निस्तारण के लिए प्लांट नहीं, शहर में कूड़े का पहाड़ खड़ा कर रहा निगम
बीस लाख की आबादी वाले मेरठ शहर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत भले ही करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहो हो लेकिन एक अदद कूड़ा निस्तारण प्लांट न होने से सारे किए कराये पर पानी फिर रहा है। एक जनवरी 2017 को गांवड़ी में कूड़ा निस्तारण प्लांट का शिलान्यास तत्कालीन महापौर हरिकांत अहलूवालिया ने किया था।
मेरठ, जेएनएन: बीस लाख की आबादी वाले मेरठ शहर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत भले ही करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहो हो लेकिन एक अदद कूड़ा निस्तारण प्लांट न होने से सारे किए कराये पर पानी फिर रहा है। एक जनवरी 2017 को गांवड़ी में कूड़ा निस्तारण प्लांट का शिलान्यास तत्कालीन महापौर हरिकांत अहलूवालिया ने किया था। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर के लोगों को सपना दिखाया गया था कि कूड़ा निस्तारण प्लांट में कूड़े से खाद और बिजली बनेगी। सीएनजी भी प्राप्त हो सकेगी। शहर में स्थाई और अस्थाई कूड़ाघर समाप्त हो जाएंगे। शहर साफ-सुथरा दिखने लगेगा। ढाई साल गुजर गए लेकिन एक भी काम नहीं हुआ। स्थिति ये है कि शहर में पहले डंपिंग ग्राउंड मंगतपुरम में कूड़े का पहाड़ खड़ा किया गया। जब यहां विरोध शुरू हुआ तो गांवड़ी में कूड़े का पहाड़ लगा दिया। गांवड़ी के ग्रामीणों ने विरोध किया तो पिछले साल नगर निगम ने हापुड़ रोड पर लोहिया नगर में डंपिंग ग्राउंड बना दिया। अब लोहिया नगर में भी कूड़े का पहाड़ खड़ा हो गया है। तीनों डंपिंग ग्राउंड में ही लाखों मीट्रिक टन कूड़ा डंप है।
आपका कूड़ा कैसे उठता है..आइए समझें
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के तहत सुबह सात बजे दिल्ली रोड डिपो, कंकरखेड़ा और सूरजकुंड डिपो से करीब 100 कूड़ा गाड़ियां निकलती हैं। प्रति वार्ड एक कूड़ा गाड़ी है। एक वार्ड की न्यूनतम आबादी 12000 है। इतनी आबादी से उत्पन्न कूड़ा एक गाड़ी के से एकत्र करना एक दिन में संभव नहीं है। ऐसे में 90 वार्ड हैं जिसे देखते हुए डिपो प्रभारियों ने कूड़ा गाड़ी के मोहल्लावार दिन निर्धारित कर दिए हैं। अर्थात एक मोहल्ले में कूड़ा गाड़ी आज पहुंच गई तो कल नहीं आएगी।
फेरे पूरे करने के दबाव में रास्ते में फेंक रहे
घर से कूड़ा लेकर चली डोर टू डोर कूड़ा गाड़ी को लोहिया नगर स्थित डंपिंग ग्राउंड में कूड़ा डालने जाना होता है लेकिन फेरे पूरे करने के दबाव में अक्सर गाड़िया रास्ते में पड़ने वाले ढलावघरों (स्थाई कूड़ाघर) में ही कूड़ा फेंक रही हैं। यही वजह है कि कंकरखेड़ा में एलआइसी के पास कूड़ा डंप होता है। दिल्ली रोड की तरफ बिजली बंबा बाइपास किनारे कूड़ा फेंका जाता है। हापुड़ रोड और सूरजकुंड की तरफ का कूड़ा ही लोहिया नगर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचता है। ढलावघरों से कूड़ा उठाने का काम ट्रैक्टर ट्रॉलियों और डंपर से होता है लेकिन इसका कोई समय निर्धारित नहीं है।
जिस दिन नहीं आती कूड़ा गाड़ी..
जिस दिन मोहल्ले में कूड़ा गाड़ी नहीं आती उस दिन लोगों के पास तीन विकल्प होते हैं। पहला यह कि या तो घर पर कूड़ा डंप करके गाड़ी के अगले चक्कर का इंतजार करें। निजी सफाई कर्मी को बुलाकर कूड़ा दे दें अथवा कूड़े को सड़क या नाले में फेंक दें। अक्सर कूड़ा नाले में ही फेंक दिया जाता है।
मार्केट और दुकानों का कूड़ा सड़क पर
दूसरी ओर शहर में 146 अस्थाई खत्ते हैं। ये अधिकतर प्रमुख सड़कों पर हैं। जहां बड़ी बाजार हैं या फिर दुकानों की संख्या अधिक है। यहां से निकलने वाला कूड़ा निजी सफाई कर्मियों के द्वारा अस्थाई खत्तों में ही फेंका जाता है, क्योंकि शहर में निजी सफाई कर्मियों के लिए कोई कूड़ाघर निर्धारित नहीं है। वह जहां पाते हैं वहीं कूड़ा फेंकते है। यह कूड़ा जब अधिक हो जाता है तब नगर निगम के ट्रैक्टर ट्रॉलियों व डम्पर के जरिए लोहिया नगर डंपिंग ग्राउंड भेजा जाता है। मार्केट में डस्टबिन रखे हैं लेकिन उठान की जिम्मेदारी तय नहीं होने के कारण कूड़े से भरे रहते हैं।
अभी तक क्या-क्या हुआ
-2010 तक ए टू जेड कंपनी के जिम्मे रही डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की कमान लेकिन कूड़ा निस्तारण प्लांट का प्रावधान नहीं था।
-एक दिसंबर 2016 में शोलापुर की कंपनी को निगम बोर्ड बैठक में कूड़ा निस्तारण प्लांट का काम देने का निर्णय लिया गया था।
-एक जनवरी 2017 को तत्कालीन महापौर हरिकांत अहलूवालिया ने गांवड़ी में कूड़ा निस्तारण प्लांट का शिलान्यास किया था।
-पांच नवंबर 2018 को शासन ने आइएलएंडएफएस कंपनी को कूड़ा निस्तारण प्लांट के लिए चयन कर लिया था।
-13 नवंबर को शासन द्वारा कंपनी चयन करने पर शोलापुर की कंपनी हाईकोर्ट चली गई और याचिका लगा दी।
-आठ माह से अधिक गुजर चुका है कूड़ा निस्तारण प्लांट को लेकर दोनों कंपनियों का चयन मामला हाई कोर्ट में लंबित है।
गाजियाबाद में हो सकता है तो मेरठ में क्यों नहीं?
कूड़ा निस्तारण प्लांट भले ही गाजियाबाद में नहीं है लेकिन गाजियाबाद नगर निगम ने कूड़े के पहाड़ लगाने के बजाय सेनेटरी लैंडफिल में कूड़ा निस्तारण का काम शुरू किया है। ऐसे तीन स्थान हैं। जहां खाली पड़ी जमीनों में गड्ढे खोदकर गीला कूड़ा दबाया जाता है। उससे प्लास्टिक कचरे को अलग कर लेते हैं। प्लास्टिक कचरे का एक प्लांट गाजियाबाद निगम ने लगाया है। प्लास्टिक को पिघलाकर उसका उपयोग सड़क बनाने में किया जा रहा है। सवाल ये है कि यह काम गाजियाबाद कर सकता है तो मेरठ क्यों नहीं?। यहां गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग नहीं हो रहा है। प्लास्टिक प्रोसेसिंग प्लांट नहीं है।
वर्जन:--
कूड़े का निस्तारण चुनौती है। हमारे पास कूड़ा निस्तारण प्लांट नहीं है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम-2016 के तहत बल्क कूड़ा जनरेटर की सूची तैयार बनाई है, जिन्हें खुद कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। गीला-सूखा कचरा अलग-अलग एकत्र करने पर जोर है। गांवड़ी में डंप कूड़े से पॉलीथिन अलग करने का काम शुरू हो चुका है। कूड़े की कंपोस्टिंग भी की जा रही है। मंगतपुरम में ईको पार्क विकसित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाने को लेकर दो कंपनियों का मामला हाई कोर्ट में लंबित है। हाईकोर्ट से स्टे आर्डर है। शासन के दिशा-निर्देश अनुसार काम किया जाएगा। फिलहाल नगर निगम लोहियानगर में कूड़े को डंप कर रहा है।
-डॉ. अरविंद कुमार चौरसिया, नगर आयुक्त