मेरठ के सुनहरे भविष्य के लिए बिग बॉस की तर्ज पर बनाया विज्ञान घर
विज्ञान को सरल तरीके से समझाकर दीपक शर्मा बच्चों को इस विषय के प्रति आकर्षित करने में सफल रहे हैं। बच्चों में रचनात्मकता बढ़ी है।
विज्ञान मतलब विशेष ज्ञान। विज्ञान को जटिल विषय मानकर लोग कन्नी काट लेते हैं। इसे हौव्वा बना दिया जाता है, लेकिन विज्ञान की जटिलताओं को सरल भाषा में बच्चों के बीच परोसने, समाज को समझाने और उनमें रूचि पैदा करने का काम दीपक शर्मा बड़ी लगन से कर रहे हैं।
सूर्य घड़ी, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करना, इसके वैज्ञानिक कारण और उपकरणों के जरिए जिज्ञासाओं को शांत करने का काम दीपक बखूबी करते हैं। अंधविश्वास, कुसंस्कार की काट विज्ञान से कैसे करें, बताते हैं... समझाते हैं। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि समझाने, बताने के सरल तरीके से वे बच्चों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करने में सफल हैं।
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देश का पहला रियलिटी शो- विज्ञान घर बनाया
जागृति विहार निवासी 50 वर्षीय दीपक शर्मा एनएएस इंटर कॉलेज में विज्ञान के शिक्षक हैं। विज्ञान पढ़ने और पढ़ाने का जुनून केवल कक्षा तक नहीं सीमित है। स्कूल से बाहर भी पिछले 33 साल से विज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। गणित और विज्ञान के गीत बनाकर विद्यार्थियों में रूचि बढ़ाई।
बिग बॉस की तर्ज पर पहली बार देश में विज्ञान घर की न सिर्फ परिकल्पना की बल्कि उसे क्रियांवित करके दिखाया। रियलिटी शो की तर्ज पर 10 दिनों तक देश-प्रदेश के विभिन्न शहरों से चुने बाल वैज्ञानिक चौबीसों घंटे विज्ञान घर में रहे और सामान्य कामकाज के साथ विज्ञान गुरु के निर्देश पर कई विज्ञान प्रोजेक्ट के टास्क पूरे किए। मेरठ में दो बार विज्ञान घर का आयोजन हो चुका है। विज्ञान घर के नए इनोवेशन से विज्ञान के शिक्षकों को सुखद एहसास कराया। दस दिन बाद बाल वैज्ञानिक भी एक रचनात्मक सोच लेकर निकले।
...ताकि हर बच्चा अक्ल लगाए
आज नंबरों की दौड़ में अव्वल आने की खातिर बच्चे-अभिभावक बाजार से प्रोजेक्ट खरीदते हैं और स्कूल में पेश कर देते हैं। ऐसे समय में विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाते हुए दीपक शर्मा ने विज्ञान को ग्लैमराइज किया। पानी और हवा के माध्यम से रॉकेट को उड़ाकर बच्चों और बड़ों को विज्ञान के रहस्यों को बताने में सफल हुए। मूर्ति के दूध पीने, पेड़ में आग लगने, तथाकथित समाधि लेने जैसे अंधविश्वास को विज्ञान से तोड़ा।
एक छड़ की मदद से पृथ्वी की परिधि नापने, वर्ष 2004 में शुक्र पारगमन (सूरज के सामने से शुक्र के गुजरने) की घटना को पैरेलेस एंगिल से सूरज से शुक्र ग्रह की दूरी को नापने का सफल प्रयोग किया। उनके छोटे- छोटे प्रयोग का व्यापक असर हुआ।
शहर में लोगों की रुचि खगोलीय घटनाओं की ओर हुई। विज्ञान शिक्षा और कुछ नया करने की कोशिश के चलते भारत सरकार की योजना राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के तहत पहली बार मेरठ में बाल विज्ञान कांग्रेस का आयोजन हुआ। यहां 103 स्कूलों के बच्चों ने एक साथ तीन महीने तक साइंस के प्रोजेक्ट बनाए।
रोजमर्रा के जीवन में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। विज्ञान ने हमारी दुनिया को बदल दिया है। इस बदलते दौर में अगर हम अवेयर नहीं हुए तो मात खा जाएंगे। अंधविश्वास पर चोट विज्ञान ही कर सकता है। खाने-पीने में जिस तरह से मिलावट है, उसे विज्ञान के सहारे रोका जा सकता है। इसके लिए किसी क्लासरूम की जरूरत नहीं है। बस दिमाग खोलने और अपने जरूरत के हिसाब से कुछ नया सोचने की जरूरत है।
- दीपक शर्मा, विज्ञान शिक्षक
विज्ञान के निरंतर प्रयोगों ने पढ़ने और सोचने का तरीका बदल दिया। इसके चलते कई तरह के विज्ञान का सफल प्रयोग कर पाया। जीपीएस सिस्टम बनाया। आज उस ज्ञान के बदौलत ही मेरे कई प्रोजेक्ट का पेटेंट भी हुआ। जिसकी उपयोगिता हमारे दैनिक जीवन में भी है। दीपक सर की बदौलत इस फिल्ड में विशेष रुचि ले पाया था।
- नितिन त्यागी, एनएएस कॉलेज के पूर्व छात्र और साइंस इनोवेटर
जिले में साइंस के लिए जगह मिली
विज्ञान को जन सामान्य तक पहुंचाने की कोशिश दीपक शर्मा ने की। इनके प्रयास से ही पहली बार मेरठ को साइंस के लिए एक जगह मिली। लगातार विज्ञान के प्रयोग और जागरुकता के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 30 जिलों में बाल विज्ञान कांग्रेस के वे समन्वयक बने। शहर में कई स्थानीय समस्याओं को पहचान कर उसे विज्ञान के जरिए दूर करने की कोशिश भी हुई।
एक समय आरजी पीजी कॉलेज की छात्राएं जल भराव से जूझ रही थीं। डेढ़ लाख रुपये खर्च करने के बाद पानी नहीं सूख पाया तो दीपक शर्मा और उनकी टीम ने सोख्ता गढ्डा बनाकर उक्त समस्या से निजात दिलाया। इस पर बनी साइंस फिल्म को यू ट्यूब पर अपलोड किया गया। अभी तक 52 लाख 25 हजार 228 लोग इसे लाइक कर चुके हैं। उनके विज्ञान शिक्षण की पद्धति को फ्रांस में हुए यूरोपियन साइंस मीट में भी सराहा गया।
चुनौतियां भी इस राह में
विज्ञान शिक्षा में काम करने वाले लोग कम मिलते हैं। जो लोग जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें महत्व नहीं दिया जाता। स्कूलों में विज्ञान शिक्षा का ढर्रा बस रटने और बाजार से प्रोजेक्ट खरीदने तक सीमित रहता है। बहुत से ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने विज्ञान शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों को गुमराह करने की कोशिश की कि इसमें विज्ञान रोजगार नहीं दिला सकता।
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कई सकारात्मक बदलाव भी दिखे
विज्ञान को सरल तरीके से समझाकर दीपक शर्मा बच्चों को इस विषय के प्रति आकर्षित करने में सफल हुए। बच्चों में रचनात्मकता बढ़ी। प्रदेश में मेरठ एक साइंस रिसोर्स सेंटर के रूप में डेवलप हुआ। अभी तक करीब 150 रिसोर्स पर्सन बन चुके हैं। खाने-पीने की मिलावट जांचने के लिए स्कूल, कॉलेज के छात्र-छात्राएं आगे आयीं। बच्चों का भी मन लगने लगा है और यह काम आसान हो गया है।
अभाव अपने आप में संसाधन है
दीपक कहते हैं कि कई बार अभाव भी अवरोध नहीं पैदा करते हैं। इसे विज्ञान ही सिखाता है। फिर भी अगर पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध हों तो विज्ञान की शिक्षा को ओर भी प्रभावी बनाया जा सकता है। स्थानीय स्तर की कई समस्याओं की तलाश कर उन्हें दूर करने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जाता है। इससे विज्ञान शिक्षा का मकसद भी पूरा होगा और युवाओं को रोजगार भी मिल पाएगा।