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खतरे की घंटी : धरती की नस-नस में समाया कीटनाशक, इस घातक बीमारी की चपेट में हम सब Meerut News

केजीएमयू ने खरखौदा में छह हजार मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री पर शोध किया। देश में सर्वाधिक कीटनाशक की खपत मेरठ में ब्लड कैंसर का बढ़ा रिस्क।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 11:58 AM (IST)Updated: Tue, 08 Oct 2019 11:58 AM (IST)
खतरे की घंटी : धरती की नस-नस में समाया कीटनाशक, इस घातक बीमारी की चपेट में हम सब Meerut News
खतरे की घंटी : धरती की नस-नस में समाया कीटनाशक, इस घातक बीमारी की चपेट में हम सब Meerut News

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। सेहत के लिहाज से खरखौदा ब्लाक क्षेत्र के लिए यह खबर अशुभ है। देशभर में कीटनाशकों का सर्वाधिक प्रयोग होने से यहां की धरती जहरीली हो रही है। ब्लड कैंसर, बोनमेरो और एप्लास्टिक एनीमिया के मरीजों की बढ़ती संख्या पर केजीएमयू (किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी), लखनऊ की टीम ने छह हजार से ज्यादा मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री खंगाली है। 200 मरीजों के रक्त एवं यूरिन सैंपल में भी खतरनाक रसायन मिलने की आशंका है। कीटनाशक की सबसे ज्यादा खपत मेरठ और कम प्रयोग वाले झांसी के बीच तुलनात्मक अध्ययन होगा।

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किसी को कैंसर, कहीं किडनी फेल

सीएमओ डा. राजकुमार ने बताया कि इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल के प्रोजेक्ट के अंतर्गत केजीएमयू की प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर डा. मोनिका अग्रवाल की टीम 15 हजार लोगों पर कीटनाशकों के असर का अध्ययन कर रही है। प्रथम चरण में स्वास्थ्य केंद्रों के जरिए छह हजार मरीजों की जांच में बीमारी की बड़ी वजह कीटनाशकों को माना जा रहा है। खरखौदा क्षेत्र में रक्त कैंसर, बोन कैंसर, स्मृति लोप, हड्डियों के मरीज, एनीमिया, मिचली, पेट और किडनी से संबंधित मरीज बड़ी संख्या में मिले हैं। ये हालात खतरनाक हैं। टीम ब्लाक के 20 गांवों में जांच कर चुकी है। कई मरीजों में लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) एवं सफेद रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) की मात्रा मानक से भिन्न मिली, जो ब्लड कैंसर का संकेत है। कीटनाशकों से एप्लास्टिक एनीमिया भी हो सकता है। स्वास्थ्य विभाग की पड़ताल में भी ब्लाक क्षेत्र में रक्त कैंसर, आस्टियोपोरोसिस, एनीमिया एवं हार्मोनल डिसआर्डर के कई मरीज मिल चुके हैं।

लक्ष्य से 200 फीसद ज्यादा खपत

कीटनाशक लक्ष्य के सापेक्ष

धूलयुक्त रसायन 123 फीसद

तरल कीटनाशक 192 फीसद

फफूंदीनाशक 229 फीसद

तृणनाशक 160 फीसद

मूषनाशक 226 फीसद

कुल लक्ष्य>> 37.3 मीटिक टन

उपलब्धता 55.0 मीटिक टन

वितरण 40.9 मीटिक टन

खरखौदा ब्लाक में करीब 9000 किलो-खरीफ 2018 में

इन्‍होंने बताया

रिसर्च टीम ने छह हजार मरीजों की काउंसिलिंग की। इनमें से कई में बीमारी की वजह पेस्टीसाइड हो सकती है। 200 मरीजों के रक्त एवं यूरिन सैंपल जांच के लिए लखनऊ भेजे हैं। कीटनाशकों का शरीर पर घातक असर तय है।

- डा. मोनिका अग्रवाल, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, केजीएमयू 


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