Move to Jagran APP

जिले में अब स्मॉग नहीं बल्कि बिजली पैदा करेगी पराली

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आइआइएफएसआर) मोदीपुरम, मेरठ और आइआइटी, दिल्ली ने अपने अनुसंधान में पराली से बिजली बनाने में सफलता पाई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 10:00 AM (IST)
जिले में अब स्मॉग नहीं बल्कि बिजली पैदा करेगी पराली
जिले में अब स्मॉग नहीं बल्कि बिजली पैदा करेगी पराली

मेरठ । धान कटने के बाद बची पराली से अब स्मॉग नहीं, बल्कि बिजली पैदा होगी। अक्टूबर के आखिरी और नवंबर के शुरुआती सप्ताह में दिल्ली-एनसीआर सहित वेस्ट यूपी के कई जिले स्मॉग की जद में आ जाते हैं। भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आइआइएफएसआर) मोदीपुरम, मेरठ और आइआइटी, दिल्ली ने अपने अनुसंधान में पराली से बिजली बनाने में सफलता पाई है। दोनों संस्थानों ने पंजाब के फाजिल्का जिले में पराली से रोजाना एक मेगावाट बिजली उत्पादन करने का पहला प्लांट स्थापित भी कर दिया है।

loksabha election banner

यह है बिजली बनाने की प्रक्रिया

आइआइटी दिल्ली के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राम चंद्र और आइआइएफएसआर, मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीपी चौधरी ने शोध में पाया कि एक हेक्टेयर धान के खेत में औसतन चार से छह टन पराली उत्पादित होती है। इसे जलाने पर लगभग 2150 किग्रा कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्पन्न होती है। पराली की यह समस्या पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश में ज्यादा होती है। शोध में इस पराली का उपयोग सामूहिक रूप से बायोगैस बनाने में किया गया। बायोगैस से मेथेनॉल बनाने के बाद बिजली उत्पादन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। दोनों वैज्ञानिकों ने बायोसीएनजी बनाने पर भी शोध किया है। पहले पराली से बायोगैस बनाई जाती है। बॉयोगैस से मेथेनॉल और मेथेनॉल से टरबाइन घुमाकर बिजली बनाई जा रही है। सीएनजी को वाहन ईधन के रूप में उपयोग किया जाता है।

पांच साल में कीमत वसूल देगा प्लांट

आइआइएफएसआर मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीपी चौधरी बताते हैं कि छोटे से छोटा प्लांट चलाने के लिए रोजाना न्यूनतम एक-डेढ टन पराली की जरूरत होती है। इससे 750 यूनिट बिजली रोजाना बनाई जा सकती है। आइआइटी दिल्ली के एसोसिएट प्रो. डॉ. रामचंद्र का कहना है कि प्लांट लगाने में 35 लाख रुपये खर्च आता है। एक बार लगाने के बाद प्लांट कम से कम 40 साल चलता है। कुल खर्चराशि पर केंद्र सरकार लगभग 30 प्रतिशत तक सब्सिडी देती है। प्लांट लगाने के बाद पांच साल में इसका कुल खर्च निकल आता है।

शोध वेस्ट यूपी के लिए बहुत कारगर

डॉ. रामचंद्र ने बताया कि पराली से बिजली बनाने का शोध वेस्ट यूपी के लिए बहुत कारगर है। हमने शोध के दौरान मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र, बिजनौर, सहारनपुर जिलों के धान बहुल इलाकों में जाकर पराली के अवशेषों को देखा। अधिकांश पराली को जलाया ही गया। शोध वेस्ट यूपी के लिए बहुत कारगर है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.