Article 370 : जहन में हैं वो कड़वी यादें भी, कहते थे यह तो हमारी बहन है.. Meerut News
अनुच्छेद 370 हटने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया जारी है। श्रीनगर में नौवीं क्लास तक पढ़ने वाली विमला कहती हैं उस समय वहां हिंदू और मुसलमानों में कोई फर्क नहीं था।
By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 12:21 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 03:00 PM (IST)
मेरठ, [ओम बाजपेयी]। कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त होने पर माल रोड निवासी विमला शिवपुरी का मन एक बार फिर जन्नत की वादियों खो सा गया है। श्रीनगर में नौवीं क्लास तक पढ़ने वाली विमला कहती हैं उस समय वहां हिंदू और मुसलमानों में कोई फर्क नहीं था। मुस्लिम बच्चे हमारे साथ बोट पर बैठकर पढ़ने जाते थे। किश्ती चलाने वाला बेहद सावधानी से सभी को चढ़ाता और उतारता था।
एक ऐलान पर सबकुछ बदल गया
बच्चों को अच्छी शिक्षा दीक्षा के लिए उनके पिता अमरनाथ स्वरूप अजमेर शिफ्ट हो गए थे। राजस्थान सरकार में एजूकेशन अधिकारी अमरनाथ रसूख वाले व्यक्ति, प्रसिद्ध ज्योतिषविद और हस्तरेखा विशेषज्ञ थे। विमला के नाना नानी, दादा दादी और चाचा के परिवार 1989 तक श्रीनगर में रहते थे। शीतलनाथ सत्थू में चार मंजिला मकान था। सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक मस्जिदों से ऐलान होने लगा कि कश्मीरी पंडित श्रीनगर छोड़ो। इसके बाद सब कुछ बदल गया।
तब लगा कोई साजिश थी
विमला कहती हैं इसके पीछे कोई साजिश है। ऐसा करने वाले वहां के मूल निवासी नहीं हो सकते। आज भी कश्मीर भाषा बोलने वाली विमला ने बताया कि 1989 के पहले जब-जब वह कश्मीर जाती थी तो लोगों से बातचीत में वहीं की भाषा बोलती थी। वहां के दुकानदार उनसे कहते थे, यह तो हमारी बहन है। हम इससे ज्यादा पैसे नहीं ले सकते। ऐसा आत्मीय लगाव रखने वाले कश्मीरी पंडितों के दुश्मन कैसे हो सकते हैं। उनके माता पिता राजस्थान चले आए थे और बाद में अजमेर में रहने लगे थे, लेकिन बाकी सभी लोग श्रीनगर में 1989 तक रहते रहे।
दंगाइयों ने उनका पुश्तैनी घर जला दिया था
विमला ने बताया कि उनके रिश्तेदारों को रातों रात भागना पड़ा था। कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। उनका पुश्तैनी घर जला दिया गया। इसके बाद वह जम्मू गईं लेकिन श्रीनगर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इसके पहले 1980 में उनका विवाह मेरठ निवासी विपिन बिहारी शिवपुरी से हो गया था। विमला सिख लाइन केंद्रीय विद्यालय में हिंदी और अर्थशास्त्र की प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त हुई। उनका कहना था कि अगर हालात सामान्य हुए तो वह जरूरी अपने पुश्तैनी स्थल को देखने जाना चाहेंगी। कश्मीरी पंडित अभी वहां जाने को तैयार हैं।
एक ऐलान पर सबकुछ बदल गया
बच्चों को अच्छी शिक्षा दीक्षा के लिए उनके पिता अमरनाथ स्वरूप अजमेर शिफ्ट हो गए थे। राजस्थान सरकार में एजूकेशन अधिकारी अमरनाथ रसूख वाले व्यक्ति, प्रसिद्ध ज्योतिषविद और हस्तरेखा विशेषज्ञ थे। विमला के नाना नानी, दादा दादी और चाचा के परिवार 1989 तक श्रीनगर में रहते थे। शीतलनाथ सत्थू में चार मंजिला मकान था। सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक मस्जिदों से ऐलान होने लगा कि कश्मीरी पंडित श्रीनगर छोड़ो। इसके बाद सब कुछ बदल गया।
तब लगा कोई साजिश थी
विमला कहती हैं इसके पीछे कोई साजिश है। ऐसा करने वाले वहां के मूल निवासी नहीं हो सकते। आज भी कश्मीर भाषा बोलने वाली विमला ने बताया कि 1989 के पहले जब-जब वह कश्मीर जाती थी तो लोगों से बातचीत में वहीं की भाषा बोलती थी। वहां के दुकानदार उनसे कहते थे, यह तो हमारी बहन है। हम इससे ज्यादा पैसे नहीं ले सकते। ऐसा आत्मीय लगाव रखने वाले कश्मीरी पंडितों के दुश्मन कैसे हो सकते हैं। उनके माता पिता राजस्थान चले आए थे और बाद में अजमेर में रहने लगे थे, लेकिन बाकी सभी लोग श्रीनगर में 1989 तक रहते रहे।
दंगाइयों ने उनका पुश्तैनी घर जला दिया था
विमला ने बताया कि उनके रिश्तेदारों को रातों रात भागना पड़ा था। कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। उनका पुश्तैनी घर जला दिया गया। इसके बाद वह जम्मू गईं लेकिन श्रीनगर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इसके पहले 1980 में उनका विवाह मेरठ निवासी विपिन बिहारी शिवपुरी से हो गया था। विमला सिख लाइन केंद्रीय विद्यालय में हिंदी और अर्थशास्त्र की प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त हुई। उनका कहना था कि अगर हालात सामान्य हुए तो वह जरूरी अपने पुश्तैनी स्थल को देखने जाना चाहेंगी। कश्मीरी पंडित अभी वहां जाने को तैयार हैं।
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