सियासत : पश्चिम के पेंच में फंसा भाजपा का संगठन विस्तार, कई नामों में होगा फेरबदल Meerut News
प्रदेश और क्षेत्रीय इकाई बनाने के मंथन में जुटी भाजपा वेस्ट यूपी के समीकरणों को लेकर उलझ गई है। जातीय संतुलन से ज्यादा चुनावी समीकरणों को साधना पड़ रहा है।
मेरठ, जेएनएन। प्रदेश और क्षेत्रीय इकाई बनाने के मंथन में जुटी भाजपा वेस्ट यूपी के समीकरणों को लेकर उलझ गई है। जातीय संतुलन से ज्यादा चुनावी समीकरणों को साधना पड़ रहा है। एक ही क्षेत्र से दर्जनों उम्मीदवार होने से नेतृत्व की चुनौती बढ़ गई है। खींचतान और खेमेबाजी की तपिश से संगठन में हलचल है। माना जा रहा है कि राम मंदिर नींव के बाद संगठन की घोषणा कर दी जाएगी।
वेस्ट यूपी के दावेदारों को लेकर नई उलझनें
वर्तमान प्रदेश इकाई में वेस्ट यूपी से नोएडा विधायक पंकज सिंह और एमएलसी अशोक कटारिया प्रदेश महामंत्री हैं। राज्यसभा सदस्य कांता कर्दम, केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान और जसवंत सैनी प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। मेरठ के देवेंद सिंह प्रदेश मंत्री हैं। क्षेत्रीय अध्यक्ष अश्वनी त्यागी हैं। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को नई टीम बनानी है। इस बार वेस्ट यूपी के दावेदारों को लेकर नई उलझनें हैं।
इनके नाम हैं चर्चाओं में
मेरठ से अश्वनी त्यागी, देवेंद्र सिंह, कांता कर्दम और अमित अग्रवाल का नाम चर्चा में है। गुर्जर चेहरा के रूप में राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर पर दांव खेला जा सकता है। केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान के स्थान पर बागपत सांसद डा. सत्यपाल सिंह को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर जाट समीकरण साधा जा सकता है। कांता कर्दम के नाम पर सस्पेंस है। उनके स्थान पर आगरा की एक अनुसूचित महिला को स्थान दिया जा सकता है। सबसे बड़ा पेंच क्षेत्रीय अध्यक्ष के नाम पर फंसा है। पहले पार्टी सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों को रिपीट करना चाह रही थी, किंतु अब सभी को बदलने की बात कही जा रही है।
सुलझाना आसान नहीं
ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय अध्यक्ष अश्वनी त्यागी प्रदेश इकाई में जाएंगे। जहां से एमएलसी की सीट करीब होगी। संगठन के दो खेमों के बीच जाट चेहरों देवेंद्र सिंह और मोहित बेनीवाल का नाम अटका है। इसे सुलझाना आसान नहीं लग रहा। पहले क्षेत्रीय अध्यक्ष की रेस में रहे हापुड़ के वाइपी सिंह और अशोक मोगा को प्रदेश इकाई में भेजा जा सकता है। पार्टी के जानकार मानते हैं कि इतने नामों को समायोजित करना संभव नहीं होगा। कई नाम पीछे छूट सकते हैं। मेरठ के कई नामों पर ब्रेक लगने के कयास भी लगाए जा रहे हैं।