टिश्यू कल्चर से विकसित हुई गन्ने की नई प्रजाति, उत्तर प्रदेश में होगी बंपर पैदावार
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विवि में टिश्यू कल्चर से गन्ने की नई प्रजाति विकसित की गई है। 2020 से किसानों को वितरित होंगी।
मेरठ, [विवेक राव]। पूरे उत्तर प्रदेश में गन्ना प्रमुख नकदी फसल होने के बाद भी यहां के किसान अधिक पैदावार नहीं ले पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर चीनी की अच्छी रिकवरी भी नहीं मिल रही है, लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश में भी दक्षिण भारत की तरह गन्ने की बंपर पैदावार होगी। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान शाहजहांपुर से आईं गन्ने की तीन नई प्रजातियों को सरदार वल्लभ भाई कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में टिश्यू कल्चर विधि से विकसित किया जा रहा है। इन प्रजातियों से किसान भरपूर गन्ने की उपज ले सकेंगे। चीनी की रिकवरी बढ़ने से चीनी मिलों को भी फायदा होगा।
नई किस्में रोग प्रतिरोधक
दक्षिण भारत के किसान प्रति हेक्टेयर करीब 85 से 95 टन गन्ने की पैदावार करते हैं, जबकि उत्तर भारत के किसानों की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार महज 70 टन है। महाराष्ट्र में चीनी की औसत रिकवरी 14 प्रतिशत से अधिक है। उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी 11 प्रतिशत के करीब है। हालांकि गन्ने की 238 प्रजाति आने के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश में रिकवरी 12 के करीब पहुंच गई है। इसकी वजह से ज्यादातर किसान गन्ने की यही एक किस्म उगा रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालय में 238 प्रजाति को लेकर किए गए शोध में यह बात सामने आ रही है कि धीरे -धीरे 238 प्रजाति रोगग्रस्त हो रही है। इससे गन्ने की पैदावार और रिकवरी कम होने लगी है। कृषि विश्वविद्यालय में विकसित की जा रही नई किस्में रोग प्रतिरोधक होने के साथ कम लागत में अधिक पैदावार देंगी।तीन नई प्रजातियां विकसित
गन्ने की तीन किस्में कोसा 13235, कोसा 10239 और कोसे 13452 विकसित हुई हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय में गन्ने की इन प्रजातियों को टिश्यू कल्चर विधि से मल्टीप्लाई कर पौधे तैयार किए जा रहे हैं। एक गन्ने के टॉप से गन्ने के लाखों पौधे तैयार हो रहे हैं, जो पूरी तरह से रोगरहित हैं। विवि में टिश्यू कल्चर से तैयार इन गन्ने के पौधों को नवंबर 2020 से किसानों को वितरित किया जाएगा।
शोध से की विकसित
लंबे शोध के बाद ऐसी किस्में विकसित की गईं हैं, इससे उत्पादन के साथ चीनी की रिकवरी भी अच्छी होगी। गन्ने की इन प्रजातियों में रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक है। टिश्यू कल्चर विधि से पौधे तैयार होने की वजह से इसकी खेती भी सस्ती होगी। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। अगले साल ये नई प्रजातियों बोई जा सकेंगी।
- डॉ. आरएस सेंगर, बायोटेक्नोलॉजी विभाग, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विवि