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प्रदूषित हवा ने किडनी की छन्‍नी प्रक्रिया ही बिगाड़ दी, अब गुर्दा भी हो सकता है फेल

वायु प्रदूषण और एग्रो पॉल्यूशन से भी किडनी तेजी से खराब होती है। हवा में तैरते और खानपान के रास्ते शरीर में पहुंचने वाले हैवी मेटल गुर्दे में फंस जाते हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 12:30 PM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 12:30 PM (IST)
प्रदूषित हवा ने किडनी की छन्‍नी प्रक्रिया ही बिगाड़ दी, अब गुर्दा भी हो सकता है फेल
प्रदूषित हवा ने किडनी की छन्‍नी प्रक्रिया ही बिगाड़ दी, अब गुर्दा भी हो सकता है फेल

मेरठ, जेएनएन। प्रदूषित हवा ने शरीर के मेटाबोलिज्म को बिगाड़ दिया है। हवा में पीएम-2.5 की मात्रा बढ़ने से न सिर्फ फेफड़ा और हार्ट के मरीज बढ़ गए, बल्कि कई मरीजों के पैरों और चेहरे पर सूजन देखी गई। जांच में पता चला कि गुर्दे की झिल्‍ली में अवरोध की वजह से सूजन बढ़ी है। चिकित्सकों की मानें तो सीकेडीयू-क्रानिक किडनी डिसीज आफ अननोन कास के मरीज बढ़े हैं। एक्यूट फेल्योर के कई मरीजों को भी डायलसिस देनी पड़ी।

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किडनी की छन्‍नी प्रक्रिया बिगड़ी

डाक्टरों ने बताया कि पीएम-2.5 रक्त में अवशोषित होकर धमनियों में रुकावट बनाता है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से क्रानिक किडनी डिसीज ज्यादा मिल रही है। धमनियों में रुकावट से किडनी की छन्नी की प्रक्रिया बिगड़ने से शरीर में क्रिटनिन, यूरिया और अम्ल की मात्र बढ़ती है। खून बनने में कमी के साथ ही सांस फूलने का भी लक्षण उभरता मिल रहा है।

तेजी से खराब हो रही किडनी

चिकित्सकों की रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण और एग्रो पॉल्यूशन से भी किडनी तेजी से खराब होती है। हवा में तैरते और खानपान के रास्ते शरीर में पहुंचने वाले हैवी मेटल गुर्दे में फंस जाते हैं।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

पीएम-2.5 गुर्दे की झिल्‍ली में पहुंचकर गुर्दे की प्रक्रिया को बाधित कर देता है, जिससे शरीर में यूरिया, क्रिटनिन एवं एसिड बढ़ने से पैरों व हाथों में सूजन आ सकती है। हाल के शोधों में पता चला कि किडनी की जिन बीमारियों की वजह नहीं पता चल पाई है, उसका लिंक वायु प्रदूषण व एग्रो केमिकल से मिल रहा है।

- डा. संदीप गर्ग, गुर्दा रोग विशेषज्ञ

पार्टीकुलेट मैटर यानी प्रदूषित सूक्ष्मकण शरीर के हर अंग पर असर डालते हैं। फेफड़ा व हार्ट पर प्रभाव पड़ने से गुर्दे की प्रक्रिया भी डिस्टर्ब होती है। हेवी मेटल व टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रयोग होने वाले रसायन गुर्दे के लिए घातक हैं।

- डा. अमिताभ गौतम, फिजीशियन, केएमसी 


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