राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस मेरठः पहले स्कूल समाजसेवा के लिए खुलते थे, अब बिजनेस के लिए
परीक्षितगढ़ नारंगपुर कन्या गुरुकुल में गरीब लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई के लिए निशुल्क व्यवस्था की जाएगी।
माय सिटी माय प्राइड अभियान के तहत राउंड टेबल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें शहर की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने वाले रियल हीरो और एक्सपर्ट के साथ शिक्षा और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों को आंमत्रित किया गया। दैनिक जागरण के कार्यालय में हुए इस कांफ्रेंस में विकास की धुरी में शिक्षा के महत्व, चुनौतियां, उनके समाधान के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव करने पर भी सहमति बनी।
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कांफ्रेंस में स्कूली शिक्षा से लेकर डिग्री और विश्वविद्यालयी शिक्षा पर चर्चा की गई। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की खराब गुणवत्ता को सामने रखा गया। योग्य शिक्षकों के बाद भी सरकारी स्कूलों में सुधार न होने पर चिंता जताई गई। उसमें सुधार पर जोर दिया गया। स्कूली शिक्षा के बाद अच्छे छात्र जिस तरह से उच्च शिक्षा और गुणवत्तापरक शिक्षा पाने की कोशिश में पलायन कर रहे हैं, उनके रोके जाने और उनकी जरूरतों के हिसाब से बदलाव करने पर जोर दिया गया ताकि मेधावी छात्रों के पलायन को रोका जा सके। मेरठ में टीचर ट्रेनिंग सेंटर न होने का मुद्दा भी उठा।
करियर काउंसिलिंग सेंटर न होने की वजह से स्कूली शिक्षा के सामने आ रही समस्याओं को बताया गया। इसके लिए जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया गया। कांफ्रेंस में स्कूली और उच्च शिक्षा में नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट को लेकर शिक्षाविदों ने चिंता जताई। शहर में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के कई कॉलेज बंद हो रहे हैं तो कुछ कॉलेजों को बच्चे नहीं मिल रहे हैं। इस ओर भी आमंत्रित अतिथियों ने ध्यान आकर्षित कराया।
सरकारी स्कूलों में गरीब मजदूरों के बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय की जरूरत बताई गई। पब्लिक स्कूलों में कोचिंग की बढ़ती प्रवृत्ति के नकारात्मक पक्षों को सामने रखा गया। बेसिक स्कूलों की दयनीय दशा पर चिंता जताई गई। कसेरूखेड़ा के प्राइमरी स्कूल में बच्चों के लिए टॉयलेट तक की सुविधा न होने की बात सामने आई। बेसिक स्कूलों में पांचवीं तक के बच्चे सामान्य हिंदी और गणित भी नहीं पढ़ पा रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में गिरावट के लिए ट्यूटर और शिक्षा मित्रों को जिम्मेदार ठहराया गया। स्कूलों में इनोवेशन न होने पर भी चिंता जताई गई। कांफ्रेंस में इस बात को लेकर भी चिंता हुई कि बच्चों की रीडिंग हैबिट नहीं है, तो दूसरी ओर शहर में कोई पब्लिक लाइब्रेरी की व्यवस्था नहीं है। स्कूलों में महापुरुषों के विचारों को बच्चों तक पहुंचाने पर जोर दिया गया।
एक दूसरे का सहयोग करने को बढ़ाया कदम
शिक्षा के क्षेत्र में शहर को कुछ देने और मौजूदा समस्याओं को चिन्हित करते हुए उसके समाधान की ओर भी लोगों ने कदम बढ़ाया। कांफ्रेंस में सुधार और कोशिशों को तीन श्रेणी में बांटा गया। ऐसे कार्य जो आम लोगों के सहयोग से किया जाएगा, उसे जन सहयोग की श्रेणी में रखा गया। ऐसे कार्य जिसे अपने स्तर पर किए जाए और उसमें सरकार या शासन का सहयोग नहीं लेते हुए खुद पहल करते हुए किया जाए, उसे दूसरी श्रेणी कंपनी सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) में रखा गया है। इसके अलावा तीसरी श्रेणी में वे कार्य रखे गए जिसमें शासन या प्रशासन के सहयोग की जरूरत है। उसमें कुछ नीतिगत फैसले भी शामिल हो, उसे शासन - प्रशासन से मांग के अंतर्गत रखा गया।
नागरिकों की सहभागिता से ये होगा काम
- एक ऐसी संस्था बनाई जाएगी, जिसमें लोगों का सहयोग लिया जाएगा। शहर में जरूरतमंद गरीब और प्रतिभाशाली बच्चों की पहचान की जाएगी। फिर उन्हें शहर के सबसे अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाएगा। अगले शैक्षणिक सत्र यानि अप्रैल 2019 से यह संस्था अपना काम शुरू करेगी।
- परीक्षितगढ़ नारंगपुर कन्या गुरुकुल में गरीब लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई के लिए निशुल्क व्यवस्था की जाएगी। जिले के ऐसे जरूरतमंद बच्चों को आवासीय गुरुकुल में पढ़ाया जाएगा।
- गांव सोशल क्लब या स्थानीय स्कूल को चुनकर उन्हें किताबें मुहैया कराया जाएगा, बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
सीएसआर फंड से शिक्षा की अलख जगाएंगे
- पब्लिक स्कूलों के पास किसी बस्ती को चुना जाएगा, जिसमें निरक्षर बच्चों को चिन्हित किया जाएगा। उन बच्चों को दिन में कुछ समय निकालकर पब्लिक स्कूल के बच्चे पढ़ाने जाएंगे। ऐसे बच्चों को नियमित मोटिवेट भी किया जाएगा, जिससे गरीब बस्तियों के बच्चों को साक्षर बनाया जा सके।
- शहर के पब्लिक स्कूल और कुछ शिक्षक मिलकर गरीब बच्चों को गोद लेंगे। उनके पढ़ाई का खर्च अपने पास से करेंगे। इसकी शुरुआत एक दो बच्चों से होगी फिर क्षमता के अनुसार संख्या बढ़ाएंगे।
- वेस्ट एंड रोड पर मेरठ पब्लिक स्कूल के सहयोग से एक पब्लिक लाइब्रेरी खोली जाएगी, जिसमें बच्चों के लिए किताबें पढ़ने की निशुल्क व्यवस्था रखी जाएगी। धीरे- धीरे ऐसे सार्वजनिक लाइब्रेरी को जिले के अन्य गांवों तक पहुंचाया जाएगा।
शासन-प्रशासन से मांग
- अभी बहुत से बच्चे स्कूल से दूर हैं। ऐसे बच्चे अगर क्लासरूम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो उन तक क्लासरूम को पहुंचाने की कोशिश की जाए। इसमें बीटीसी प्रशिक्षुओं को उनके प्रशिक्षण काल जो दो से ढ़ाई महीने का होता है। उस अवधि में इन प्रशिक्षुओं को अलग- अलग गांवों में भेजा जाए। गांव में वह कम्युनिटी हाल में जाकर बच्चों को एकत्रित करके पढ़ाएं। जो बच्चे पढ़ने से कतराते हैं, उन्हें मोटिवेट करें। इसका पूरा प्लान बनाकर बेसिक शिक्षा विभाग के माध्यम से शासन को स्वीकृत करने के लिए भेजा जाना चाहिए।
हम चाहें तो तस्वीर बदल जाएगी
- स्कूली शिक्षा में मूल्यों और आचार-विचार को जोड़ा जाना चाहिए। ट्रैफिक, सुरक्षा, सफाई, पर्यावरण आदि को स्कूल सिलेबस में शामिल करने की जरूरत है। अच्छी शिक्षा के लिए केवल डिग्री धारक शिक्षक नहीं योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है।
- एचएम राउत, प्रिंसिपल, दीवान पब्लिक स्कूल
- शिक्षा के साथ संस्कार भी जरूरी है। बिना संस्कार शिक्षा अधूरी रह जाती है। बच्चों के साथ परिजनों को भी संस्कारवान बनाने की जरूरत है। जो बच्चे बेहतर शिक्षा के लिए देश विदेश जा रहे हैं लौटकर अपने शहर के विकास में योगदान करें।
- रश्मि आर्य, संचालक, कन्या गुरुकुल नारंगपुर
- सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और परिजनों के मानसिक स्तर को देखते हुए यहां के बच्चे विज्ञान और इनोवेशन के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। हमें उनकी इस प्रतिभा को और अधिक निखारने और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
- दीपक शर्मा, जिला समन्वयक, जिला विज्ञान क्लब
- स्कूलों में हम बच्चों में रीडिंग हैबिट डालने की कोशिश कर रहे हैं। एक पीरियड बच्चों को कोई भी किताब लाकर पढ़ने के लिए बोला गया है, लेकिन परिजन इसमें सहयोग नहीं कर रहे हैं। वे भी इस ओर ध्यान दें तो स्थिति में बदलाव होगा।
- रुचि शर्मा, प्रिंसिपल, दीवान पब्लिक स्कूल इंटरनेशनल
- हमारे सिलेबस हकीकत से बिलकुल अलग हैं। अब नया करिकुलम बनाने की जरूरत है। बच्चों और परिजनों को खेल में करियर के लिए भी काउंसिलिंग करने की जरूरत है। बच्चों को प्रेरित करना होगा कि वे लौट कर अपने शहर के विकास में योगदान दें।
- विक्रमजीत सिंह शास्त्री, निदेशक, एमपीएस ग्रुप
- सरकारी व्यवस्था के स्कूलों में योग्य शिक्षक होने के बाद भी बच्चे पढ़ने नहीं जा रहे हैं। इस पर उन्हें आत्म मंथन की जरूरत है। जहां अच्छी शिक्षा सस्ती हो सकती है, वह नहीं है। जहां अच्छी शिक्षा मिल रही है, वह अब सस्ती नहीं रही।
- उमाकांत अग्रवाल, सचिव, आइसीएआर मेरठ ब्रांच
- शिक्षा की नींव बेसिक शिक्षा का आलम यह है कि पांचवीं तक के बच्चों को सामान्य जोड़-घटना तक नहीं आता है। इसका कारण यह भी है वहां शिक्षकों की जवाबदेही तय नहीं है। जिस दिन यह होगा परिणाम बेहतर होंगे।
- गुलशन, शिक्षिका, कन्या गुरुकुल नारंगपुर
- मजदूर तबके के बच्चों के लिए बने श्रमिक स्कूलों की स्थिति खराब है। ये बच्चे बेसिक स्कूलों तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। सरस्वती शिशु मंदिर इन बच्चों की शिक्षा में योगदान दे रहे हैं। पब्लिक स्कूल भी हाथ बढ़ाएं तो इन बच्चों का भविष्य बेहतर होगा।
- कृष्णा ढाका, समाज सेविका
- शिक्षा में मूल्यों की गिरावट से प्रतिस्पर्धा में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना पनपने लगी है। बच्चों को अब अंकों की दौड़ की बजाय खेल की ओर मोड़ने का समय आ गया है। एक खिलाड़ी ही हमेशा देश के लिए खेलने को लालायित रहता है।
- डॉ. कर्मेंद्र सिंह, प्रिंसिपल, कालका पब्लिक स्कूल
- बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित नहीं हो पा रही है। कोई ज्ञान के लिए नहीं पढ़ रहा है। केवल रोजगार के लिए पढ़ने वाले ही सबसे अधिक बेरोजगार हैं। जरूरी है कि स्कूलों के 12 सालों में बच्चों को विषय से प्रेम करना सिखाया जाए। ऐसा हो गया तो उन्हें पढ़ाने की जरूरत नहीं पढ़ेगी।
- अभिषेक शर्मा, संचालक, आईएएस एकेडमी
- पहले स्कूल समाजसेवा के लिए खोले जाते थे, लेकिन अब स्कूल अच्छे बिजनेस के लिए खोले जा रहे हैं। जरूरत है तो हमें जरूरतमंद मेधावी बच्चों की मदद कर उन्हें पढ़ाई का माहौल देने की, जिससे वे जीवन में कामयाब हो सकें।
- अनुपम शर्मा, चार्टर्ड एकाउंटेंट
- पढ़े-लिखे बच्चों का शहर में न रुकने का कारण शहर का औद्योगिक विकास न होना है। अच्छा टैलेंट उन्हीं क्षेत्रों में रुकता है, जहां औद्योगिक विकास अच्छा होता है। दिल्ली के निकट होने के बाद भी मेरठ आज भी इस ओर बहुत पिछड़ा है।
- बलवीर सिंह, सचिव, वेस्टर्न चैंबर ऑफ कॉमर्स
- हमारे शहर में स्कूल, कॉलेज और कोर्स की कमी नहीं है। जरूरत यह है कि हम बच्चों के मन की बात जानें कि वो क्या चाहते हैं। उनकी इच्छा और आकांक्षा क्या है। हम उनकी आकांक्षा को अपने विशाल आधारभूत संरचना से पूरा कर पा रहे हैं कि नहीं। तभी तस्वीर बदलेगी और युवा शहर की ओर आकर्षित होंगे।
- सुधांशु शेखर, प्रिंसिपल, केएल इंटरनेशनल स्कूल
- बच्चों की पढ़ाई में परिजनों के शामिल न होने के कारण ही बच्चों में कोचिंग की प्रवृत्ति बढ़ रही है। बच्चों की डिमांड पूरी करते हुए परिजन यह देख नहीं पाते हैं कि बच्चा कोचिंग में पढ़ने नहीं बल्कि दोस्तों संग समय बिताने जाता है। इससे उसका अधिक समय निकल जाता है।
- अनुज शर्मा, चेयरमैन, सत्यकाम इंटरनेशनल स्कूल
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