मेरठ नगर निगम बढ़ाएगा अपनी आमदनी, कमाएगा 100 करोड़
मेरठ (अनुज शर्मा)। आपको भी यह सच जानकर आश्चर्य होगा कि हर साल लगभग 500 करोड़ रुपये के लेन-देन
मेरठ (अनुज शर्मा)। आपको भी यह सच जानकर आश्चर्य होगा कि हर साल लगभग 500 करोड़ रुपये के लेन-देन का बजट बनाने वाले मेरठ नगर निगम की अपने स्त्रोतों से आय मात्र 32 करोड़ है। जबकि यहां संभावनाएं तमाम हैं। ऐसा ही हाल प्रदेश के अधिकांश नगर निकायों का है। अपनी क्षमता के मुताबिक आमदनी कहीं नहीं हो रही है। मेरठ नगर निगम की आय को 100 करोड़ तक पहुंचाने के लिए 27 मार्च को कमिश्नरी सभागार में मंथन होगा। नगर पालिका वित्तीय संसाधन विकास बोर्ड ने मंडल स्तरीय समीक्षा बैठक बुलाई है। जिसमें कमिश्नर के साथ साथ बोर्ड अध्यक्ष, सेवानिवृत आइएएस अफसर तथा एक्सपर्ट हालात की समीक्षा करके सलाह देंगे।
चाहे तो बढ़ा सकते हैं आमदनी
नगर निगम की कम आय और बदतर हालात के लिए सीधे सीधे निगम अफसरों की कार्यप्रणाली जिम्मेदार है। वे चाहें तो निगम की आय को बढ़ा सकते हैं लेकिन करना नहीं चाहते हैं। निगम की आय का अहम स्त्रोत हाउस टैक्स और वाटर टैक्स है। दोनों से औसतन 28 करोड़ वसूली होती है। जबकि शहर में लगभग 40 फीसदी भवनों पर टैक्स ही नहीं लगा है। टैक्स की दरें भी 2002 के बाद बदली नहीं गई हैं। कामर्शियल भवनों के लिए नियमावली 2013 बनाई गई लेकिन उसे भी यहां लागू नहीं किया गया। यही हाल जलकर और जलमूल्य की वसूली का है। शहर में पेयजल के वैध कनेक्शन तो काफी कम हैं, अवैध कनेक्शन उनके कई गुना अधिक हैं। ये लोग बिना पैसा दिये ही पेयजल को नालियों में बहा रहे हैं।
विज्ञापन कर की वसूली में खेल तो किसी से भी नहीं छिपा है। इस मद में निगम हर साल मात्र 1.20 करोड़ की आय दिखाता है जबकि पूरा शहर होर्डिग से पटा रहता है। ईमानदारी से वसूली की जाये तो विज्ञापन कर से निगम 20 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर सकता है।
27 को बनेगी बदलाव की योजना
नगर निकायों की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा आय बढ़ाने के उद्देश्य से गठित नगर पालिका वित्तीय संसाधन विकास बोर्ड ने अब इस दिशा में काम शुरू किया है। बोर्ड अध्यक्ष राकेश गर्ग (सेवानिवृत आइएएस) ने मेरठ मंडल के सभी नगर निकायों की कार्यशाला और समीक्षा बैठक 27 को कमिश्नरी सभागार में बुलाई है। जिसमें अध्यक्ष समेत बोर्ड के दो सेवानिवृत आइएएस सदस्य तथा एक्सपर्ट निकायों में संपत्ति कर व अन्य करों का पारदर्शी तरीके से निर्धारण करने, उनके समस्त डाटा का डिजिटलाइजेशन करने, स्वकर निर्धारण की प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के लिए योजना बनाएंगे।
समीक्षा में खुलेगी पोल, अफसर पसीना-पसीना
निगम के अफसर परेशान हैं। दरअसल नये भवनों पर हाउस टैक्स लगाने, पुराने भवनों पर कर निर्धारण और वसूली में से कोई भी कार्य मानकों के अनुरूप नहीं है। ऐसा ही हाल जलकर, विज्ञापन कर तथा किराया आदि मदों में है। निकाय की संपत्तियां भी लावारिस हैं। गहनता से समीक्षा होगी तो पोल खुलेगी। जिसके डर से अफसर पसीना-पसीना हो रहे हैं।
आमदनी बढ़ाने को सौ से ज्यादा सवाल
- निकाय की आय और व्यय
- जीआइएस सर्वे हुआ है या नहीं
- निगम के बिजली कनेक्शन की संख्या
- निगम की संपत्तियों की संख्या
- भवनों के यूनीक आइडी कोड बने या नहीं
- हाउस टैक्स से कोई भवन नहीं छूटा है, फील्ड स्टाफ से हर तीन महीने में प्रमाणपत्र
- प्रमाणपत्र न देने वालों पर कार्रवाई क्या की
- स्वकर निर्धारण प्रणाली लागू है या नहीं
- नियमावली 2013 लागू हुई या नहीं, क्या कठिनाई
- हाउस टैक्स की दरों को कब से नहीं बदला
- टैक्स ऑनलाइन जमा होता है अथवा नहीं, उसके माध्यम
- पेयजल के नगर में कितने संयोजन, दर, मांग के सापेक्ष वसूली
- पेयजल के अवैध कनेक्शन
- निगम की संपत्तियां, कितनी आय, अवैध कब्जों पर कार्रवाई
- विज्ञापन कर की मांग और वसूली, उपविधि और नियमावली की स्थिति
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जितना कमाएंगे शहर पर खर्च होगा
अपने संसाधनों से होने वाली निगम की आय को बोर्ड फंड का नाम दिया जाता है। इस राशि का शत प्रतिशत उपयोग शहर के विकास पर किया जाता है। सीधी सी बात है कि यदि निगम की आय बढ़ेगी तो शहर में तेजी से विकास होगा।
नगर आयुक्त मनोज चौहान ने बताया कि बोर्ड का यह अच्छा प्रयास है। जिससे निकायों के हालात सुधरेंगे। लापरवाह अफसरों और कर्मचारियों पर सख्ती होगी। आय बढ़ेगी तो शहर में विकास कराने के लिए पैसा उपलब्ध होगा।