Meerut Election Result 2019: मोदी सुनामी में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फंसा भगवा रथ
Meerut Election Result 2019 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी 14 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इस बार सात सीट पर हार मिली।
By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 01:05 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 01:05 PM (IST)
मेरठ [संतोष शुक्ल]। पश्चिम उप्र को भाजपा बेशक लकी मानती रही है, लेकिन इस बार भगवा रथ का पहिया कई जगह फंसा। 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा की झोली में आई सभी 14 सीटों में से सात गंवानी पड़ी। मेरठ, बागपत व मुजफ्फरनगर सीटों पर भी भाजपा मुश्किल से जीत सकी। वहीं, पूर्वाचल के मुकाबले गठबंधन ने पश्चिमी उप्र में भाजपा को ज्यादा नुकसान पहुंचाया।
लहर कायम पर जीत की गारंटी नहीं
2014 की मोदी लहर 2019 में भी बरकरार रही, किंतु इस बार सफर आसान नहीं था। यूपी में सपा-बसपा के हाथ मिलाने के बाद तीन दर्जन से ज्यादा सीटों के समीकरण गठबंधन के पक्ष में नजर आ रहे थे। खासकर, पश्चिमी में मुस्लिम मतों की तादाद ज्यादा होने से भाजपा के सामने प्रदर्शन दोहराने की कड़ी चुनौती थी। 2014 में सपा, बसपा और रालोद ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। भाजपा ने 2014 में पश्चिमी यूपी से चुनावी शंखनाद किया था। मोदी फैक्टर का असर ये रहा कि मुरादाबाद, रामपुर, कैराना एवं मेरठ जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा ने क्लीन स्वीप कर दिया, किंतु 2019 में भाजपा बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, नगीना और सहारनपुर की सीटें गंवा बैठी। हालांकि कई सीटों पर भाजपा ने 2014 से ज्यादा मत प्राप्त किया, लेकिन गठबंधन का व्यूह नहीं भेद पाए। उधर, मेरठ-हापुड़, मुजफ्फरनगर एवं बागपत में भाजपा ने जीत तो हासिल की, किंतु इसका अंतर बेहद कम रहा। उधर, कैराना में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी ने सांसद व सपा प्रत्याशी तबस्सुम हसन पर अप्रत्याशित जीत दर्ज कर सियासी पंडितों को हैरान कर दिया। उधर, गाजियाबाद व नोएडा सीट पर भाजपा की जीत पहले से भी तय मानी जा रही थी।
आधा दर्जन सीटों पर सूखा कमल
देश की नंबर एक सीट सहारनपुर पर भाजपा उम्मीदवार राघव लखनपाल की जनता से दूरी का असर साफ नजर आया। इस सीट पर मुस्लिम मतों के बिखराव के बावजूद बसपा के हाजी फजलुर्रहमान ने भाजपा को शिकस्त दे दी। बिजनौर में कुंवर भारतेंद्र भी सांसद रहते जनता के दिल में उतर नहीं पाए। 2019 में बसपा प्रत्याशी मलूक नागर ने उन्हें गठबंधन के व्यूह में फंसा लिया। यहां पर कांग्रेस के टिकट पर दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी लड़े, किंतु वो मुस्लिमों का वोट नहीं काट पाए। पड़ोस की सुरक्षित सीट नगीना पर भाजपा के डा. यशवंत भी विरोध की लहर में फंस गए। अमरोहा में भाजपा के कंवर सिंह तंवर जमीनी पकड़ नहीं बना पाए। सपा-बसपा के वोटों के मिलने के साथ ही बसपा के टिकट पर उतरे दानिश अली ने आसानी से तंवर को शिकस्त दे दी। रामपुर में तमाम घेरेबंदी के बावजूद सपा नेता आजम खान ने दो बार सांसद रहीं जयाप्रदा को जातीय समीकरण के दम पर हरा दिया। मुरादाबाद में भाजपा के सर्वेश सिंह जीत दोहरा नहीं सके। गठबंधन प्रत्याशी सपा के डॉ. एसटी हसन ने उन्हें बड़े अंतर से शिकस्त दी। संभल सीट पर सपा के शफीकुर्रहमान बर्क का सियासी तजुर्बा रंग लाया। उन्होंने भाजपा के रामेश्वर सैनी को डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से हराया। इधर, मेरठ, मुजफ्फरनगर एवं बागपत में भाजपा हांफते हुए अंतिम क्षणों में विजयी गोल दाग सकी। क्षेत्रीय अध्यक्ष अश्विनी त्यागी का कहना है कि पार्टी का प्रदर्शन बेहद शानदार है। पश्चिमी उात्त्र प्रदेश की कई सीट पर भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है, किंतु यह हर बार जीत की गारंटी नहीं बन पाता है।
लहर कायम पर जीत की गारंटी नहीं
2014 की मोदी लहर 2019 में भी बरकरार रही, किंतु इस बार सफर आसान नहीं था। यूपी में सपा-बसपा के हाथ मिलाने के बाद तीन दर्जन से ज्यादा सीटों के समीकरण गठबंधन के पक्ष में नजर आ रहे थे। खासकर, पश्चिमी में मुस्लिम मतों की तादाद ज्यादा होने से भाजपा के सामने प्रदर्शन दोहराने की कड़ी चुनौती थी। 2014 में सपा, बसपा और रालोद ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। भाजपा ने 2014 में पश्चिमी यूपी से चुनावी शंखनाद किया था। मोदी फैक्टर का असर ये रहा कि मुरादाबाद, रामपुर, कैराना एवं मेरठ जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा ने क्लीन स्वीप कर दिया, किंतु 2019 में भाजपा बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, नगीना और सहारनपुर की सीटें गंवा बैठी। हालांकि कई सीटों पर भाजपा ने 2014 से ज्यादा मत प्राप्त किया, लेकिन गठबंधन का व्यूह नहीं भेद पाए। उधर, मेरठ-हापुड़, मुजफ्फरनगर एवं बागपत में भाजपा ने जीत तो हासिल की, किंतु इसका अंतर बेहद कम रहा। उधर, कैराना में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी ने सांसद व सपा प्रत्याशी तबस्सुम हसन पर अप्रत्याशित जीत दर्ज कर सियासी पंडितों को हैरान कर दिया। उधर, गाजियाबाद व नोएडा सीट पर भाजपा की जीत पहले से भी तय मानी जा रही थी।
आधा दर्जन सीटों पर सूखा कमल
देश की नंबर एक सीट सहारनपुर पर भाजपा उम्मीदवार राघव लखनपाल की जनता से दूरी का असर साफ नजर आया। इस सीट पर मुस्लिम मतों के बिखराव के बावजूद बसपा के हाजी फजलुर्रहमान ने भाजपा को शिकस्त दे दी। बिजनौर में कुंवर भारतेंद्र भी सांसद रहते जनता के दिल में उतर नहीं पाए। 2019 में बसपा प्रत्याशी मलूक नागर ने उन्हें गठबंधन के व्यूह में फंसा लिया। यहां पर कांग्रेस के टिकट पर दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी लड़े, किंतु वो मुस्लिमों का वोट नहीं काट पाए। पड़ोस की सुरक्षित सीट नगीना पर भाजपा के डा. यशवंत भी विरोध की लहर में फंस गए। अमरोहा में भाजपा के कंवर सिंह तंवर जमीनी पकड़ नहीं बना पाए। सपा-बसपा के वोटों के मिलने के साथ ही बसपा के टिकट पर उतरे दानिश अली ने आसानी से तंवर को शिकस्त दे दी। रामपुर में तमाम घेरेबंदी के बावजूद सपा नेता आजम खान ने दो बार सांसद रहीं जयाप्रदा को जातीय समीकरण के दम पर हरा दिया। मुरादाबाद में भाजपा के सर्वेश सिंह जीत दोहरा नहीं सके। गठबंधन प्रत्याशी सपा के डॉ. एसटी हसन ने उन्हें बड़े अंतर से शिकस्त दी। संभल सीट पर सपा के शफीकुर्रहमान बर्क का सियासी तजुर्बा रंग लाया। उन्होंने भाजपा के रामेश्वर सैनी को डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से हराया। इधर, मेरठ, मुजफ्फरनगर एवं बागपत में भाजपा हांफते हुए अंतिम क्षणों में विजयी गोल दाग सकी। क्षेत्रीय अध्यक्ष अश्विनी त्यागी का कहना है कि पार्टी का प्रदर्शन बेहद शानदार है। पश्चिमी उात्त्र प्रदेश की कई सीट पर भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है, किंतु यह हर बार जीत की गारंटी नहीं बन पाता है।
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