LokSabha Election 2019 : सियासी जंग में ढलने लगा विरासत का रंग
इस बार चुनाव में कई चेहरे विरासत की डोर पर चुनावी भंवर में फंसते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस अपनी खोई ताकत पाने के लिए प्रियंका के रूप में सबसे बड़ा चेहरा उतार चुकी है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 02:43 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 02:43 PM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। विरासत की पगडंडी पर सियासत की डगर कठिन हो चली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां गांधी परिवार के रुतबे की परीक्षा है,वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौ.चरण सिंह की विरासत भुनाने में अजित सिंह भी एड़ी-चोटी का बल लगा रहे हैं। कई अन्य चेहरे भी विरासत की डोर पर चुनावी भंवर में फंसते नजर आ रहे हैं। प्रियंका का पहला ही तीर चूका कांग्रेस अपनी खोई ताकत पाने के लिए प्रियंका के रूप में सबसे बड़ा चेहरा उतार चुकी है।
क्या वोटों में बदल पाएंगे चेहरे
इस बेल्ट में गांधी परिवार के नजदीकी टिकट पाकर संसद में पहुंचते रहे,लेकिन राम मंदिर आंदोलन ने हवा का रुख बदल दिया। कांग्रेस जहां विरासत के रथ से नहीं उतरी,वहीं भाजपा,सपा और बसपा ने जमीनी पकड़ बढ़ा ली। अब गांधी परिवार के चेहरे पार्टी में हलचल तो मचा सकते हैं,लेकिन वोटों में बदल पाना आसान नहीं दिख रहा। गत दिनों प्रियंका ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से मिलकर दलित कार्ड खेला जरूर लेकिन उसका अपेक्षित फल मिलता नहीं दिख रहा। इससे पहले 2014 लोकसभा व 2017 विस चुनावों में राहुल गांधी ने भी रोड-शो किया,लेकिन उनका संगठन जमीन पर नहीं उतर पाया।
तक किसान हो जाते थे एकजुट
किस्मत आजमा रहे अजित-जयंत एक जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री चौ.चरण सिंह के इशारे पर किसान जाति व धर्म का बंधन तोड़कर एक साथ खड़ा हो जाता था। उनके पुत्र चौ.अजित सिंह मुलायम सिंह के प्रतिद्वंद्वी के रूप में मैदान में उतरे। मुलायम तीन बार मुख्यमंत्री बनने के साथ दो बार केंद्रीय मंत्री भी बने,लेकिन अजित सिंह प्रदेशव्यापी कद नहीं बना सके। वे केंद्र में मंत्री जरूर रहे। 2014 लोकसभा चुनाव में अजित सिंह खुद भी हार गए। 2017 में भी सिर्फ एक विधायक जीता, जो बाद में भाजपा में चला गया। उनके पुत्र जयंत मथुरा से सांसद रह चुके हैं। अजित की मां गायत्री देवी कैराना से सांसद चुनी गई थीं। अब जयंत बागपत व अजित सिंह मुजफ्फरनगर से किस्मत आजमा रहे हैं। हरेंद्र की भी परीक्षा कांग्रेस ने मेरठ से हरेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया है। वो पूर्व एमएलसी व अपने सगे छोटे भाई केंद्रीय मंत्री अखिलेश दास से विरासत की जंग में पिछड़ गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी परीक्षा
पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र अग्रवाल इस विरासत को धार नहीं दे पाए। कांग्रेस ने टिकट दिया है तो वे जी-जान से चुनाव में जुट गए हैं। विरासत की डाल पर सिंधिया कांग्रेस ने कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उप्र का प्रभारी बनाया। सिंधिया विरासत की राजनीति में बड़े चेहरे हैं। दिल्ली के गलियारों से लेकर मध्यप्रदेश तक की राजनीति करने वाले सिंधिया पार्टी कैडर से संवाद नहीं कर पाए। कांग्रेसी कार्यकर्ता मानते हैं कि बड़े नाम अब वोट के लिए गारंटी नहीं हैं,लेकिन वो जमीन पर उतरें तो जल्द कनेक्ट होंगे। शामली में कांग्रेस ने हरेंद्र मलिक को मैदान में उतारा है।
क्या वोटों में बदल पाएंगे चेहरे
इस बेल्ट में गांधी परिवार के नजदीकी टिकट पाकर संसद में पहुंचते रहे,लेकिन राम मंदिर आंदोलन ने हवा का रुख बदल दिया। कांग्रेस जहां विरासत के रथ से नहीं उतरी,वहीं भाजपा,सपा और बसपा ने जमीनी पकड़ बढ़ा ली। अब गांधी परिवार के चेहरे पार्टी में हलचल तो मचा सकते हैं,लेकिन वोटों में बदल पाना आसान नहीं दिख रहा। गत दिनों प्रियंका ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से मिलकर दलित कार्ड खेला जरूर लेकिन उसका अपेक्षित फल मिलता नहीं दिख रहा। इससे पहले 2014 लोकसभा व 2017 विस चुनावों में राहुल गांधी ने भी रोड-शो किया,लेकिन उनका संगठन जमीन पर नहीं उतर पाया।
तक किसान हो जाते थे एकजुट
किस्मत आजमा रहे अजित-जयंत एक जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री चौ.चरण सिंह के इशारे पर किसान जाति व धर्म का बंधन तोड़कर एक साथ खड़ा हो जाता था। उनके पुत्र चौ.अजित सिंह मुलायम सिंह के प्रतिद्वंद्वी के रूप में मैदान में उतरे। मुलायम तीन बार मुख्यमंत्री बनने के साथ दो बार केंद्रीय मंत्री भी बने,लेकिन अजित सिंह प्रदेशव्यापी कद नहीं बना सके। वे केंद्र में मंत्री जरूर रहे। 2014 लोकसभा चुनाव में अजित सिंह खुद भी हार गए। 2017 में भी सिर्फ एक विधायक जीता, जो बाद में भाजपा में चला गया। उनके पुत्र जयंत मथुरा से सांसद रह चुके हैं। अजित की मां गायत्री देवी कैराना से सांसद चुनी गई थीं। अब जयंत बागपत व अजित सिंह मुजफ्फरनगर से किस्मत आजमा रहे हैं। हरेंद्र की भी परीक्षा कांग्रेस ने मेरठ से हरेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया है। वो पूर्व एमएलसी व अपने सगे छोटे भाई केंद्रीय मंत्री अखिलेश दास से विरासत की जंग में पिछड़ गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी परीक्षा
पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र अग्रवाल इस विरासत को धार नहीं दे पाए। कांग्रेस ने टिकट दिया है तो वे जी-जान से चुनाव में जुट गए हैं। विरासत की डाल पर सिंधिया कांग्रेस ने कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उप्र का प्रभारी बनाया। सिंधिया विरासत की राजनीति में बड़े चेहरे हैं। दिल्ली के गलियारों से लेकर मध्यप्रदेश तक की राजनीति करने वाले सिंधिया पार्टी कैडर से संवाद नहीं कर पाए। कांग्रेसी कार्यकर्ता मानते हैं कि बड़े नाम अब वोट के लिए गारंटी नहीं हैं,लेकिन वो जमीन पर उतरें तो जल्द कनेक्ट होंगे। शामली में कांग्रेस ने हरेंद्र मलिक को मैदान में उतारा है।
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