अजी इंतजाम छोड़िए, इंजीनियरिंग में ही खोट है
टोल धड़ल्ले से वसूला जाता है जबकि हाईवे पर होने वाले इंतजाम नदारद हैं। संकेतक डिवाइडर स्ट्रीट लाइट गायब। इसके लिए तमाम प्रावधान हैं लेकिन निगेहबान पर्दे वाली कार में पीछे की सीट पर बैठते हैं तो उन्हें सबकुछ चकाचक दिखता है।
प्रदीप द्विवेदी, मेरठ : टोल धड़ल्ले से वसूला जाता है जबकि हाईवे पर होने वाले इंतजाम नदारद हैं। संकेतक, डिवाइडर, स्ट्रीट लाइट गायब। इसके लिए तमाम प्रावधान हैं, लेकिन निगेहबान पर्दे वाली कार में पीछे की सीट पर बैठते हैं तो उन्हें सबकुछ चकाचक दिखता है। हाईवे किनारे के संस्थानों ने बिना अनुमति के अवैध कट बना लिए हैं, यहां से कब और कितने वाहन रोड पर अचानक प्रवेश कर जाएं कोई भांप नहीं सकता। इसे रोकने वाले जिम्मेदार अफसर इन्हें नजरअंदाज कर जाते हैं। ऐसे में कोहरा आने वाला है तो संभल कर चलें। संकेतक नहीं है तो भी सचेत होकर और खुद आसपास नजर रखते हुए चलें। आपकी जिंदगी, आपके ही हाथ में है, खुद की जान खुद बचाइए।
देहरादून हाईवे पर कुछ स्थानों पर संकेतक मिल जाते हैं और बहुत कुछ नियमानुसार भी है, लेकिन यह काफी नहीं है। इसी हाईवे पर तमाम अवैध कट हैं। तीव्र मोड़ हैं और ब्लैक स्पॉट हैं जिन्हें संकेतक कुछ समझा नहीं पाते। हापुड़ रोड जिसे अब एनएच-235 कहा जा रहा है, यहां पर कोहरे की वजह से एक कंटेनर हाईवे के नीचे चला गया। इसकी वजह संकेतक और क्रैश बैरियर का न होना है। गढ़ रोड राज्यमार्ग है, लेकिन इसकी दुर्दशा वाहन चालकों को बहुत परेशान करती है। यहां पर इंतजाम नदारद मिलते हैं। मेरठ-पौड़ी मार्ग भी राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए चयनित है, जिस पर भारी टै्रफिक है लेकिन सुरक्षा के इंतजाम कुछ हैं ही नहीं। सड़कों की स्थिति जैसी तैसी है तो वहीं संकेतक व रिफ्लेक्टर भी कुछ ही स्थानों पर हैं। ब्लैक स्पाटों व दुर्घटना संभावित क्षेत्रों पर भी सावधानी के बोर्ड बस खानापूर्ति को हैं। दिल्ली रोड वैसे तो अब राज्य मार्ग या राष्ट्रीय मार्ग से बाहर हो चुका है, लेकिन इसका उपयोग किसी राष्ट्रीय मार्ग की तरह ही होता है। यहां रोजाना दुर्घटनाएं होती हैं, लेकिन सड़क सुरक्षा के उपाय गायब हैं। हाईवे या हेवी टै्रफिक वाली
सड़कों पर यह होना चाहिए
चिह्न और मार्किंग : यदि कहीं वाइ शेप का इंटरशेक्शन है तो वहां पर रेट्रो रिफ्लेक्टिव रोड साइन और थर्मोप्लास्टिक मार्किंग होनी चाहिए। तीव्र मोड़, स्कूल, अस्पताल आदि के लिए संकेतक होने चाहिए। अगर आगे पेडेस्ट्रियन है तो उसकी जानकारी पहले से ही संकेतक से दी जानी चाहिए। ऐसे संकेतक कम से कम 120 मीटर पहले लगाए जाने चाहिए। संकेतक ऐसे हों जो रात के अंधेरे में भी पढ़े जा सकें। पेड़ों की ऊंचाई : हाईवे के बीच भाग में लगाए जाने वाले पौधे 600 मिमी से ऊंचे न हों। पौधे ऐसे हों जिससे दूसरी तरफ से आने वाले वाहन भी दिखाई दें। यू-टर्न : यदि कहीं यू-टर्न दिया जा रहा है तो वहां पर अतिरिक्त लेन बनाया जाना चाहिए ताकि आने-जाने वाले वाहन बिना टकराए मुख्य लेन में प्रवेश कर सकें। क्रैश बैरियर : दुर्घटना बहुल क्षेत्र, तीव्र मोड़, पुल, नहर आदि के आसपास क्रैश बैरियर आवश्यक है। सड़क की सतह से इसकी ऊंचाई 2.40 मीटर होनी चाहिए। यह बैरियर रिजिड, सेमी रिजिड व फ्लेक्सिबल होने चाहिए। अगर कहीं फ्लाईओवर है तो वहां पर स्टील के पैनल से बने क्रैश बैरियर होने चाहिए। यदि कहीं रोड के बीच में या किनारे पोल हैं तो वहां भी क्रैश बैरियर होने चाहिए। क्लाइंबिंग लेन : वाहनों को ओवरटेक करने के लिए अलग से क्लाइंबिंग लेन होना चाहिए। हालांकि इसके लिए कुछ दूरी निश्चित की गई है।