मेरठ में हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या है चिंता का विषय
चिकित्सा से जुड़ी किसी भी कमेटी में कम से कम 40 फीसद निजी डॉक्टरों की भागेदारी होनी चाहिए ।
विकसित होते शहर आज बीमारी के अड्डे बनते जा रहे हैं। हमारी लाइफस्टाइल में आते बदलाव के कारण व्यक्ति के हृदय पर बुरा असर पड़ रहा है और दिल से संबंधित तमाम बीमारियां दिन पर दिन सामने आ रही हैं। अब दिल की बीमारी बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक को अपना शिकार बना रही है।
ऐसे समय में मेरठ के वरिष्ठ काडिर्योलॉजिस्ट डॉ. राजीव अग्रवाल पिछले 16 वर्ष में 450 से ज्यादा गरीब मरीजों को पेसमेकर नि:शुल्क लगाकर जीवनदान दे चुके हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश के पहले डीएम कार्डियोलाजिस्ट हैं, जिन्होंने मेरठ जैसे छोटे शहर को इलाज की गुणवत्ता के मामले में राष्ट्रीय स्तर का रुतबा दिया। दुनिया भर की कॉन्फ्रेंस में उन्हें बड़े चाव से सुना जाता है। डॉ. अग्रवाल नए हृदय रोग विशेषज्ञों के आइकॉन हैं।
दर्जनों परिवार आगे आए
मेरठ निवासी 57 वर्षीय डॉ. राजीव अग्रवाल ने भारत में सर्वाधिक नि:शुल्क पेसमेकर लगाने का रिकॉर्ड बनाया। यूएसए की बोस्टन कार्डियक फाउंडेशन के साथ मिलकर वह हर वर्ष पेसमेकर कैंप लगाते हैं, जिसमें देशभर से मरीज पहुंचते हैं। नि:शुल्क पेसमेकर के लिए सालभर पंजीकरण चलता है।असर ये हुआ कि मेरठ के दर्जनभर परिवार नि:शुल्क पेसमेकर कैंप में आर्थिक सहयोग के लिए खड़े हुए।
सरकारी कार्यक्रमों में निजी चिकित्ससकों को भी जोड़ें
सरकारी चिकित्सा कार्यक्रमों में प्राइवेट चिकित्सकों को भी जोड़ें, तभी देश को बेहतर परिणाम मिलेंगे। रेग्यूलेशन कम करें और मॉनिटरिंग बढ़ाएं। आइआइएम जैसे मैनेजमेंट संस्थानों के छात्रों को दो वर्ष अनिवार्य रूप से चिकित्सा के क्षेत्र में इंटर्नशिप कराएं। जनसंख्या नियंत्रण बेहद जरूरी है।
सवा लाख का पेसमेकर बिल्कुल मुफ्त
जिनके दिल की धड़कन मंद पड़ जाती है, उन्हें पेसमेकर लगाना पड़ता है। यह करीब 10 साल तक चलती है। इसमें लगा सेंसर बैटरी की लाइफ बता देता है। इस बीमारी का अन्य कोई इलाज नहीं होता है। चुनिंदा केंद्रों पर ही पेसमेकर लगाए जाते हैं। इस बीमारी की कोई वजह स्पष्ट नहीं है। डॉ. राजीव की अगुआई वाली टीम ने अब तक रिकॉर्ड 450 मरीजों को पेसमेकर का तोहफा दिया है।
अगर संसाधन होता तो क्या करते?
डॉ. राजीव अग्रवाल व्यावहारिक बात करते हैं। वो कहते हैं कि कोई एक संस्था या व्यक्ति प्रेरणा तो बन सकता है, किंतु बड़ा परिवर्तन नहीं कर सकता। ऐसे में सरकार अगर जनसहभागिता के साथ योजनाओं पर अमल करे तो स्वास्थ्य सेवाएं हर व्यक्ति तक पहुंचेंगी।आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत हर सिजेरियन पर सीएमओ का परमीशन लेने जैसे नियमों को बाधक मानते हैं। वह मानते हैं कि चिकित्सा से जुड़ी किसी भी कमेटी में कम से कम 40 फीसद निजी डॉक्टरों की भागेदारी होनी चाहिए।