अर्थव्यवस्था की पिच पर मेरठ के छक्के-चौके
क्रिकेट, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, फुटबॉल, वालीबॉल, हॉकी समेत तमाम उत्पादों के लिए मेरठ शहर दुनियाभर में मशहूर है। करीब दो लाख लाख लोग प्रत्यक्ष या अपरोक्ष रूप से रोजगार से जुड़े हैं।
उर्वर माटी में बसा मेरठ सूबे का सबसे कमाऊ पूत है। समय के साथ हिचकोले लेती हुई अर्थव्यवस्था की पटरी पर मेरठ अपने दम पर दौड़ा। आज अर्थव्यवस्था की पिच पर मेरठ छक्के-चौके जड़ रहा है। एक आर्थिक सर्वे एजेंसी ने मेरठ की खरीद क्षमता मुंबई और बंगलुरु के बराबर आंका है।दशक भर में तमाम बड़े कॉरपोरेट घरानों ने यहां डेरा डाल दिया।
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यहां का खेल उद्योग ओलंपिक की रीढ़ है, जबकि ज्वैलरी कारोबार देशभर में रोशन है। इन्वेस्टर्स समिट में मेरठ में 850 करोड़ के निवेश का करार हुआ। बाद 50 हजार नए रोजगार उभरेंगे। प्रदेश में सर्वाधिक टैक्स मेरठ जमा करता है। हालांकि आधारभूत ढांचा की कमी से औद्योगिक विकास दर में गिरावट चिंता का सबब है।
रीढ़ है स्पोर्ट्स इंडस्ट्री
मेरठ की मिट्टी में उद्यमशीलता है। खेतीबाड़ी यहां की आर्थिक रीढ़ रही है, किंतु अब औद्योगिक कारोबार भी उफन रहा है। दिल्ली के नजदीक होने से 70 के दशक में इकाइयां बसने लगीं। कई चीनी और पेपर मिलों ने कारोबार फैलाया। किंतु सबसे बड़ी क्रांति खेल उद्योगों से हुई।
विभाजन के बाद पाकिस्तान के सियालकोट से मेरठ पहुंचे उद्यमियों ने क्रिकेट कारोबार शुरू किया। आज ओलंपिक से लेकर वर्ल्ड चैंपियनशिप तक के खेल उत्पादों की नगरी मेरठ है। यह लगभग 1200 करोड़ की इंडस्ट्री है। दर्जन भर इकाइयां यूरोप, यूएसए, कनाडा, चीन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 150 देशों तक निर्यात करती हैं।
क्रिकेट, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, फुटबॉल, रोलबाल, वालीबॉल, हॉकी समेत तमाम उत्पादों के लिए मेरठ शहर दुनियाभर में मशहूर है। करीब दो लाख लाख लोग प्रत्यक्ष या अपरोक्ष रूप से रोजगार से जुड़े हैं।
हरा-भरा कृषि उद्योग
कृषि कारोबार ने किसानों की अर्थव्यवस्था को आधार दिया। गन्ना बाहुल्य बेल्ट में आलू, आम और सब्जियों की जबरदस्त पैदावार होती है। ये फसलें किसानों की खरीद क्षमता बढ़ाती हैं। पश्चिमी उप्र का किसान प्रदेश के अन्य हिस्सों से ज्यादा आर्थिक क्षमता रखता है।
सिर्फ गन्ना ही एक हजार करोड़ से ज्यादा की अर्थव्यवस्था संचालित करता है। दोआब की मिट्टी प्रदेश में सबसे उपजाऊ मानी जाती है। प्रति हेक्टेअर पैदावार के साथ समर्थन मूल्य बढ़ने से किसानों के पास पर्याप्त नकदी पहुंच रही है।
चमक दमक भरा ज्वैलरी उद्योग
मेरठ में कृषि, बैंड बाजा, फूड इंडस्ट्री में रेवड़ी गजक, केमिकल, कैंची, हैंडलूम, दवा उद्योग समेत कई अन्य प्रकार के बड़े कारोबार हैं। रोजाना करीब दो सौ करोड़ का ज्वैलरी कारोबार होता है। जयपुर और मुंबई की श्रेणी में खड़ा मेरठ का ज्वैलरी उद्योग आने वाले दिनों में डिजाइनिंग में नई क्रांति कर सकता है।
इसके लिए मेरठ में एक विशिष्ट संस्थान खुला है। उधर, रेलीगेयर समेत तमाम आर्थिक एजेंसिया शहर में निवेश करवा रही हैं। बीमा, निवेश, म्युचुअल फंड व रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में ताबड़तोड़ निवेश बरस रहा है।
चुनौतियों की बेड़ी टूटे तो कैसे?
- शिक्षा, मैन्युफैक्चरिंग, बैकिंग, खुदरा व्यापार और अन्य क्षेत्रों में रोजगार की भारी संभावनाएं हैं। किंतु जटिल नियमों में फंसी अर्थव्यवस्था दौड़ ही नहीं पा रही है। प्रक्रिया का सरलीकरण जरूरी है।
- कौशल विकास के तमाम केंद्र संचालित हैं। बीस हजार से ज्यादा इकाइयों में लाखों लोग प्रशिक्षित हो चुके हैं। तकनीकी संस्थानों की भी संख्या 35 से ज्यादा है। किंतु गुणवत्ता खराब है। नई प्रशिक्षण कार्यशालाओं की जरूरत है।
- उद्यम शुरू करना आज भी आसान नहीं है, जबकि स्किल इंडिया, स्टार्ट अप और प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना के अंतर्गत बड़ी संख्या में लोगों को लोन दिए गए। किंतु निवेश जमीन पर नहीं उतरा। इससे भी रोजगार की गाड़ी जहां की तहां खड़ी रह गई।
- नई औद्योगिक नीति को लेकर विभागों में असमंजस है। निवेश मित्र पोर्टल से सभी विभागों की एनओसी मिल जाती है, किंतु अब तक सुविधा मिल नहीं पा रही है। 13 जुलाई से अन्य सभी विभागों का जिम्मा नहीं रहेगा।
- मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत साक्षात्कार अटका हुआ है। इससे भी बड़ी संख्या में युवा कारोबार शुरू कर नहीं पा रहे हैं।
- सड़क, बिजली पानी पर्याप्त है, किंतु कारोबार के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है। पिछले बीस वर्ष में एक भी औद्योगिक प्लाट नहीं बना है।
- हालांकि खानपान में मेरठ अन्य शहरों से सस्ता है, किंतु गुणवत्ता में खराब आंका गया है। 48 फीसद सैंपलों में मिलावट दर्ज की गई है।
इंफो
- मेरठ में संगठित इकाइयां: करीब 20 हजार
- मेरठ की इंडस्ट्री का कुल टर्नओवर: करीब 8000 करोड़
- एक्सपोर्ट हाउस: 42
- नया निवेश प्रस्ताव: 850 करोड़ (यूपी इंवेस्टर्स समिट में)
- सबसे बड़ा टर्नओवर वाला उद्योग: खेल उद्योग करीब 1200 करोड़
- औद्योगिक विकास दर: करीब 5.5 फीसद
- संगठित क्षेत्रों में रोजगार: तीन लाख
- प्रकाशन उद्योग: 1850 से शुरू, 1000 करोड़
- कारपेट उद्योग: 500 करोड़
- ट्रांसफार्मर उद्योग: 600 करोड़