खेलकूद की इंडस्ट्री के साथ रोजगार को भी नया आयाम दे रहा है ये परिवार
विभाजन के बाद 1950 में आनंद परिवार मेरठ आया। फिर शून्य से शुरू करना पड़ा। लेकिन 60 के दशक तक कंपनी फिर बाजार में पकड़ बना चुकी थी।
उन्हें विरासत संभालना बखूबी आता है। 1931 से खेलकूद उत्पाद बनाने का पैतृक कारोबार दूसरे विश्वयुद्ध और भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी की भेंट चढ़ा। परिवार खाली हाथ भारत पहुंचा तो हथेलियों में सिर्फ हुनर की पूंजी थी। लेकिन आज एसजी (सेंस्पोरेल्सच ग्रीनलैंड्स) कंपनी एक बार फिर दुनिया की सबसे बड़ी खेल उत्पाद बनाने वाली कंपनियों में शुमार हो गई है। वर्तमान में दोनों भाई कैलाश आनंद (75) और त्रिलोक आनंद (71) न सिर्फ खेलकूद इंडस्ट्री को नया आयाम दे रहे हैं, बल्कि रोजगार की नर्सरी भी रोप दी। वो नई पीढ़ी को बेहतर इंटरप्रेन्योर मानते हुए रोजगार पैदा करने की सीख देते हैं।
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विरासत में लगाए चार चांद
विभाजन के बाद 1950 में आनंद परिवार मेरठ आ गया। शून्य से आगाज करना पड़ा। 60 के दशक तक कंपनी फिर से बाजार में पकड़ बना चुकी थी। विभाजन के दौरान कैलाश आनंद पांच वर्ष और त्रिलोक आनंद सिर्फ एक साल के थे। दूसरी पीढ़ी में सबसे पहले बड़े भाई करवीर आनंद ने पैतृक विरासत संभाला। 1962 में कैलाश आनंद एवं 1971 में त्रिलोक आनंद भी कंपनी का काम संभालने उतरे। सबसे बड़े भाई केवी आनंद के आकस्मिक निधन के बाद चुनौती और बढ़ गई। कैलाश आनंद और त्रिलोक आनंद ने कड़ा परिश्रम कर कंपनी को सत्तर के दशक तक दुनिया भर में मशहूर कर दिया। 1979 में कंपनी ने बल्ला बनाना शुरू किया, जिसमें कंपनी दुनिया की अग्रणी बन चुकी है।
स्टाफ को ट्रेन कर खोली नौकरियों की डगर
बढ़ते कारोबार के बीच दोनों भाइयों ने कर्मचारियों को स्किल्ड करना शुरू किया। बड़ी संख्या में कर्मचारी प्रशिक्षित हुए। नतीजा ये निकला कि कंपनी में प्रशिक्षित तमाम कर्मचारियों ने सूरजकुंड समेत शहर के तमाम क्षेत्रों में अपनी खेल इकाई शुरू कर दी। आनंद भाइयों का बड़प्पन ये रहा कि उन्होंने अपना कारोबार शुरू करने वाले पुराने कर्मचारियों का भरपूर सहयोग किया। वह मानते हैं कि प्रशिक्षित मानव संसाधन ही औद्योगिक विकास की गारंटी बन सकता है। आज एसजी कंपनी मेरठ में खेलकूद कारोबार के अर्थशास्त्र को नई दिशा दे रहा है। दुनियाभर के तमाम नामी बल्लेबाजों की पसंद एसजी का बल्ला है, वहीं एशिया की पहली कंपनी है, जिसकी क्रिकेट बॉल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेली जा रही है।
रियल हीरो का कोट
कंपनी के सीएमडी, कैलाश आनंद और डायरेक्टर, त्रिलोक आनंद का मानना है कि सरकार की औद्योगिक नीतियां प्रभावी हैं, किंतु यह पूरी तरह कारगर तभी होगी, जब मानव संसाधन स्किल्ड होगा। तकनीकी प्रधान समय में स्टाफ की दक्षता जरूरी है। बड़ी कंपनियों के साथ छोटी इकाइयां-वेंडर यूनिट भी रोजगार का बड़ा माध्यम बनती हैं। असल में उद्यमशीलता ही रोजगार प्रधान होती है। हमारी कंपनी इस बात का विशेष ध्यान देती है।
चुनौतियां भी थीं...
- कंपनी 40 के दशक में भी विदेशों तक कारोबार करती थी, लेकिन देश के विभाजन के बाद सब कुछ सियालकोट में छोड़ना पड़ा, ऐसे में मेरठ में जमना बेहद कठिन था।
- मेरठ दिल्ली के नजदीक बेशक था, लेकिन संसाधनों का भारी अभाव था। इसलिए आयात निर्यात कठिन रहा।
- कैलाश और त्रिलोक आनंद ने जब 60 और 70 के दशक में कंपनी की भूमिका संभाली तब देश में क्रिकेट का माहौल नहीं था। कंपनी फुटबॉल और बैडमिंटन जैसे उत्पादों पर निर्भर थी।
- स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और उद्योगपुरम में प्लाट तो मिला, लेकिन आधारभूत ढांचा अब तक नहीं मिला। फिर भी दोनों भाई बेहतर पारिवारिक सामंजस्य के साथ आगे बढ़ते गए।
- कंपनी ने उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादों की वजह से दुनिया भर में ग्राहक तैयार कर लिया, लेकिन समस्या ये थी कि कोई भी विदेशी मेरठ आने से हिचकता था।
- मेरठ में खराब कानून व्यवस्था, बिजली, पानी एवं कच्चा माल का संकट बना रहा। इंसपेक्टर राज के बीच कंपनी का विस्तार एवं एक्सपोर्ट हाउस बनाना बड़ी चुनौती थी।
अगर संसाधन मिले तो...
कैलाश आनंद एवं त्रिलोक आनंद कहते हैं कि संसाधन होता तो वो नए उद्यमियों के लिए कार्यशाला आयोजित करते। रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खास फोकस करते। दुनिया भर के विशेषज्ञों से पूरी इंडस्ट्री के स्टाफ को समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाता। विदेशी ग्राहकों को मेरठ बुलाने के लिए परिवहन की सुविधा तेज की जाती। स्किल्ड कर्मचारियों को उनका निजी कारोबार शुरू करने में मदद दी जानी चाहिए।
कैलाश आनंद व त्रिलोक आनंद
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