बेटा याद आती है..घर कब आओगे
बेटा सुन तो..बहुत दिन हो गए तुझसे बात किए ठीक से तेरा चेहरा भी नहीं देख पा रही हूं। मम्मी प्लीज.. मैं कुछ दिन आपसे ज्यादा बात नहीं कर पाऊंगा। समझने की कोशिश करो कोई जरूरी बात हो तो वाट्सएप पर मैसेज छोड़ देना। हमारे और आपके बीच रहने वाले कुछ अभिभावक लंबे समय से ऐसी ही पीड़ा से गुजर रहे हैं।
मेरठ, जेएनएन। बेटा सुन तो..बहुत दिन हो गए तुझसे बात किए, ठीक से तेरा चेहरा भी नहीं देख पा रही हूं। मम्मी प्लीज.. मैं कुछ दिन आपसे ज्यादा बात नहीं कर पाऊंगा। समझने की कोशिश करो, कोई जरूरी बात हो तो वाट्सएप पर मैसेज छोड़ देना। हमारे और आपके बीच रहने वाले कुछ अभिभावक लंबे समय से ऐसी ही पीड़ा से गुजर रहे हैं। जिगर के टुकड़े को देखना तो दूर उसकी आवाज भी कभी-कभार मोबाइल पर सुनने को मिलती है। जी हां, कोरोना महामारी में दूसरों को जीवनदान देने वाले डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के परिवार का हाल कुछ ऐसा ही है। दैनिक जागरण ने गुरुवार को ऐसे ही कुछ परिवारों से उनके मन की पीड़ा साझा की। स्वजन बच्चों को याद कर भावुक हो गए, दूसरे ही क्षण ये भी बोले कि हमें गर्व है कि संकट की इस घड़ी में बेटा देश के काम आ रहा है। पेश से बातचीत के कुछ अंश..
बेटे को दूर से देखकर निकल आए
डा. अनिरुद्ध गुप्ता के पिता डा. अनुराग गुप्ता फिजीशियन व मां डा. नीना गुप्ता गायनकोलोजिस्ट हैं। अनिरुद्ध पिछले सप्ताह कोविड-19 वार्ड में मरीजों का इलाज करने के बाद एक होटल में क्वारंटाइन में हैं। वो 25 दिन से अपने रेलवे रोड स्थित घर नहीं जा सके। मां-बाप जब भी बेटे को देखने मेडिकल कॉलेज गए, दूर से हाथ हिलाकर वापस लौटना पड़ा। मां डा. नीना ने बताया कि बेटे ने डा. आर्य के कुशल मार्गदर्शन में 14-14 घंटे की डयूटी की। डाक्टर व नर्से बिल्कुल युद्ध के मैदान में हैं। गर्व है कि बेटा भी एक योद्धा है।
हमने भी देश की सेवा की, बेटा भी
डा. पंकज जैनिया के पिता ओमवीर सिंह मेरठ में यूपीपी के सब इंसपेक्टर रहे हैं। वे मिलिट्री परिसर में रहते हैं। बात करते हुए ओमवीर के जजबात छलक पड़ते हैं। वे कहते हें कि पंकज की मां तो बेटे के लिए बहुत तड़पी। किंतु मैंने खुद को मजबूत रखा। बेटे से मिलने की इजाजत नहीं थी। अब क्वारंटाइन में है, किंतु मन तो लगा है। आगे भी कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए प्रेरित करता हूं।
मैं बनारस में हूं, मन मेरठ पर अटका है
कोविड-19 वार्ड में काम करने वाले डा. धीरेंद्र प्रताप सिंह के पिता भानुप्रताप सिंह बनारस में रहते हैं। वे कहते हैं कि बेटा बहादुरी से काम कर रहा है, किंतु मां-बाप तो चिंता में भी पड़ते हैं। फिर देश सेवा की भावना से खुद को संभालते हैं। उन्होंने कहा कि धीरेंद्र की मां पुष्पा सिंह का मन मेरठ में बेटे के पास लगा रहता है।
बेटे को काढ़ा पीकर वार्ड में जाने के लिए कहा
कोविड-19 में रोजाना मरीजों से रूबरू हो रहे डा. कार्तिकेय त्यागी के पिता डा. संजय त्यागी नई दिल्ली के शहादरा में प्रैक्टिस करते हैं। मां नीलम त्यागी दिल्ली सरकार के स्कूल में शिक्षिका हैं। पिता डा. संजय ने बेटे को गिलोय, तुलसी, काली मिर्च और लौंग का काढ़ा बनाने की विधि का वीडियो भेजा। कार्तिकेय ने इंडक्शन पर काढ़ा बनाया। रोज पीकर ही वार्ड में जाते हैं। मां नीलम को गर्व है कि बेटा वार्ड में योद्धा के रूप में लड़ रहा है।
मैं बीपी की मरीज हूं पर बेटे को नहीं रोका
कोविड-19 में वार्ड ब्वाय मयंक लौर की मां सरला लौर ब्लडप्रेशर की मरीज हैं। कई बार आपरेशन भी हुए हैं। अपना पति खोने के बाद बच्चों का ही सहारा है। वो मयंक को जिम्मेदार बेटा मानती हैं। 27 मार्च को मयंक घर से डयूटी के लिए निकले हैं, और अब 17 अप्रैल को मां से मुलाकात होगी। सरला कहती हैं कि संक्रमण के बीच काम करने वाले बेटे को मनोबल बढ़ाकर रखूंगी।
शादी के 15 दिन बाद ही कोरोना से जंग में जुटे
कोविड-19 वार्ड में मरीजों का इलाज कर रहे डा. पवन चौधरी का परिवार बस्ती में रहता है। पिता पिछले वर्ष फरवरी में एक हादसे का शिकार हो गए। मां तीर्थवती रोज शाम को बेटे को फोन लगाकर एक बार जरूर बात करती हैं। मां कहती हैं कि बेटा ड्यूटी निभाकर एक बार जल्दी से बस्ती आओ। बहन पुनीता भी मनोबल बढ़ाती हैं। डा. पवन की 25 फरवरी को शादी थी, और दस मार्च को मेरठ निकल गए। पत्नी घर पर हैं।
नर्स बेटी का हर रोज हौसला बढ़ाती है मां
स्टाफ नर्स अंजू रानी कोविड-19 टीम में मरीजों की देखभाल कर रही हैं। पुरकाजी मजफ्फरनगर की रहने वाली अंजू के पिता प्रेमचंद और मां कुसुम देवी गांव में रहते हैं। अंजू अक्षरधाम स्थित अपने मामा के घर पर रही। मामा डा. रामबीर सिंह चिकित्सक हैं। अंजू की मां कुसुम देवी अपनी बेटी से रोज रात में बात करती हैं। कहती हैं..बेटी घबराना नहीं है।
दो माह बाद ही मिलेगा मेरा योद्धा
डा. मनु चौधरी के माता-पिता बुलंदशहर के जहांगीराबाद में रहते हैं। पिता अशोक चौधरी ने बताया कि बेटा दो माह बाद मिलेगा। बात भी ठीक से न हो पाई। पर जितना सुना, उतना मन गदगद हुआ। आखिर सरकार ने क्यों इन लोगों को पढ़ाया है, जब ऐसे वक्त में भी न खड़े होंगे तो। डा. मनु की माता सुमन देवी संक्रमण को लेकर चिंतित रहती हैं।