खरीदारी का अर्पण, भ्रांतियों का करें तर्पण, जानें श्राद्ध से जुड़ी चिरपरिचित भ्रांतियां Meerut News
Pitrपूर्वजों के सांस्कृतिक और धार्मिक सरोकारों से जुड़ने की समृद्ध व्यवस्था है श्राद्ध लेकिन इस दौरान कुछ भ्रांतियां श्रद्ध के पवित्र उद्देश्य से भटका देती हैं।
मेरठ, [राजन शर्मा]। Pitr ये बात आपको चौंका सकती है। अजीब लग सकती है। हो सकता है कि आपकी पुरानी धारणाओं के विपरीत हो, लेकिन यह सच है कि श्राद्ध पक्ष में लंबे समय से चले आ रहे विश्वास के विपरीत जो चाहें वो खरीदें। चंद अपवाद को छोड़ दें तो कुछ भी नया करें। ऐसा शास्त्र और शास्त्रों के जानकार कहते हैं। बाकी सब चिरपरिचित भ्रांतियां हैं।
प वित्र उद्देश्य से न भटकेें
पूर्वजों के सांस्कृतिक और धार्मिक सरोकारों से जुड़ने की समृद्ध व्यवस्था है श्राद्ध, लेकिन इस दौरान कुछ भ्रांतियां श्राद्ध के पवित्र उद्देश्य से भटका देती हैं। खासकर किसी वस्तु का क्रय-विक्रय न करना आदि। यह भ्रांति देश के कई हिस्सों में रूढ़ि बन गई है। इसके चलते बाजार को अरबों रुपये का फटका लग जाता है। हाइटेक युग में पुरातन विषय ज्योतिष भी विज्ञान के दायरे में आ गया है। देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में ज्योतिष सूत्रों पर शोध हो रहे हैं, लेकिन किसी ने इस भ्रांति पर शोध करना तो दूर, यह भी सोचने की जहमत नहीं उठाई कि श्राद्ध काल में किसी वस्तु की खरीदारी न करने का क्या आधार है? यह बात कब से प्रचलित हुई? किसने बताई? यदि किसी पंडित ने बताई तो किस शास्त्र के आधार पर बताई? बस तमाम अन्य भ्रांतियों की तरह यह भी रूढ़ि में प्रचलित हो गई। नतीजतन पूर्वजों के स्तुति गान के बजाए श्राद्ध को हव्वा मान लिया गया। शास्त्रों में स्पष्ट वर्णित है कि श्राद्ध पक्ष पितरों के प्रति चिंतनशील और श्रद्धावान रहने का काल है। न कि भ्रम पालने का। विद्वानों का कहना है कि श्राद्ध में किसी वस्तु के क्रय-विक्रय की कोई मनाही नहीं है।
श्राद्ध पक्ष में जमकर करें खरीदारी
जगद्गुरु राजराजेश्वराश्रम महाराज ने भविष्य पुराण, कूर्म पुराण और हरिवंश पुराण का हवाला देते हुए बताया कि श्राद्ध पक्ष में वाहन समेत किसी भी सामान के क्रय-विक्रय, व्यापार-मुहूर्त, नवीन आभूषण, पौधारोपण, अन्नप्राशन और नामकरण पर कोई रोक नहीं है। सिर्फ विवाह, प्राण-प्रतिष्ठा और गृह प्रवेश की मनाही है।
वस्तु पर बरसता है पितरों का आशीर्वाद
काशी के तंत्रचार्य रतन गुरु ने बताया कि काशी विश्वनाथ पंचांग में स्पष्ट लिखा है कि श्राद्ध पक्ष पूर्वजों के आशीर्वाद का समय है। इस काल में अपनी पसंद का कोई सामान पितरों का स्मरण कर खरीदें तो उस पर पितरों का आशीर्वाद बरसता है। यह काल पूर्वजों के स्तुतिगान का है न कि भ्रांति पालने का।
श्राद्ध में क्रय-विक्रय के शुभ योग
कथा व्यास पंडित अवधराज आचार्य ने बताया कि 15 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। 17 सितंबर को स्थायी जय, सवार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि का योग है। श्राद्ध काल में द्विपुष्कर योग भी है। 18 सितंबर को यायी योग है। इन शुभ योग में खरीदे गए सामान पर पितरों का आशीर्वाद बरसेगा।
भ्रांति
श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। खासकर नई वस्तु की खरीद तो बिल्कुल नहीं।
शास्त्र का मत
वस्तु की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं है। पितरों के स्तुति गान का पक्ष है श्राद्ध न कि भ्रांति पालने का।