अनहद : जब EPCA के चेयरमैन भूरेलाल कूड़े का पहाड़ देख सचमुच हो गए थे लाल, अफसर कहने लगे त्रहिमाम-त्रहिमाम Meerut News
दिल्ली से हापुड़ तक पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारों के लचर रवैए से नाराज इस पर्यावरण प्रहरी ने जब मेरठ की सीमा में प्रवेश करते ही कचरे का पहाड़ देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। अफसरों के पास हाथ जोड़ने के अलावां कोई और चारा नहीं बचा।
रवि प्रकाश तिवारी, मेरठ। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण के चेयरमैन भूरेलाल शनिवार को दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण का हाल देखने निकले थे। दिल्ली से हापुड़ तक पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारों के लचर रवैए से नाराज इस पर्यावरण प्रहरी ने जब मेरठ की सीमा में प्रवेश करते ही कचरे का पहाड़ देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। जो अफसर सामने पड़ा, उसे उधेड़ दिया। हाथ जोड़ने के अलावा अफसरों के पास कोई चारा नहीं था। त्रहिमाम-त्रहिमाम अफसरों ने जैसे-तैसे खुद को बचाया। रुड़की रोड के नाले के पास पहुंचते ही विषैली गैस की दरुगध भूरेलाल जी ने पहचान ली, जिसे मेरठ के अफसर आज तक नहीं सूंघ पाए थे। नाले के काले भारी पानी को देख भूरेलाल का चेहरा लाल हो गया। उनका दौरा हमारे सिस्टम की बदरंग तस्वीर एक बार पुन: दिखा गया। देखना है, बदनामी के जिम्मेदार कुछ सुधार करते हैं या लीपापोती।
स्पॉट कौन सा जो हॉट नहीं
प्रदूषित शहरों की नई सूची आयी है, 16 शहरों में मेरठ कायम है। तय किया गया है कि जिला स्तरीय अधिकारी एक कमेटी बनाकर तय करेंगे कि शहर के कौन-कौन हिस्से हॉटस्पॉट हैं। जिला पर्यावरण समिति की अगुवाई में यह काम होना है। अब सवाल यह उठता है कि अगर जिला पर्यावरण समिति इतनी ही काबिल होती तो शहर प्रदूषित ही क्यों होता? या शहर प्रदूषित न हो, इसकी खातिर जमीनी स्तर पर कदम ही क्या उठाए गए? जनता इन सवालों का जवाब खोज रही है। एनजीटी की तमाम डांट-फटकार के बाद आज भी हर शाम-सुबह धधकते कूड़े के ढेर दिख जाएंगे। शहर के अंदर बिखरी हुई गंदगी और बाहरी छोर पर कूड़े के पहाड़, ऐसे में शहर का पर्यावरण प्रदूषित तो होगा ही। समिति ईमानदारी से यही बता दे कि शहर का वह कौन-सा कोना है जो हॉटस्पॉट की परिभाषा में फिट नहीं बैठता।
कताई मिल की किस्मत कौन बदले
शहर के बाहरी छोर पर जर्जर शेडों के बीच सन्नाटे में पड़ी 90 एकड़ जमीन। आज यही पहचान है कताई मिल परिसर की। जब चुनाव होता है, तभी इस ओर सबकी निगाहें घूमती हैं। चुनाव के बाद मतपेटियां रखने से लेकर उसकी गिनती तक के लिए सबसे सेफ जोन प्रशासन इसी लोकेशन को मानता है। कताई मिल के इस परिसर में न जाने कितनों के सपने पूरे हुए और कई को राजनीति के शिखर का रास्ता मिला, लेकिन तमाम आश्वासनों और वादों के बावजूद समय के साथ कताई मिल की सिसकियां सन्नाटे में बदल गईं। अब फिर इसका मुद्दा उठा है। मेरठ में उद्योग और फले-फूले, आगे बढ़े, इसकी खातिर जमीन की जरूरत है। उद्योगों के पहिए की गति बढ़ाने के लिए जब मुख्यमंत्री ने खुद पहल की तो उद्यमियों ने कताई मिल का नाम सुझाया। देखना है, इसकी किस्मत बदलती है क्या?
ये मौतें डरा रही हैं
कोरोना बेरहम होता जा रहा है। मई में कोरोना ने पहली बार अपने तेवर बदले थे तो शहर हिल गया था। रोजाना तीन-चार मौतों से शहर सन्नाटे में आ गया था, लेकिन सितंबर में कोरोना का विकराल रूप भी लोगों को डरा नहीं पा रहा है। रोजाना पांच-सात की मौत, और औसतन 200 में संक्रमण मेरठ जैसे शहर के लिए बहुत ही खतरनाक है, लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं। मुंह और नाक कवर करने की बजाए, मास्क टुड्डियों पर आ टिका है। न कोई शारीरिक दूरी का पालन कर रहा है, और न ही कोरोना के दूसरे प्रोटोकॉल का। यह जरूरी है कि अर्थव्यवस्था का पहिया घूमना चाहिए, लेकिन उसे घुमाने में हम इतने भी बेलगाम न हो जाएं कि रौंदे जाएं। चेत जाइए, क्योंकि आंकड़ें गवाह हैं, जांचें उतनी ही हैं, मौंते दो गुनी बढ़ गई हैं, संक्रमण चार गुना तक चढ़ गया है।