एक था रूपक : मेरे टुकड़ों को बोरवेल से निकलवाओ मां, मुझे मुक्ति चाहिए Meerut News
इस दुनिया में सबसे भारी वजन माना गया है माता-पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी और ऊपरवाला दुश्मन को भी ऐसे दिन न दिखाए। मेरठ के रूपक की दास्तान अलग है।
मेरठ, [जय प्रकाश पांडेय]। इस दुनिया में सबसे भारी वजन माना गया है माता-पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी, और भारतीय परंपरा में दुआ मांगी जाती है कि ऊपरवाला दुश्मन को भी ऐसे दिन न दिखाए। रूपक की दास्तान अलग है। कौन रूपक, बीस साल का एक नौजवान, जो अब मौत के भयावह अंधकार में कहीं गुम है। उसके शरीर के टुकड़े करीब 150 फीट गहरे एक बोरवेल में अपने मोक्ष की बाट जोह रहे हैं। ...और उसकी मां मिथिलेश व पिता जसवंत, उन दोनों की किस्मत अभी ऐसी भी नहीं कि अपने लाल की अर्थी को कंधा भी दे सकें।
रूपक 26 जून तक जिंदा था
फाजलपुर के अनूपनगर निवासी जसवंत का पुत्र रूपक 26 जून तक जिंदा था, लेकिन उसी दिन रूपक के कलियुगी दोस्त विकास, मनीष, निसार, विशाल और अमरदीप ने उसकी हत्या कर दी। उसके बाद इन हत्यारोपितों ने कुल्हाड़ी से शव के कई टुकड़े कर उसे एक बोरवेल में फेंक दिया। बाद में सभी आरोपित पकड़े गए लेकिन रूपक के बाल व कुछ अवशेष को छोड़ उसके शव के टुकड़े आज तक बरामद नहीं किए जा सके। वस्तुत: लालफीताशाही में उलझी व्यवस्था के लिए रूपक एक आईना है कि जिसमें वो अपनी सूरत देखे, समझे, और खुद का आकलन करे। हत्यारोपितों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस प्रशासन ने बोरवेल की कुछ खोदाई जरूर करवाई, लेकिन कामयाबी न मिलने पर उसके बाद का पूरा मामला बर्फ की सिल्ली में दफन सा हो गया। पुलिस-प्रशासन द्वारा एनडीआरएफ से बोरवेल खोदाई के लिए मदद मांगी गई, लेकिन अफसरों के अनुसार एक सीमा के बाद यह योजना परवान न चढ़ सकी।
ताकि रैपिड की मशीनें बोरवेल तक पहुंचे
स्तब्ध कर देने वाली लंबी खामोशी के बीच अंतत: जब फिर सवाल उठने लगे, तब एसएसपी अजय साहनी द्वारा कमिश्नर अनीता सी मेश्राम व कलेक्टर अनिल ढींगरा को इस आशय का पत्र लिखा गया कि वो अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रैपिड रेल परियोजना पर काम कर रहे अफसरों से बोरवेल खोदाई के लिए कहें। बहरहाल, होना तो यह चाहिए था कि काम तत्काल होता, लेकिन रैपिड की हामी के बाद भी पेंच फंस गया यह, कि रैपिड की भारी मशीनें बोरवेल तक नहीं पहुंच सकतीं, क्योंकि 300 मीटर तक मार्ग कच्चा है। ...तो भला ऐसी स्थिति में क्या हो, सवाल खड़ा था। निर्णय लिया गया कि अब नगर निगम से कहा जाए कि वो 300 मीटर सड़क बनाए ताकि रैपिड की मशीनें बोरवेल तक पहुंचाई जा सकें।
जिम्मेदार संस्थाओं ने भी तत्परता नहीं दिखाई
अफसोस, यह काम अभी तक अंजाम नहीं दिया जा सका। इस मामले में प्रशासन से लगायत जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार संस्थाओं ने भी तत्परता नहीं दिखाई। कुल जमा 26 जून से आज शनिवार तक 44 दिन बीत गए, लेकिन अजीमो शान-ओ-शौकत से लदी-फंदी हमारी व्यवस्था एक माता-पिता को उसके बच्चे के शव के टुकड़े तक न दिलवा सकी। आपको यह अधिकार है कि आप अपनी पीठ स्वयं खूब ठोकें, लेकिन यह भी सच है कि आपका इकबाल तभी बुलंद रहता है कि जब लोग आपकी व्यवस्था के मुरीद हों, सहभागी हों। इस देश में बोरवेल से पहले भी शव निकाले गए हैं, अपार दिक्कतें भी आई हैं, लेकिन यहां तो मामला ही इस कदर दहला देने वाला है कि जब आपको यह पता चलता है कि अभी तक सारा कुछ बस आपसी खत-ओ-किताबत तक सिमटा हुआ है। एक परिवार, अपने सदस्य के टुकड़े की प्रतीक्षा में रोज तिल-तिल मर रहा है हुजूर, कुछ करिए।
इनका कहना है
हम अफसरों के संपर्क में हैं। एनडीआरएफ इस समय देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ नियंत्रण में लगी है। कमिश्नर ने रैपिड से बात की है, हम उनसे फिर बात करेंगे। जल्द समाधान निकलेगा।
- राजेंद्र अग्रवाल, सांसद।
एसएसपी से कई बार बात हुई है। शनिवार को डीएम से मिलकर समाधान निकालेंगे।
- सत्यप्रकाश अग्रवाल, विधायक कैंट।
रूपक हत्याकांड में एसएसपी मामले की मॉनीटरिंग कर रहे है। उन्हें बोरवेल से शव को निकलवाने के आदेश दिए जा चुके हैं। अब तक मिले अवशेष डीएनए टेस्ट के लिए फॉरेंसिक लैब भेजे गए हैं।
- राजीव सभरवाल, एडीजी