Water Conservation: शुद्ध पानी-पर्यावरण करेंगे दुखों का हरण, इंसानी अस्तित्व व सभ्यता की पर्याय हैं नदियां
Water Conservation देश एक शरीर है तो नदियां उसकी धमनियां। अगर उनमें बह रहा रक्त दूषित होगा तो शरीर का विकास कैसे संभव है? शुद्ध रक्त परिसंचरण से ही हम शरीर रूपी देश को स्वस्थ रख सकते हैं। शुद्ध पानी और पर्यावरण तभी मिलेगा जब नदियां शुद्ध होंगी।
नदीपुत्र रमनकांत त्यागी। Water Conservation शुद्ध पर्यावरण और स्वच्छ जल को मौलिक अधिकार बताने और प्रत्येक व्यक्ति को उन्हें राज्यों द्वारा सुनिश्चित कराने की माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी निश्चिततौर पर आंखें खोलने वाली है। आखिर देश के प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ पेयजल क्यों नहीं मिल पा रहा है? इसके कारणों को खोजना जितना आसान है उतना ही मुश्किल उन कारणों का समाधान करना भी है। देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहां पानी की कमी है लेकिन अधिकतर भाग ऐसे हैं जहां पानी की कमी तो नहीं है लेकिन वहां का भूजल प्रदूषित हो चुका है। पानी का यह प्रदूषण प्राकृतिक व मानव निर्मित दोनों प्रकार का है।
जहां-जहां प्राकृतिक जल प्रदूषण है वहां सरकारें विभिन्न प्रकार से लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही हैं, लेकिन वर्तमान में मानव निर्मित प्रदूषण देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। विश्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पेयजल के रूप में करीब 85 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल होता है। ऐसे में जब भूजल ही प्रदूषित हो जाएगा तो देश की बड़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल मिलना दूभर ही बना रहेगा। इसीलिए आवश्यक है कि हम भूजल के प्रदूषण के कारणों व उसके समाधान की ओर अपना ध्यान लगाएं।
स्वच्छ पानी अर्थात पेयजल व सिंचाई की उपलब्धता के लिए हमारी पुरातन सभ्यताएं नदियों के किनारे बसती रही हैं। यही जीवनदायनियां हमारे पर्यावरण में भी प्राण फूंकती रही हैं। जल की जैव विविधता के साथ नदियों के बेसिन में पर्यावरण को पोषित-पुष्पित करती हैं। दुखद यहीं है कि दूसरों में जान फूंकने वाली ये जलधाराएं मृतप्राय होती जा रही हैं। वर्तमान समय में हमारे देश में भूजल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण नदियों का प्रदूषित होना है। वह फिर चाहे गंगा-यमुना जैसी सदानीरा हों या फिर हिंडन, काली, कृष्णी व अरिल जैसी बरसाती नदियां। जिन नदियों में पानी वर्षभर बना रहता है उनमें प्रदूषण का असर कम नजर आता है
लेकिन जिन नदियों का पानी या तो सूख चुका है या फिर कुछ दूरी तक ही अपनी यात्र तय कर पाता है, उनके मैदानी क्षेत्रों का भूजल पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है। छोटी व बरसाती नदियों को उद्योगों के गैर-शोधित तरल कचरे तथा कस्बों व शहरों के घरेलू बहिस्नाव के बहाव ने प्रदूषित नालों में तब्दील कर दिया है। यह सब पिछले चार से पांच दशकों से यूं ही चलता आ रहा है जिसके कारण इन नदियों में बहने वाला प्रदूषण धीरे-धीरे रिसकर भूजल में जा पहुंचा है।
विभिन्न अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि छोटी व बरसाती नदियों में बहने वाले पानी में जिन रासायनिक तत्वों के अंश पाए गए हैं वही तत्व इन नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल में भी पाए गए हैं। यही कारण था कि राष्ट्रीय हरित अभिकरण पिछले दिनों ¨हडन नदी किनारे बसे 124 उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया था। भारत के सभी हिस्सों में छोटी व बरसाती नदियों के प्रदूषित होने के कारण बड़े क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो चुका है, यही कारण है कि जो सभ्यताएं या आबादी स्वच्छ पेयजल की तलाश में इन नदियों के किनारे बसीं, पली, बढ़ीं व विकसित हुईं वे नदियों के भयंकर प्रदूषण के कारण वहां से उजड़ने के कगार पर हैं। इसको सुधारना बड़ी चुनौती है। इसका एकमात्र स्थाई समाधान हमें अपनी छोटी व बरसाती नदियों को प्रदूषणमुक्त व पुनर्जीवित करना ही है।
[संस्थापक, नीर फाउंडेशन, मेरठ]