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Panchayat Chunav In Meerut: जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए भाजपाई दावेदारों में जाट चेहरों का दबदबा

भारतीय जनता पार्टी फिर जाट वोटरों की चौखट पर पहुंच गई है। पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में भी यह समीकरण साफ नजर आ रहा है। पश्चिम यूपी की 14 पंचायत अध्यक्ष वाली सीटों में दो सुरक्षित है अन्य 12 में पांच उम्मीदवार जाट वर्ग से उतारने की योजना है।

By Prem Dutt BhattEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 09:30 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jun 2021 09:30 AM (IST)
किसान आंदोलन से घिरी भारतीय जनता पार्टी फिर जाटों के द्वार के पहुंची।

मेरठ, जेएनएन। Panchayat Chunav In Meerut भाजपा की राजनीतिक मजबूरी कहें या पश्चिम यूपी में जाटों का सियासी दबदबा। पार्टी एक बार फिर जाट वोटरों की चौखट पर पहुंच गई है। पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में भी यह समीकरण साफ नजर आ रहा है। पश्चिम यूपी की 14 पंचायत अध्यक्ष वाली सीटों में दो सुरक्षित है, जबकि अन्य 12 में पांच उम्मीदवार जाट वर्ग से उतारने की योजना है। पार्टी इस बहाने जहां किसान आंदोलन की तपिश को थामने का प्रयास करेगी, वहीं विस 2022 चुनावों को देखते हुए जाटों पर पार्टी फिर डोरे डालने में जुट गई है।

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जाट वोटरों में रालोद की सेंधमारी तय

भाजपा ने भले ही पंचायत अध्यक्ष पद के दावेदारों की सूची जारी नहीं की है, लेकिन मौखिक सहमति बन चुकी है। इसमें जाटों को सर्वाधिक तवज्जो मिली है, जिसकी वजह से गुर्जर समेत अन्य वर्गों का चेहरा उतरा हुआ है। गत दिनों प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और अब प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने भी पश्चिम यूपी के जातीय समीकरण पर मंथन किया है। उनके सामने अन्य जातियों के दावेदारों ने भी हैरानी जताई है। चर्चाओं के मुताबिक गौतमबद्धनगर, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और सहारनपुर में जाट चेहरों को उम्मीदवार बनाया गया है। बागपत और शामली आरक्षित सीटें हैं, अन्यथा यहां भी जाटों का दावा सर्वाधिक है।

यह है तस्‍वीर

पश्चिमी यूपी में गुर्जर वर्ग भाजपा का हार्डकोर वोटर माना जाता है, लेकिन टीम योगी से लेकर प्रदेश एवं क्षेत्रीय संगठन में हाशिए पर रहने की टीस गुर्जरों के चेहरे पर साफ नजर आती है। गाजियाबाद से त्यागी, व हापुड़ से गुर्जर को पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ाया जाएगा। पार्टी का एक खेमा गौतमबुद्धनगर और सहारनपुर में गुर्जर चेहरा चुनावी मैदान में उतारने की पैरोकारी कर रहा है। पश्चिम उप्र में ओबीसी व ब्राह्मण वोट भी भाजपा के साथ माना जाता है, लेकिन उन्हें राजनीतिक तवज्जो नहीं मिली है। आगामी विस चुनावों से पहले भाजपा के सामने किसान आंदोलन की तपिश से बचने की चुनौती है, जिसके लिए पार्टी एक बार फिर जाटों को मुख्यधारा में रखेगी, लेकिन पंचायत चुनावों में यह वर्ग रालोद के साथ डटकर खड़ा हो चुका है। चौ. अजित सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति, जयंत की ताजपोशी और कृषि बिल के प्रति नाराजगी किसानों को भाजपा से दूर कर सकती है। उधर, सपा नेता अतुल प्रधान भाजपा पर गुर्जरों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए घेराबंदी में जुटे हैं।


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