चों की यह खुशी दरअसल उनका एडिक्शन यानी लत बनती जा रही है। यह लत भी उतनी ही खतरनाक है जितनी शराब, सिगरेट और अन्य नशीले उत्पादों की है।

loksabha election banner

दुनियाभर के थेरेपिस्ट और मनोचिकित्सक यह बताने लगे हैं कि छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल देना मतलब उनके हाथ में एक वाइन की बोतल या एक ग्राम कोकीन देने जैसा है। इसी दिशा में काम कर रहे जानकारों का मानना है कि अधिकतर बच्चों में मोबाइल व इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल का नकारात्मक असर सामने आ रहा है। इंटरनेट की दुनिया में उन बच्चों, किशोरों और युवाओं का अपना-अपना कोना है जिसके अजीबो-गरीब नाम हैं। आइए, इस गुत्थी को समझते हैं। 

ये हैं इंटरनेट के ‘लोफर’

सामाजिक मनोविज्ञान का शब्द ‘लोसिंग’ हैं जिससे ‘लोफर’ शब्द बना है। इंटरनेट के पहले भी कुछ लोग बिना किसी कार्य यहां-वहां भटकते दिखते रहते थे। वहीं काम अब इंटरनेट पर हो रहा है। बिना किसी उद्देश्य के इंटरनेट सर्फिंग करते रहने से मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। क्लिनिकल साइक्लॉजिस्ट डा. सीमा शर्मा के अनुसार कुछ इस तरह का असर इनमें देखने को मिलता है।

  • हमारा मस्तिष्क पुरानी संरचना का है इसलिए तकनीकी के साथ कई घंटों रहने पर असहज होने लगता है। इसके कारण यह अपने सामान्य कार्य जैसे इंफॉर्मेशन प्रोसेसिंग, इंफार्मेशन कैटेलॉगिंग और मेमोरी कंसोलिडेशन में पिछड़ने लगता है।
  • मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में यदि कोई भी एक्टिविटी अगर ध्येय विहीन है तो मस्तिष्क उसे ग्रहण नहीं करता है। उस इंफार्मेशन को प्रोसेस करने में शक्ति खोता है। मस्तिष्क के थकने के कारण पढ़ाई-लिखाई, सामाजिक व्यवहार, सही-गलत का चुनाव आदि में गड़बड़ाहट दिखने लगती है।
  • तकनीक का दुरुपयोग करने वाले बच्चों में चिड़चिड़ापन, अनियंत्रित क्रोध, बिगड़ा सामाजिक व्यवहार, विद्रोही व्यवहार बढ़ा हुआ दिखाई देता है।

यह होता है नुकसान

  • किशोरावस्था के कुछ साल सामाजिक कौशल सीखने के लिए अहम हैं। ऐसे में जब बच्चे मोबाइल, आइपैड, लैपटॉप में उलङो रहते हैं तो यह महत्वपूर्ण अवसर खो देते हैं।
  • मनुष्य के मस्तिष्क ने सामाजिक होने के लिए कई हजार वर्ष लिए हैं। अब अगर इसे सोशल क्यू यानी सामाजिक संकेत मिलते हैं तो मस्तिष्क एक कैदी के मस्तिष्क की तरह हताशा, निराशा और अवसाद से घिर जाता है।
  • इससे ग्रसित बच्चे क्लीनिक्स में बिगड़े व्यवहार, बिगड़ी सामाजिकता और बिगड़ी भावनात्मकता के लक्षण के साथ लाए जा रहे हैं।

    ऐसा कीजिए, समाधान होगा

  1. घर में इंटरनेट इस्तेमाल अनुशासन बनाएं
  2. इंटरनेट पर काम करने का वर्क स्टेशन घर में कॉमन बनाएं।
  3. अलग-अलग कमरे में बैठकर वाई-फाई का इस्तेमाल न करें।
  4. टेक्नोलॉजी बुरी नहीं, यह रहेगी भी, इसलिए इंटरनेट न देने की धमकी न दें।
  5. सजा के तौर पर बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट से दूर करने की बजाय जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना सिखाएं।
  6. जब तक अनिवार्य न हो बच्चों को इंटरनेट वाले मोबाइल फोन न दें।
  7. बच्चों के लिए परिजन स्वयं उदाहरण बनें। अनुशासन पेश करें।

पूरी तरह बदल गया बच्चे का व्यवहार

मेरठ की डा. सीमा शर्मा बताती हैं कि कई ऐसे बच्चों को परिजन लेकर आ रहे हैं जो पढ़ने, घुलने-मिलने, खेलने आदि में बहुत अच्छे थे लेकिन अब बात-बात में गुस्सा, असहनीयता, टेबल का प्लेट फेकना, कमरे में अकेले खाना, रिश्तेदारों का पैर छूने को कहने पर भड़क जाना जैसे व्यवहार करने लगे हैं। यह कोई मानसिक बीमारी नहीं बल्कि पबजी जैसे वीडियो गेम्स का दिमाग पर पड़ता असर है। इन गेम्स में लगातार हार-जीत, खोना-पाना, मिलना-बिछड़ना आदि से हर दिन जूझने के कारण बच्चों का व्यवहार बदल रहा है। टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करने के लिए ही डिजाइन किया जाता है। तभी वह आकर्षित करती है। पर अधिक इस्तेमाल घातक साबित हो रहा है।

इस तरह की हैं समस्याएं

  • बच्चे अपने डेली शेड्यूल को ताक पर रखकर बिना किसी मकसद के इंटरनेट सर्फ करते हुए भटकते रहते हैं।
  • कुछ बच्चे इंटरनेट पर ऑनलाइन या पबजी जैसे गेम्स खेलने में अधिक समय बिता रहे हैं।
  • प्रश्नों का जवाब पाने के लिए परिजनों या गुरुजनों से पूछने की बजाय इंटरनेट पर खोजते रहते हैं।
  • नकली आइडी बनाकर लड़के-लड़कियां ऑनलाइन अनजान लोगों से घंटों चैट कर रिस्क ले रहे हैं जो खतरनाक है।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.