मेरठः बुझती आंखों में जलाया रोशनी का दीया
दो अक्टूबर 1950 को मेरठ में पैदा हुए डॉ. मित्तल नेत्र चिकित्सा के पितामह माने जाते हैं।
आंखों को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ उपहार माना जाता है। इसके झरोखों से हम प्रकृति के बहुरंगी सौन्दर्य को मन में उतारते हैं, किंतु नेत्रहीनों का क्या? इस दर्द को डॉ. संदीप मित्तल ने बड़ी संजीगदी से समझा। कार्निया प्रत्यारोपण से 12 सौ से ज्यादा नेत्रहीनों का जीवन रोशन कर दिया।दो अक्टूबर 1950 को मेरठ में पैदा हुए डॉ. मित्तल व्यवहार से सरल और बतौर प्राचार्य बेहद सख्त रहे हैं।
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लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में कार्निया बैंक की स्थापना की। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए प्रदेश के तमाम मेडिकल कॉलेजों ने नेत्र बैंक बनाया है। उनकी मुहिम का नतीजा ये रहा कि आज सैकड़ों लोग नेत्रदान की कतार में हैं।
रोशनी जिनकी पहचान है...
डॉ. संदीप मित्तल 1968 बैच के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस हैं। 1976 में एनएन मेडिकल कॉलेज आगरा से एमएस ऑप्थमोलॉजी की डिग्री ली। एम्स नई दिल्ली में डिमांस्ट्रलिस्ट के तौर पर काम किया। झांसी मेडिकल कॉलेज में प्रवक्ता बनने से लेकर लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में प्राचार्य बनने तक उनका सफर स्वर्णिम है।
2003 में विभागाध्यक्ष रहते नेत्र रोग विभाग में कार्निया प्रत्यारोपण शुरू किया। 2007 से 2010 तक प्राचार्य रहे। मंशा सिर्फ ये कि हर नेत्रहीन की आंखों में उम्मीदों का दीया जलाया जा सके। आधुनिक मशीनों से विभाग को लैस किया। किंतु कार्निया बैंक खोलकर देशभर में चर्चा में आए। पहले पहुंचने वाले नेत्रहीनों में बिना किसी भेदभाव उन्होंने कार्निया प्रत्यारोपण शुरू किया। असर ये हुआ कि नेत्रदान करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी। हालांकि एक हजार से ज्यादा मरीजों को कार्निया की प्रतीक्षा है।
पारदर्शिता और समर्पण जरूरी है
सिर्फ सरकारी योजनाओं और प्रयासों से बड़ा परिवर्तन नहीं आएगा, आम व्यक्ति भी अपनी जिम्मेदारी समझे। चिकित्सा क्षेत्र में तमाम नियम कानून पुराने पड़ गए हैं, जिनमें बदलाव से नई पीढ़ी को ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकेगा। संस्थाओं में पूरी पारदर्शिता और समर्पण बेहद जरूरी है। मुझे खुशी है, मेडिकल के नेत्र बैंक में कार्निया डोनेट करने वाले लगातार पहुंच रहे हैं। चिकित्सकों को भी अपने सामाजिक दायित्वों को समझना होगा। इलाज से जरूरी है लोगों को जागरूक करना। अंगदान को लेकर भी बड़ा जन जागरण अभियान चलाने की जरूरत है। बदलाव अभी दिख रहा है, लेकिन लक्ष्य बड़ा बनाना होगा। उसे हासिल करना होगा।
नेत्रदान कराने में भी अव्वल
बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं, जिनकी संक्रमण या अन्य वजहों से आंखों की रोशनी चली गई। डॉ. संदीप ने ऐसे मरीजों में भरोसा पैदा किया। नेत्रदान के प्रति बड़ी संख्या में लोगों से फार्म भरवाया। मेडिकल कॉलेज में कार्यक्रम करने के साथ ही तमाम संगठनों के बीच पहुंचे। कई संस्थाएं नेत्रदान के लिए आगे आईं, और मरीजों की जिंदगी का रोशनदान खुलने लगा। आज बड़ी संख्या में मरीज मेडिकल कॉलेज में वेटिंग लिस्ट में हैं, जबकि फार्म भरकर नेत्रदान की शपथ लेने वालों की भी तादाद ज्यादा है। मेडिकल की एक प्रशिक्षित टीम मृतक शरीर से कार्निया सुरक्षित रूप से निकाल लेती है। आई बैंक की टीम 24 घंटे अलर्ट मोड में रहती है।
चुनौतियां
- डॉ. संदीप मित्तल के समक्ष चुनौती ये थी कि लोगों को नेत्रदान के लिए कैसे प्रेरित किया जाए। बड़ी संख्या में लोगों ने नेत्रदान का शपथपत्र भरा, किंतु संबंधित व्यक्ति की मौत पर मेडिकल टीम को सूचना नहीं दी। इससे कार्निया जुटाना मुश्किल हो गया।
- ज्यादातर लोग मोतियाबिंद, काला मोतिया और शुगर की बीमारी से अनभिज्ञ हैं। अन्य संक्रमण एवं आंख पर चोट से भी रोशनी खत्म हो सकती है, किंतु जागरूकता की कमी से बड़ी संख्या में लोग रोशनी गंवा बैठे, जबकि इसे बचाया जा सकता था। इससे भी कार्निया बैंक पर लोड बढ़ा।
रिसोर्स होता तो...
रिसोर्स होता तो डॉ. संदीप मित्तल नेत्र बैंक में अत्याधुनिक प्रयोग करते। एक पुतली से कई मरीजों को रोशनी दी जा सकती है। कार्निया में पांच परत होती है। हर अलग-अलग परत की अलग-अलग मरीजों में जरूरत होती है। इससे एक कार्निया कई मरीजों में प्रत्यारोपित की जा सकती है। वह कार्निया को अधिकतम 72 घंटे में रोपने के बजाय कई सप्ताह तक सुरक्षित रखने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। अगर रिसोर्स होता तो नेत्रदान को आम जनता तक पहुंचाने पर सर्वाधिक जोर दिया जाता।