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LokSabha Election 2019 : पश्चिमी उप्र में सूखती चली गई मुस्लिम राजनीति की नर्सरी

2019 में मजबूती से लड़ रहा सपा-बसपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस ने तमाम मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है। माना जा रहा है कि इस बार उनके संसद पहुंचने की डगर आसान होगी।

By Ashu SinghEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 05:10 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 05:10 PM (IST)
LokSabha Election 2019 : पश्चिमी उप्र में सूखती चली गई मुस्लिम राजनीति की नर्सरी
मेरठ, जेएनएन। लोकतंत्र की खूबसूरती ये भी है कि इसमें हर जाति-धर्म और पंथ के चेहरे समान अधिकार के साथ चुनावी जंग में उतरते हैं। लेकिन,वक्त के साथ ध्रुवीकरण की आंच पर जातीय समीकरण पिघल गए। पश्चिमी उप्र में जहां मुस्लिम चेहरों का दबदबा रहा,वहीं 2014 में एक भी अल्पसंख्यक संसद तक नहीं पहुंचा। 2019 में सूबे में मजबूती से लड़ रहा सपा-बसपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस ने तमाम मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है। माना जा रहा है कि इस बार उनके संसद पहुंचने की डगर आसान होगी।
मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 40 फीसद तक
पश्चिमी उप्र की तमाम सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 से 40 फीसद,जबकि रामपुर में 50 फीसद तक दर्ज की गई है। सपा-बसपा ने यहां से सपा के दिग्गज नेता आजम खान को टिकट दिया है। अमरोहा में कांग्रेस के टिकट पर राशिद अल्वी उतारे गए,लेकिन हवा का रुख भांपते हुए उन्होंने नाम वापस ले लिया। इस सीट पर गठबंधन के दानिश अली भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश करेंगे। सहारनपुर में कांग्रेस के इमरान मसूद मतदाताओं में गहरी पकड़ रखते हैं। किंतु गठबंधन ने यहां पर फजलुर्रहमान को टिकट देकर इमरान की डगर कठिन की है। बिजनौर में कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर दांव खेला है। हालांकि यहां भाजपा के कुंवर भारतेंद्र, बसपा के मलूक नागर के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। संभल में गठबंधन ने दिग्गज नेता शफीकुर्रहमान व मेरठ में पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी को मैदान में उतारा है।
मुस्लिम सांसदों की मजबूत विरासत
मुरादाबाद व रामपुर लोकसभा सीटों पर 1952 से अब तक 16 चुनावों में 11 बार मुस्लिम सांसद चुने गए। अमरोहा सीट पर 1952 से 1962 तक मौलाना मोहम्मद हिफजुर्रहमान रहमान ने लगातार तीन बार जीत दर्ज कर रिकार्ड बनाया। 1999 में इसी सीट से बसपा के टिकट पर राशिद अल्वी जीतकर संसद में पहुंचे। सहारनपुर सीट पर 1977 में जनता दल के टिकट पर रशीद मसूद ने जीत दर्ज की। इसके बाद मसूद ने 80, 89, 91 व 2004 में जीत दर्ज की। इस बीच 1999 में बसपा के टिकट पर मंसूर अली खान संसद पहुंचे।
सात बार मुस्लिम चेहरों को मिली जीत
मुजफ्फरनगर में 1952 से अब तक 16 बार चुनावों में सात बार मुस्लिम चेहरों को जीत मिली। इसी सीट पर 1989 में जनता दल के टिकट पर दिग्गज नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद जीते और गृह मंत्री बनाए गए। कैराना सीट पर 1967 से 2014 के बीच सात बार मुस्लिम प्रत्याशियों को जीत मिली। इसमें छह बार मुस्लिम गरुजर के खाते में सीट गई। मेरठ में 1952 से 62 तक कांग्रेस के शाहनवाज खान तीन बार विजयी हुए। 1971 में शाहनवाज फिर जीते। 1980 और 1984 में लगातार दो बार कांग्रेस की मोहसिना किदवई को जीत मिली। 2004 में बसपा के शाहिद अखलाक की जीत के साथ ही मेरठ पर कुल सात बार मुस्लिम चेहरा चुना जा चुका है।
यहां पर कम रहा मुस्लिम प्रतिनिधित्व
1967 में लोकसभा सीट बनी बागपत में आज तक एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं चुना गया। अलीगढ़ में 1957 में कांग्रेस के जमाल ख्वाजा, संभल में 2009 में बसपा के शफीकुर्रहमान बर्क और बिजनौर सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1957 में मोहम्मद अब्दुल लतीफ जीते। इन तीनों सीटों पर सिर्फ एक-एक बार अल्पसंख्यक प्रत्याशियों को जीत मिली। बुलंदशहर में 1980 में जनता दल सेक्यूलर के टिकट पर महमूद हसन खान और 1989 में जनता दल की ओर से सरवर हुसैन जीतकर संसद पहुंचे। 

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