आज की भूसा मंडी कभी कैप्टन क्रेगी का बंगला था
1857 की क्रांति से जुड़ी हुई हैं बंगला नंबर 240 की यादें। आज जहां भूसा मंडी है और लोगों की झुग्गी-झोपड़ी, मकान-कबाड़ फैला हुआ है वह कभी एक अंग्रेज अफसर का बंगला हुआ करता था।
By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 12:44 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 12:44 PM (IST)
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। वेस्ट एंड रोड से जब आप भूसा मंडी के कोने पर पहुंचेंगे तो बायीं तरफ ही एक बड़ा सा भू-भाग है। उसकी दीवारें तो पुरानी ही हैं लेकिन अंदर की तस्वीर बदरंग हो गई है। 1857 की क्रांति के समय बंगला नंबर 240 में दो मंजिला इमारत थी। उस इमारत में तीसरी भारतीय अश्वारोही सेना रेजीमेंट के कैप्टन एचसी क्रेगी और उनकी पत्नी रहते थे। इस बंगले के दक्षिणी छोर की दीवार से एक मजार लगी होती थी। समय के साथ बंगले की दो मंजिला इमारत और मजार का अस्तित्व नहीं रह गया है। भारतीय सिपाहियों के रेजीमेंट के अफसर इसी इलाके के बने बंगलों में रहते थे। उन्हीं बंगलों में से एक था बंगला नंबर 240। 1857 की क्रांति की कुछ यादें इस बंगले से भी जुड़ी हुई हैं।
बंगले से भागकर मजार में छिप गए थे
जिस दिन क्रांति फूटी थी, उस शाम थर्ड लाइट कैवेलरी के कैप्टन एचसी क्रेगी और उनके साथी अधिकारी लेफ्टिनेंट एआरडी मैकेंजी क्रांतिकारियों से बचते बचाते बंगले में पहुंचे। आक्रमण तेज हो गया और बंगले में जब ये खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे तो कैप्टन पत्नी, अपने लेफ्टिनेंट दोस्त और उसकी बहन के साथ बंगले से लगे मजार में जो छिपे। उस वक्त उनके साथ छठी ड्रैगून गाड्र्स का सैनिक भी था। इन सभी लोगों को सदर बाजार इलाके से भाग रहीं महिलाओं ने अपनी बग्घी में छिपते-छिपाते आबू नाले के पार सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। ये सभी उस अहम घटना के साक्षी थे। उस वक्त कुछ अश्वारोही सैनिकों ने ही उन महिलाओं की मदद की और उन्हें सुरक्षित बचाए रखा। जबकि बाकी अश्वारोही सैनिक दिल्ली की ओर कूच कर गए थे।
अंधेरा बढ़ा तो बाकी भी पहुंच गए थे आबू नाले पार
उस वक्त आबू नाले के उत्तर में अंग्रेजी अफसरों का ठिकाना था। अंग्रेजों की तीन रेजीमेंट भी आबू नाले के पार ही थी, जबकि आबू नाले के इस पार भारतीय सिपाहियों की रेजीमेंट रहती थी। भारतीय रेजीमेेंट्स के अंगे्रज अफसर भी इनकी लाइनों के आसपास के बने बंगलों में रहते थे। लिहाजा जब शाम ढलने लगी और रात का अंधेरा बढऩे लगा तो क्रांतिकारी भी दिल्ली की ओर कूच करने की योजना बनाकर बढ़ चुके थे। जो अश्वारोही सैनिक अंग्रेज महिलाओं को सुरक्षित बनाए हुए थे, वे भी अब अपने साथियों का साथ देने दिल्ली की ओर बढ़ चले। लिहाजा माहौल को अपने अनकूल देख सदर बाजार क्षेत्र में छिपे अन्य ब्रितानी लोग भी रात के अंधेरे में आबू नाले के उस पार भाग निकले।
बंगले से भागकर मजार में छिप गए थे
जिस दिन क्रांति फूटी थी, उस शाम थर्ड लाइट कैवेलरी के कैप्टन एचसी क्रेगी और उनके साथी अधिकारी लेफ्टिनेंट एआरडी मैकेंजी क्रांतिकारियों से बचते बचाते बंगले में पहुंचे। आक्रमण तेज हो गया और बंगले में जब ये खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे तो कैप्टन पत्नी, अपने लेफ्टिनेंट दोस्त और उसकी बहन के साथ बंगले से लगे मजार में जो छिपे। उस वक्त उनके साथ छठी ड्रैगून गाड्र्स का सैनिक भी था। इन सभी लोगों को सदर बाजार इलाके से भाग रहीं महिलाओं ने अपनी बग्घी में छिपते-छिपाते आबू नाले के पार सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। ये सभी उस अहम घटना के साक्षी थे। उस वक्त कुछ अश्वारोही सैनिकों ने ही उन महिलाओं की मदद की और उन्हें सुरक्षित बचाए रखा। जबकि बाकी अश्वारोही सैनिक दिल्ली की ओर कूच कर गए थे।
अंधेरा बढ़ा तो बाकी भी पहुंच गए थे आबू नाले पार
उस वक्त आबू नाले के उत्तर में अंग्रेजी अफसरों का ठिकाना था। अंग्रेजों की तीन रेजीमेंट भी आबू नाले के पार ही थी, जबकि आबू नाले के इस पार भारतीय सिपाहियों की रेजीमेंट रहती थी। भारतीय रेजीमेेंट्स के अंगे्रज अफसर भी इनकी लाइनों के आसपास के बने बंगलों में रहते थे। लिहाजा जब शाम ढलने लगी और रात का अंधेरा बढऩे लगा तो क्रांतिकारी भी दिल्ली की ओर कूच करने की योजना बनाकर बढ़ चुके थे। जो अश्वारोही सैनिक अंग्रेज महिलाओं को सुरक्षित बनाए हुए थे, वे भी अब अपने साथियों का साथ देने दिल्ली की ओर बढ़ चले। लिहाजा माहौल को अपने अनकूल देख सदर बाजार क्षेत्र में छिपे अन्य ब्रितानी लोग भी रात के अंधेरे में आबू नाले के उस पार भाग निकले।
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