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मेरठ : टूटती रही सांस पर नहीं छोड़ा हौसला, कोरोना से 90 फीसद फेफड़े संक्रमण के बाद भी स्वस्थ लौटीं डा. ममता

मेरठ कालेज में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर ममता शर्मा की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है जो कोरोना की जंग में नकारात्मक सोच से खुद को कमजोर कर रहे हैं। डा. ममता के फेफड़े में 90 फीसद संक्रमण हो गया था। उन्‍होंने अपने हौसले से इसे हराया।

By Prem Dutt BhattEdited By: Published: Fri, 14 May 2021 08:00 PM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 08:36 AM (IST)
मेरठ : टूटती रही सांस पर नहीं छोड़ा हौसला, कोरोना से 90 फीसद फेफड़े संक्रमण के बाद भी स्वस्थ लौटीं डा. ममता
कोरोना से लड़ीं मेरठ की एसोसिएट प्रोफेसर ममता शर्मा के जज्‍बे को सलाम है।

मेरठ, जेएनएन। कोरोना से लडऩे के लिए दवा और अस्पताल से भी अधिक आपके हौसले की जरूरत है। अगर हौसला मजबूत है तो कोरोना से जंग जीता जा सकता है। मेरठ कालेज में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर ममता शर्मा की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है, जो कोरोना की जंग में नकारात्मक सोच से खुद को कमजोर कर रहे हैं। डा. ममता के फेफड़े में 90 फीसद संक्रमण हो गया था। डाक्टर ने भी जवाब दे दिया था। फिर भी उन्होंने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति से खुद को ठीक किया। उनके हौसले को देखकर डाक्टर उन्हें मोटीवेशनल गुरु बनाने के लिए कह रहे हैं।

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आक्‍सीजन स्‍तर पहुंच गया था 70 पर

डा. ममता को 17 अप्रैल को बुखार आया। पहले बुखार 99 डिग्री था। कोरोना का शक हुआ तो उन्होंने खुद को अलग कर लिया। कोविड प्रोटोकाल की दवाओं को घर पर लेना शुरू किया। एक दिन बुखरा उतरा फिर चढ़ गया। 21 अप्रैल को 105 डिग्री से अधिक बुखार हो गया। आरटीपीसीआर टेस्ट पहले कराया, लेकिन उसकी रिपोर्ट में देरी और स्थिति को देखते हुए उसी दिन एंटीजेन कराया तो रिपोर्ट पाजिटिव आ गई। बुखार 103 से 105 डिग्री रहा। सिटी स्कैन कराने पर रिपोर्ट नार्मल आई। आक्सीजन लेबल 95 के करीब था, लेकिन बुखार न उतरने की वजह से वह आनंद में भर्ती हो गईं। तीन दिन अस्पताल में रहीं, उस समय आक्सीजन का स्तर 70 पहुंच गया। सांस कमजोर हुई तो डा. ममता के पति सुधीर कुमार डर गए, अस्पताल में ही एंटीजेन कराया रिपोर्ट निगेटिव आ गई, लेकिन एचआरसीटी की रिपोर्ट 25 आई। इस स्तर को देखकर डाक्टरों ने जवाब दे दिया था। 25 फेफड़े में संक्रमण का अंतिम स्तर माना जाता है।

आसपास के 11 मरीजों ने तोड़ा दम

टूटती सांस के आखिरी छोड़ में जब सब तरफ निराशा छाई रही। अस्पताल में सात दिन डा. ममता रहीं, और इस सात दिन में उनके आसपास के बेड से 11 मरीज कोरोना से मर गए। ऐसे परिवेश और परिस्थिति में भी डा. ममता ने जीने की आस को नहीं छोड़ा, वह मन में यह विश्वास लेकर चलती रहीं कि उन्हें स्वस्थ होकर जाना है। उनके पति सुधीर उनका मनोबल बढ़ाते रहे। अस्पताल में रहते हुए डा. ममता अधिक से अधिक समय प्रोन पोजिशन पर रहते हुए अपने आक्सीजन के स्तर को ठीक किया। आखिर में उन्होंने गंभीर संक्रमण के बाद भी खुद को बचाया। 12 मई को वह स्वस्थ होकर घर आ ई। प्राणायाम, कपालभाति, गहरी सांस लेने और छोडऩे का अभ्यास वह निरंतर करती रहीं। वह कहती है कि शरीर को ताकत हमारा मन भी देता है। अगर मन में कुछ ठान लिया तो ईश्वर भी उसकी मदद जरूर करते हैं।


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