लाई डिटेक्टर टेस्ट खोलेगा जासूसी के आरोपित कंचन के सच-झूठ का राज
जासूसी के आरोपित सेना के जवान कंचन सिंह का लाई डिटेक्टर टेस्ट किया जाएगा। पूछताछ में जुटे अधिकारी आरोपित के बयानों की गहनता से जांच कर रहे हैं।
By Ashu SinghEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 05:51 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 05:52 PM (IST)
मेरठ (जेएनएन)। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी के आरोप में पकड़े गए सैनिक कंचन सिंह से बारीकी से पूछताछ की जा रही है। ऐसे मामलों में बचने की प्रवृत्ति को देखते हुए सेना की ओर से हर स्तर के अधिकारी उससे पूछताछ कर रहे हैं जिससे उसकी बातों में समानता या असमानता को परखा जा सके। सीधे पूछताछ के बाद कंचन सिंह का लाई डिटेक्शन टेस्ट होगा जिसमें उसके सभी बयानों को मिलाकर सच्चाई का मिलान किया जाएगा। प्राथमिक जांच में दिए गए बयान यदि लाई डिटेक्शन टेस्ट से अलग हुए तो कंचन से पूछताछ के कई दौर और भी चलेंगे।
अहम होगा ट्रैप में आने का कारण
सेना के लिए कंचन का पाकिस्तानी एजेंसी के ट्रैप में आने का कारण बेहद अहम है। उसी से कंचन के तौर-तरीकों में आए बदलाव को देखा जाएगा। उसी आधार पर उसके आस-पास तैनात सैनिकों के हाव-भाव का मूल्यांकन करने के साथ ही अन्य यूनिटों में कार्यरत सैनिकों की गतिविधियों को परखने में मदद मिलेगी। जांच में यह भी देखा जा रहा है कि कंचन ने दुश्मन एजेंसी को अपनी अगली पोस्टिंग की भी जानकारी दी थी कि नहीं। उसी आधार पर उनकी अगली योजना का पता भी लगाने में आसानी होगी।
पश्चिमी कमान से अनुमति मिलने पर होगी इंक्वायरी
सेना की ओर से कंचन मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पश्चिमी कमान से अनुमति मिलने के बाद ही शुरू की जाएगी। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू करने का आदेश आने तक डिवीजन स्तर पर ही मामले की जांच को आगे बढ़ाया जाएगा। इस दौरान जासूसी प्रकरण से संबंधित सभी दस्तावेजों और जानकारियों से कमान के वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया जा रहा है। जांच में जुड़े वरिष्ठ अधिकारी स्वयं कोर को मुहैया करा रहे हैं और वहां से रिपोर्ट कमान को भेजी जा रही है।
बिगड़ रही मनोवैज्ञानिक दशा
बचने के सभी रास्ते बंद होते देख कंचन की मनोदशा बिगड़ती जा रही है। फौज की ट्रेनिंग के कारण वह शरीर व मानसिक तौर पर मजबूत जरूर है लेकिन उसे भी यह बात मालूम है कि जासूसी जैसे संगीन आरोप के बाद उसकी निजी व प्रोफेशनल जीवनशैली पूरी तरह से प्रभावित होगी। उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के बलौनी गांव में जहां हर दूसरा परिवार फौजी है वहां परिजनों का रहना भी दूभर हो जाएगा। रेजिमेंट के भी जो लोग कुछ दिनों पहले तक कंचन के साथ काम करते थे वे अब उससे या उसके बारे में बात करने से भी बच रहे हैं। अभी तक हुई सेना की जांच में बहुत अधिक सख्ती नहीं बरती गई है। लेकिन जरूरत पड़ने पर सेना सख्त रवैया भी अपना सकती है।
सैनिक के हर करीबी पर है खुफिया निगाह
मेरठ में पाक के लिए जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए बागेश्वर निवासी सैनिक कंचन सिंह के दोस्तों व फौज में तैनात सहयोगी भी शक के घेरे में आ गए हैं। पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई की निगाह उनके बैंक खातों पर भी है। आरोपित सैनिक के घर एवं आसपास की दुकानों पर भी लगातार नजर रखी जा रही है।
जांच-पड़ताल में जुटी खुफिया इकाई
पुलिस की खुफिया इकाई अब कंचन के दोस्तों व उसके समय तैनात हुए सहयोगियों की जांच पड़ताल में जुट गई है। फिलहाल यह जांच गोपनीय तरीके से ही हो रही है। अभी किसी से सीधे पूछताछ या गिरफ्तारी नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार उसके ऐसे दोस्तों की सूची तैयार की जा रही है जो यहां उसके साथ उठते-बैठते थे। जरुरत पड़ने पर उनके बैंक खातों की डिटेल भी ली जाएगी। आरोपित के घर एवं आने-जाने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। बागेश्वर के प्रभारी एसपी पंकज भट्ट का कहना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामला हैं। पुलिस का गोपनीय विभाग जांच में जुटा हुआ है। देश की सुरक्षा के मद्देनजर इस मामले में कुछ बोला नहीं जा सकता है।
क्षेत्र के माहौल में आया बदलाव
जिले के करीब 60 प्रतिशत से अधिक युवा फौज में हैं। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर चीन व पाकिस्तान की जंग में यहां के कई जाबांज शहीद हुए। अब जिला मुख्यालय के एक गांव के सैनिक का नाम पाकिस्तान के लिए ी करने में सामने आने से हर कोई स्तब्ध है। मानवाधिकार संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष एनबी भट्ट ने कहा कि इस मामले में गहन जांच-पड़ताल की जरूरत है। वहीं दशहरा पर्व पर इस बार आरोपित कंचन सिंह के घर पर भी सन्नाटा है। परिवार के लोग तरह-तरह की आशंकाओं से परेशान हैं और बेटे को बेकसूर बता रहे हैं।
ग्रामीण युवाओं को स्लीपर सेल बनाने की है साजिश
सेना की भाषा में फ्रंटलाइन यानी सरहदों पर तैनात सैनिकों से संपर्क करना या उनसे जानकारी हासिल करना दुश्मन सेना या एजेंसियों के लिए आसान नहीं होता है। वहां हर समय हर किसी पर हर किसी की नजर रहती है। जम्मू-कश्मीर के विभिन्न सेक्टर्स में तैनात रहे मेजर जनरल (रि.) जेआर भट्टी का मानना है कि ऐसे में देश के विभिन्न प्रदेशों में सुदूर क्षेत्र के रहने वाले सैनिकों को निशाना बनाया जा रहा है। इन पर अमूमन किसी को संदेह नहीं होता। इस तरह के सैनिकों से थोड़ी-थोड़ी सूचनाएं अधिक समय तक मिलती रहती हैं।
स्लीपर सेल की तरह करते हैं इस्तेमाल
मेजर जनरल भट्टी का कहना है कि ग्रामीण परिवेश के युवाओं को धीरे-धीरे अपने जाल में फंसाने के बाद उनका इस्तेमाल भविष्य के लिए स्लीपर सेल के तौर पर किया जाता है। उसकी सेना काल के दौरान विभिन्न जगहों पर तैनाती पर एजेंसी के लोग नजर रखते हैं। मौके की जगह पर पहुंचते ही दुश्मन एजेंसी के लोग अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं। सेना की यूनिट्स में सिस्टम काम करता है। मतलब कि कोई भी अकेले ऑपरेट नहीं करता। इसलिए दुश्मन एजेंसियों की नजर एक से अधिक लोगों पर रहती है।
नियुक्ति से पहले तक होनी चाहिए जांच
मेजर जनरल जेआर भट्टी का मानना है कि ऐसे मामलों में सैनिक की नियुक्ति से पूर्व की भी जांच की जानी चाहिए। संभव है कि उसे दुश्मन एजेंसियों ने किसी तरह पहले ही अपने जाल में फंसा लिया हो और उसी उद्देश्य के तहत वह भर्ती हो गया। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां लगातार अपना स्लीपर सेल तैयार करने की फिराक में हैं। इसके लिए वह सालों से अपनी योजनाओं को अंजाम देते हैं। भर्ती और ट्रेनिंग के दौरान हर समय गहन छानबीन की प्रक्रिया के कारण अब तक ऐसा नहीं हो सका है।
हो सकता है नेटवर्क का राजफाश
मेजर जनरल भट्टी के अनुसार सिग्नलमैन को ट्रैप में लेने का निशाना सही लगा है। इस महत्वपूर्ण रेजिमेंट के पास हर जानकारी होती है। देखने वाली बात यह है कि यह हनी या मनी ट्रैप में फंसा है। जांच में इसमें सेना के भीतर या बाहर किसी नेटवर्क का राजफाश भी हो सकता है। सेना की खुफिया विभाग ने बेहद सूझबूझ और सतर्कता से काम किया तभी उसे पकड़ सके। ऐसे मामलों की जांच में काफी समय लगता है, जिसमें धीरे-धीरे परतें खुलती हैं।
अहम होगा ट्रैप में आने का कारण
सेना के लिए कंचन का पाकिस्तानी एजेंसी के ट्रैप में आने का कारण बेहद अहम है। उसी से कंचन के तौर-तरीकों में आए बदलाव को देखा जाएगा। उसी आधार पर उसके आस-पास तैनात सैनिकों के हाव-भाव का मूल्यांकन करने के साथ ही अन्य यूनिटों में कार्यरत सैनिकों की गतिविधियों को परखने में मदद मिलेगी। जांच में यह भी देखा जा रहा है कि कंचन ने दुश्मन एजेंसी को अपनी अगली पोस्टिंग की भी जानकारी दी थी कि नहीं। उसी आधार पर उनकी अगली योजना का पता भी लगाने में आसानी होगी।
पश्चिमी कमान से अनुमति मिलने पर होगी इंक्वायरी
सेना की ओर से कंचन मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पश्चिमी कमान से अनुमति मिलने के बाद ही शुरू की जाएगी। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू करने का आदेश आने तक डिवीजन स्तर पर ही मामले की जांच को आगे बढ़ाया जाएगा। इस दौरान जासूसी प्रकरण से संबंधित सभी दस्तावेजों और जानकारियों से कमान के वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया जा रहा है। जांच में जुड़े वरिष्ठ अधिकारी स्वयं कोर को मुहैया करा रहे हैं और वहां से रिपोर्ट कमान को भेजी जा रही है।
बिगड़ रही मनोवैज्ञानिक दशा
बचने के सभी रास्ते बंद होते देख कंचन की मनोदशा बिगड़ती जा रही है। फौज की ट्रेनिंग के कारण वह शरीर व मानसिक तौर पर मजबूत जरूर है लेकिन उसे भी यह बात मालूम है कि जासूसी जैसे संगीन आरोप के बाद उसकी निजी व प्रोफेशनल जीवनशैली पूरी तरह से प्रभावित होगी। उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के बलौनी गांव में जहां हर दूसरा परिवार फौजी है वहां परिजनों का रहना भी दूभर हो जाएगा। रेजिमेंट के भी जो लोग कुछ दिनों पहले तक कंचन के साथ काम करते थे वे अब उससे या उसके बारे में बात करने से भी बच रहे हैं। अभी तक हुई सेना की जांच में बहुत अधिक सख्ती नहीं बरती गई है। लेकिन जरूरत पड़ने पर सेना सख्त रवैया भी अपना सकती है।
सैनिक के हर करीबी पर है खुफिया निगाह
मेरठ में पाक के लिए जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए बागेश्वर निवासी सैनिक कंचन सिंह के दोस्तों व फौज में तैनात सहयोगी भी शक के घेरे में आ गए हैं। पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई की निगाह उनके बैंक खातों पर भी है। आरोपित सैनिक के घर एवं आसपास की दुकानों पर भी लगातार नजर रखी जा रही है।
जांच-पड़ताल में जुटी खुफिया इकाई
पुलिस की खुफिया इकाई अब कंचन के दोस्तों व उसके समय तैनात हुए सहयोगियों की जांच पड़ताल में जुट गई है। फिलहाल यह जांच गोपनीय तरीके से ही हो रही है। अभी किसी से सीधे पूछताछ या गिरफ्तारी नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार उसके ऐसे दोस्तों की सूची तैयार की जा रही है जो यहां उसके साथ उठते-बैठते थे। जरुरत पड़ने पर उनके बैंक खातों की डिटेल भी ली जाएगी। आरोपित के घर एवं आने-जाने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। बागेश्वर के प्रभारी एसपी पंकज भट्ट का कहना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामला हैं। पुलिस का गोपनीय विभाग जांच में जुटा हुआ है। देश की सुरक्षा के मद्देनजर इस मामले में कुछ बोला नहीं जा सकता है।
क्षेत्र के माहौल में आया बदलाव
जिले के करीब 60 प्रतिशत से अधिक युवा फौज में हैं। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर चीन व पाकिस्तान की जंग में यहां के कई जाबांज शहीद हुए। अब जिला मुख्यालय के एक गांव के सैनिक का नाम पाकिस्तान के लिए ी करने में सामने आने से हर कोई स्तब्ध है। मानवाधिकार संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष एनबी भट्ट ने कहा कि इस मामले में गहन जांच-पड़ताल की जरूरत है। वहीं दशहरा पर्व पर इस बार आरोपित कंचन सिंह के घर पर भी सन्नाटा है। परिवार के लोग तरह-तरह की आशंकाओं से परेशान हैं और बेटे को बेकसूर बता रहे हैं।
ग्रामीण युवाओं को स्लीपर सेल बनाने की है साजिश
सेना की भाषा में फ्रंटलाइन यानी सरहदों पर तैनात सैनिकों से संपर्क करना या उनसे जानकारी हासिल करना दुश्मन सेना या एजेंसियों के लिए आसान नहीं होता है। वहां हर समय हर किसी पर हर किसी की नजर रहती है। जम्मू-कश्मीर के विभिन्न सेक्टर्स में तैनात रहे मेजर जनरल (रि.) जेआर भट्टी का मानना है कि ऐसे में देश के विभिन्न प्रदेशों में सुदूर क्षेत्र के रहने वाले सैनिकों को निशाना बनाया जा रहा है। इन पर अमूमन किसी को संदेह नहीं होता। इस तरह के सैनिकों से थोड़ी-थोड़ी सूचनाएं अधिक समय तक मिलती रहती हैं।
स्लीपर सेल की तरह करते हैं इस्तेमाल
मेजर जनरल भट्टी का कहना है कि ग्रामीण परिवेश के युवाओं को धीरे-धीरे अपने जाल में फंसाने के बाद उनका इस्तेमाल भविष्य के लिए स्लीपर सेल के तौर पर किया जाता है। उसकी सेना काल के दौरान विभिन्न जगहों पर तैनाती पर एजेंसी के लोग नजर रखते हैं। मौके की जगह पर पहुंचते ही दुश्मन एजेंसी के लोग अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं। सेना की यूनिट्स में सिस्टम काम करता है। मतलब कि कोई भी अकेले ऑपरेट नहीं करता। इसलिए दुश्मन एजेंसियों की नजर एक से अधिक लोगों पर रहती है।
नियुक्ति से पहले तक होनी चाहिए जांच
मेजर जनरल जेआर भट्टी का मानना है कि ऐसे मामलों में सैनिक की नियुक्ति से पूर्व की भी जांच की जानी चाहिए। संभव है कि उसे दुश्मन एजेंसियों ने किसी तरह पहले ही अपने जाल में फंसा लिया हो और उसी उद्देश्य के तहत वह भर्ती हो गया। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां लगातार अपना स्लीपर सेल तैयार करने की फिराक में हैं। इसके लिए वह सालों से अपनी योजनाओं को अंजाम देते हैं। भर्ती और ट्रेनिंग के दौरान हर समय गहन छानबीन की प्रक्रिया के कारण अब तक ऐसा नहीं हो सका है।
हो सकता है नेटवर्क का राजफाश
मेजर जनरल भट्टी के अनुसार सिग्नलमैन को ट्रैप में लेने का निशाना सही लगा है। इस महत्वपूर्ण रेजिमेंट के पास हर जानकारी होती है। देखने वाली बात यह है कि यह हनी या मनी ट्रैप में फंसा है। जांच में इसमें सेना के भीतर या बाहर किसी नेटवर्क का राजफाश भी हो सकता है। सेना की खुफिया विभाग ने बेहद सूझबूझ और सतर्कता से काम किया तभी उसे पकड़ सके। ऐसे मामलों की जांच में काफी समय लगता है, जिसमें धीरे-धीरे परतें खुलती हैं।
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