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वर्दी वाला: बदलाव में मेरठ पुलिस की मित्रता, हाल हीं में उसकी झलक भी देखने को मिली Meerut News

अगर कोई खुद को नहीं बदल पाता है तो वह भविष्य में अपना अस्तित्व खो बैठता है। मेरठ में एडीजी प्रशांत कुमार दशकों से चली आ रही पुलिस की कार्यशैली में बदलाव लाने का प्रयास भी कर रहे है

By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 04:01 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 04:01 PM (IST)
वर्दी वाला: बदलाव में मेरठ पुलिस की मित्रता, हाल हीं में उसकी झलक भी देखने को मिली Meerut News
वर्दी वाला: बदलाव में मेरठ पुलिस की मित्रता, हाल हीं में उसकी झलक भी देखने को मिली Meerut News

मेरठ, [सुशील कुमार]। महान वैज्ञानिक डॉर्विन मानते थे कि दुनिया में प्रत्येक क्र‍िया, वस्तु, जीव और अन्य तत्व, बदलते दौर के साथ खुद में बदलाव कर लेते हैं ..और, अगर कोई खुद को नहीं बदल पाता है तो वह भविष्य में अपना अस्तित्व खो बैठता है। सवाल यहां मेरठ पुलिस का है। एडीजी प्रशांत कुमार दशकों से चली आ रही पुलिस की कार्यशैली में बदलाव लाने का प्रयास भी कर रहे हैं। अपराधियों को सबक सिखाने के साथ-साथ पब्लिक को भी दोस्त बनाने की कवायद में जुटे हैं। हाल में उसकी एक झलक शहर में देखने को मिल भी गई। नव वर्ष पर पुलिस ने कुष्ठ आश्रम में कुष्ठ रोगियों और प्रेम निवास में बेसहारा लोगों के साथ समय बिताया। उन्हें खाना खिलाकर पुलिस मित्र का संदेश दिया। यहां पर सिर्फ थाना प्रभारी हीं नहीं, बल्कि अफसर भी पहुंचे थे, जो कुष्ठ रोगियों की सेवा कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।

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बंगले की खिचड़ी का इंतजार

शनिवार के इंतजार में खाकीवालों को छह दिन गुजारने पड़ते हैं, पर यह इंतजार बड़ा लंबा होता है। हो भी क्यों न, इस दिन बंगले में खिचड़ी जो बांटी जाती है। बंगला भी कमांडर का है सो यहां की खिचड़ी को अफसर भी प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं। सप्ताह में मीनू बदल भी जाता है। खिचड़ी की जगह हलवा आ जाता है। सब बड़े चाव से खाते हैं। किसी की मजाल है जो खिचड़ी/हलवा लेने से मना कर दे। बल्कि खिचड़ी बंटने का समय भी तय है, समय होते ही कुछ अधीनस्थ तो फाइल उठाकर बंगले पर पहुंच जाते हैं। खिचड़ी और हलवा का वितरण पूजा के बाद होता है। उसे वितरित भी मैडम करती हैं। कुछ अपने पदों पर विराजमान रहने के लिए तो कोई नया पद पाने के लिए प्रसाद ग्रहण करता है। हां, प्रसाद ग्रहण करते वक्त साहब का मूड भांप कुछ लोग अवकाश भी मांग लेते हैं।

अब हालात कुछ यूं बदले

मौसम सर्दी का है। ऐसे में कंपकंपी छूटना आम बात है लेकिन अफसरों की कंपकंपी छूट जाए, ये मुमकीन नहीं है। क्योंकि उनके बंगले से लेकर कार और ऑफिस तक हीटर जो लगे हैं। अफसरों की कंपकंपी सर्दी की नहीं है, रेंज में एडीजी का खौफ था। उनका हस्ताक्षर हुआ कागज सामने आ जाए तो खाकीवाले हर काम छोड़ सबसे पहले कार्रवाई करते थे। आखिर यह खौफ इतना क्यों था, चर्चा है प्रदेश के मुखिया से उनके सीधे ताल्लुकात हैं। रेंज में रहते हुए साहब ने गाजियाबाद और नो

अपनी कप्तानी में पड़ा तस्करा

बात हाल के दिनों की है। प्रदेश में कमिश्नर प्रणाली लागू हुई तो रेंज के अफसर बदल गए। इसपर कुछ पुलिसवालों ने राहत महसूस की। एडीजी साहब ने रेंज में पुलिसकर्मियों का हाथ जो टाइट कर दिया था। नये आइजी की तैनाती होने के बाद सब कुंडली खंगालने में लग गए, कुछ ने फोन पर सीधे ही संपर्क भी कर लिया है। दरअसल, आइजी साहब पहले से जोन के परिचित जो हैं। 


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