मेरठ की आबोहवा में फल-फूल रहा स्वाइन फ्लू का वायरस, ऐसे करें बचाव
स्वाइन फ्लू के लिए मेरठ की हवा सबसे मुफीद साबित हो रही है। यह वायरस शहर में तेजी से फैल रहा है। अकेले मेरठ में 27 मरीज सामने आ चुके हैं।
By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 11:58 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 11:58 AM (IST)
मेरठ, जेएनएन। स्वाइन फ्लू के वायरस को मेरठ की आबोहवा रास आने लगी है। यहां एच1एन1 वायरस खतरनाक रूप से संक्रमित हो रहा है। प्रदेश में जहां कुल दर्जनभर मरीज मिले हैं, वहीं अकेले मेरठ में 27 लोगों में वायरस की पुष्टि हुई है। तीन की मौत भी हो गई, जिससे स्वास्थ्य विभाग की सांसें अटकी हैं।
2017-18 में भी सर्वाधिक मौतें
2017 में गर्मी के मौसम में स्वाइन फ्लू वायरस फैला और बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आए। मेरठ में 25 से ज्यादा मरीजों की जान गई, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा थीं। वायरस में हल्का म्यूटेशन होने से हर्ड इम्युनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता) नाकाम हो गई। इस दौरान लखनऊ में एक हजार से ज्यादा, जबकि मेरठ में करीब पांच सौ मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलोजी विभाग में दो हजार से ज्यादा सैंपलों की जांच की गई थी। 2018-19 में मेरठ के मरीजों में वायरस मिलने का सिलसिला जारी है। तीन माह पहले मेरठ में बीमारी एक बार फिर उभरी और बंद हो गई किंतु गत दस दिन से नियमित रूप से नए मरीज मिल रहे हैं।
अब तक 27 पाजिटिव
मेडिकल कालेज के माइक्रोबॉयोलोजिस्ट डा. अमित गर्ग ने बताया कि मरीजों में एच1एन1 की पुष्टि लगातार हो रही है। तीन मामलों में पूरा परिवार वायरस की चपेट में आया। गाजियाबाद, नोएडा, शामली, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, बिजनौर एवं सहारनपुर में भी मरीज मिल रहे हैं। गुरुवार को एक और मरीज में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। उधर, लखनऊ में अब तक 20, जबकि आगरा में महज एक मरीज में वायरस मिला है।
कमजोर फेफड़ों पर घातक है वायरस
मेरठ में वायु प्रदूषण, एलर्जी, शुगर एवं अस्थमा ज्यादा होने से स्वाइन फ्लू जल्द संक्रमित होता है। सांस के मरीजों में यह वायरस निमोनिया बना देता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों में एच1एन1 वायरस फेफड़ों में सूजन बना देता है। इन्हीं वजहों से मरीज की जान भी जाती है।
इनका कहना है
मेरठ में सूबे के अन्य जिलों की अपेक्षा ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। संभव है कि यहां की आबोहवा में वायरस तेजी से संक्रमित हो रहा है। हाईप्रोटीन खानपान रखें। सफाई करने के साथ ही मास्क लगाएं।
-डा. राजकुमार, सीएमओ
एच1एन1 वायरस गले से जब फेफड़े की ओर बढ़ने लगता है तो खतरनाक है। इसके संक्रमण से फेफड़े सफेद पड़ जाते हैं। आइसीयू से कई मरीज रिकवर नहीं कर पाते हैं। बचाव पर ज्यादा ध्यान दें।
-डा. वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ
2017-18 में भी सर्वाधिक मौतें
2017 में गर्मी के मौसम में स्वाइन फ्लू वायरस फैला और बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आए। मेरठ में 25 से ज्यादा मरीजों की जान गई, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा थीं। वायरस में हल्का म्यूटेशन होने से हर्ड इम्युनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता) नाकाम हो गई। इस दौरान लखनऊ में एक हजार से ज्यादा, जबकि मेरठ में करीब पांच सौ मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलोजी विभाग में दो हजार से ज्यादा सैंपलों की जांच की गई थी। 2018-19 में मेरठ के मरीजों में वायरस मिलने का सिलसिला जारी है। तीन माह पहले मेरठ में बीमारी एक बार फिर उभरी और बंद हो गई किंतु गत दस दिन से नियमित रूप से नए मरीज मिल रहे हैं।
अब तक 27 पाजिटिव
मेडिकल कालेज के माइक्रोबॉयोलोजिस्ट डा. अमित गर्ग ने बताया कि मरीजों में एच1एन1 की पुष्टि लगातार हो रही है। तीन मामलों में पूरा परिवार वायरस की चपेट में आया। गाजियाबाद, नोएडा, शामली, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, बिजनौर एवं सहारनपुर में भी मरीज मिल रहे हैं। गुरुवार को एक और मरीज में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। उधर, लखनऊ में अब तक 20, जबकि आगरा में महज एक मरीज में वायरस मिला है।
कमजोर फेफड़ों पर घातक है वायरस
मेरठ में वायु प्रदूषण, एलर्जी, शुगर एवं अस्थमा ज्यादा होने से स्वाइन फ्लू जल्द संक्रमित होता है। सांस के मरीजों में यह वायरस निमोनिया बना देता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों में एच1एन1 वायरस फेफड़ों में सूजन बना देता है। इन्हीं वजहों से मरीज की जान भी जाती है।
इनका कहना है
मेरठ में सूबे के अन्य जिलों की अपेक्षा ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। संभव है कि यहां की आबोहवा में वायरस तेजी से संक्रमित हो रहा है। हाईप्रोटीन खानपान रखें। सफाई करने के साथ ही मास्क लगाएं।
-डा. राजकुमार, सीएमओ
एच1एन1 वायरस गले से जब फेफड़े की ओर बढ़ने लगता है तो खतरनाक है। इसके संक्रमण से फेफड़े सफेद पड़ जाते हैं। आइसीयू से कई मरीज रिकवर नहीं कर पाते हैं। बचाव पर ज्यादा ध्यान दें।
-डा. वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ
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