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विश्वविद्यालय को राजनीतिक प्लेटफार्म न समझें राजनीतिक दल Meerut News

दैनिक जागरण की अकादमिक गोष्ठी में चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर और चीफ प्रॉक्टर बीरपाल सिंह ने अपने विचार रखे।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 03:55 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 06:00 PM (IST)
विश्वविद्यालय को राजनीतिक प्लेटफार्म न समझें राजनीतिक दल Meerut News

मेरठ, [विवेक राव]। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में माहौल खराब हुआ है। देश के कई विश्वविद्यालयों में छात्रों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है। अध्ययन और अध्यापन के लिए जिन शिक्षण संस्थानों को जाना जाता है, ऐसे संस्थानों का राजनीति अखाड़ा बनना व हिंसक प्रवृत्ति का बढ़ना चिंताजनक है। इस चिंता से देश के कई विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रधानमंत्री को भी ध्यान दिलाया है। विश्वविद्यालय से जुड़े विद्वान राजनीतिक दलों से अपेक्षा करते हैं कि वे विश्वविद्यालयों को अपना प्लेटफार्म बनाने से बचें। विश्वविद्यालय लोकतंत्र की नर्सरी है, लेकिन इस नर्सरी की अपनी एक जिम्मेदारी और अनुशासन भी है। दैनिक जागरण के अकादमिक गोष्ठी में सोमवार को -राजनीति का अखाड़ा बनने से कैसे बचें विश्वविद्यालय- विषय पर चर्चा हुई। इसमें अतिथि वक्ता चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर और चीफ प्रॉक्टर बीरपाल सिंह ने अपने विचार रखे।

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अतिथि के विचार

विश्वविद्यालय एक ऐसी संस्था है, जिसे पठन-पाठन के लिए जाना जाता है। इन संस्थाओं में मारपीट, हिंसक घटनाएं नहीं होनी चाहिए। छात्र और शिक्षक का अपना-अपना प्रोफेशन है। जिसे उन्हें सबसे पहले जिम्मेदारी से पूरा करना चाहिए। जेएनयू जैसी घटना रोकने के लिए कई चीजों की जरूरत है। इसमें पहला छात्रों से संवाद बढ़ाने की जरूरत है। किसी भी परिस्थिति में संवाद खत्म नहीं करना चाहिए। दूसरी बात छात्र हो या शिक्षक, उन्हें किसी भी राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए। पहले वे विद्यार्थी हैं। विश्वविद्यालयों में एक विचारधारा को केंद्रीत करना भी गलत है। सबसे पहले विश्वविद्यालय की जो परंपरा है, उसे स्थापित करने की जरूरत है। तीसरी बात विश्वविद्यालयों में विभिन्न प्रांत, धर्म, विचारधारा से छात्र आते हैं। एक दूसरे की संस्कृति को समझने और सम्मान करने की जरूरत है। इसके लिए विश्वविद्यालय स्तर पर एक प्रकोष्ठ स्थापित करने की जरूरत है।

संवाद के साथ संस्कार जरूरी

विश्वविद्यालय में एक बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाए रखने के लिए शिक्षकों को भी अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए छात्रों के साथ संवाद बढ़ाने की जरूरत है। शिक्षकों को किसी भी खेमे में जाने से बचते हुए छात्रहित में कदम उठाना चाहिए। दूसरी ओर परिवार की भी जिम्मेदारी है कि वे छात्रों में संस्कार को बढ़ाएं। 12वीं तक की शिक्षा में परिजन अपने बच्चे की रिपोर्ट लेते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में आने के बाद कम कर देते हैं। अगर परिसर, परिवार मिलकर छात्र के साथ संवाद स्थापित करें तो कई चीजें रुक सकती हैं।

शैक्षणिक बदलाव स्वीकारें छात्र

विश्वविद्यालयों की स्थापना के समय प्रवेश, परीक्षा और पाठ्यक्रम को लेकर जो स्थिति थी। समय के साथ उसकी बेहतरी के लिए कई बदलाव किए जाते हैं। इस तरह के बदलाव का छात्रों को स्वीकारना चाहिए, क्योंकि यह छात्रहित में होता है। आज आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस जैसे पाठ्यक्रम शुरू हो रहे हैं। ऑनलाइन प्रवेश किए जा रहे हैं। ऐसे में शिक्षा प्रणाली के बदलाव को सकारात्मक लेने की जरूरत है। केवल विरोध के लिए विरोध करने से बचना चाहिए।

दंड ही नहीं, सुधार की हो कोशिश

कोई भी विश्वविद्यालय हो, उसमें गलत करने पर छात्रों को दंड भी दिया जाता है। यह जरूरी भी है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें सुधरने का भी मौका देना चाहिए। चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय स्तर पर कई बार छात्रों को ब्लैकलिस्ट किया जाता है, लेकिन अगर वह सुधरते हैं तो उन्हें बहाल भी किया जाता है। 


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