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दवाएं बंद, अब आहार से मिर्गी पर प्रहार

अगर दवाओं से भी मिर्गी नियंत्रित नहीं हो रही है तो उम्मीद खत्म नहीं हुई। सिर्फ विशिष्ट खानपान से यह बीमारी ठीक की जा सकती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 09:39 AM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 09:39 AM (IST)
दवाएं बंद, अब आहार से मिर्गी पर प्रहार
दवाएं बंद, अब आहार से मिर्गी पर प्रहार

संतोष शुक्ल, मेरठ : अगर दवाओं से भी मिर्गी नियंत्रित नहीं हो रही है तो उम्मीद खत्म नहीं हुई। सिर्फ विशिष्ट खानपान से यह बीमारी ठीक की जा सकती है। नई दिल्ली में आयोजित न्यूरोकान-2021 में मेरठ के वरिष्ठ न्यूरोफिजीशियन डा. भूपेंद्र चौधरी ने कीटोजेनिक डाइट के जरिए मिर्गी पर पूरी तरह नियंत्रण करने संबंधी शोध पेश कर चिकित्सा जगत को नई डगर दिखाई। उन्होंने बताया कि ज्यादा वसा एवं न्यूनतम कार्बोहाइेड देने से दिमाग में उठने वाली अनियमित तरंगें बंद हो जाती हैं। एम्स नई दिल्ली ने इस पद्धति को अनूठा बताया है। डा. भूपेंद्र यह शोध नवंबर माह के अंतिम सप्ताह में सिंगापुर में भी प्रस्तुत करेंगे।

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डा. भूपेंद्र चौधरी ने बताया कि मिर्गी की दवाओं का ज्यादा साइड इफेक्ट होता है, और ये महंगी भी होती हैं। लंबे समय तक दवाओं का सेवन करना पड़ता है। इससे छुटकारा मिलना बेहतर है। उन्होंने बच्चों समेत हर उम्र वर्ग के मरीजों पर विशिष्ट खानपान वाली थेरपी यानी कीटोजेनिक डाइट का प्रयोग किया, जिसका परिणाम उत्साहवर्धक मिला। हाल में नई दिल्ली में आयोजित न्यूरोकान में प्रजेंटेशन देते हुए बताया कि ऐसे मरीजों की संख्या भी काफी है, जिन पर न दवाएं असर कर रही हैं, और न ही सर्जरी का फायदा हुआ। उनके लिए कीटोजेनिक खानपान बेहद कारगर मिला। इससे कुछ महीनों में मरीजों की दवाइया बंद हो गईं, और उनके दिमाग में उठने वाली तरंगे भी खत्म हो गईं। उनके रिसर्च को पीजीआई चंडीगढ़, लखनऊ, मुंबई, पुणे से आए चिकित्सकों ने भी सराहा। अगले माह वो सिंगापुर में शोध पेश करेंगे, जहा विदेशी चिकित्सक भी पहुंचेंगे।

क्या है मिर्गी

मिर्गी रोग दिमाग की कोशिकाओं में उठने वाली अनियंत्रित तरंगों की वजह से उभरता है। ये शरीर के विशेष अंग व पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। सिर की चोट, दिमागी बुखार, दिमाग में कीड़े, टीबी की गाठ व अनुवाशिकता इस बीमारी के मुख्य कारण हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

दुनिया में 2-5 फीसद लोगों में मिर्गी की बीमारी है। जिसका इलाज लंबे समय तक चलता है। कीटोजेनिक खानपान में ज्यादा वसा देने से फैटी एसिड बनता है, जो लिवर में पहुंचकर कीटोन बाडीज बनाता है। जब कार्बोहाइड्रेड न्यूनतम रह जाता है तो ब्रेन अपने फंक्शन के लिए ग्लूकोज के बजाया कीटोन लेने लगता है, जो अनियंत्रित तरंगों को रोक देती हैं। यह पद्धति कई मरीजों में बेहद कारगर मिली, और उनकी दवाएं बंद कर दी गईं।

डा. भूपेंद्र चौधरी, सीनियर न्यूरोफिजिशियन


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