केदारनाथ त्रासदी : मृत्यु प्रमाण पत्र मिल गया लेकिन जिंदा होने का अहसास नहीं मरा, मेरठ से भी अपनों को खोया था
Kedarnath Tragedy 2013 16-17 जून 2013 को केदारनाथ में आई प्राक्रतिक आपदा में मेरठ के कई लोगों ने अपनों को खोया था। अलग अलग परिवारों से जुड़े इन लोग के जीवित होने के कोई प्रमाण न मिल रहे हों लेकिन अहसास आज भी जिंदा है।
मेरठ, जागरण संवाददाता। Kedarnath Tragedy 2013: केदारनाथ में 16 - 17 जून 2013 को आई प्राकृतिक आपदा के दंश का शिकार मेरठ के 17 लोग हुए थे। अलग अलग परिवारों से जुड़े इन लोग के जीवित होने के कोई प्रमाण न मिल रहे हों लेकिन उनके शवों का न मिलना आज भी उनके परिजनों को मन मष्तिष्क पर जीवित होने के अहसास को मरने नहीं दे रहा है।
आज भी उनका है अहसास
प्रस्तुत है ऐसे परिवारों से बातचीत के अंश पंच शील कालोनी निवासी दानिश शर्मा ने बताया कि केदारनाथ की यात्रा पर गए माता प्रमिला और पिता गिरीश शर्मा 61 वर्षीय से 15 जून 2013 को अंतिम बार बात हुई थी। माता पिता के मृत्यु का प्रमाण पत्र तो अगस्त 2013 में मिल गया था। लेकिन आज भी यह अहसास मरा नहीं है कि वह जिंदा नहीं हैं। बताया कि पिता के बारे में तो वह एक बार सोच लेते हैं लेकिन पेशे शिक्षका रही मां बेहद जीजीविषा की धनी थी। वह संघर्षशील और हार न मानने वाली महिला थी।
तांत्रिक का भी सहारा लिया
परिवार को लेकर उनकी आंखों में कई सपने थे वह हमें इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकती। माता पिता के फोटो लेकर वह उनकी बहनें कई बार गौरी कुंड, रुद्र प्रयाग, त्रियोगी नारायण गए। बाबाओं और तांत्रिक का भी सहारा लिया। बताया कि त्रासदी में याददाश्त खोने वाले राजस्थान का व्यक्ति 2018 में अपने परिवार के पास लौटा था। ऐसी घटनाएं माता पिता के होने का अहसास जगाए हुए हैं। पिता जी मां को ढूंढने निकल गए फिर नहीं आए पेशे से कांट्रेक्टर डालम पाड़ा निवासी भुवन चंद मांगलिक 52 वर्ष अपनी पत्नी स्नेहा के साथ 13 जून 2013 को मेरठ से केदारनाथ जाने के लिए निकले थे।
जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे
उनके पुत्र आकाश ने बताया कि 15 को उनकी पिता से फोन पर बात हुई थी। उस समय वह होटल में थे। आकाश ने बताया कि वह उस समय 25 वर्ष के थे और एलएलबी कर रहे थे। उनके ताऊ हरिकिशन मांगलिक ने उन्हें मां बाप को ढूंढने जाने से रोक दिया था। आकाश ने बताया कि वह आज खुद भी वहां जाने की हिम्मत न जुटा पाए। बताया कि जिस होटल में माता पिता ठहरे थे वह सैलाब में बह गया था।
उनके साथ ठहरे जो लोग बच गए थे
उन्होंने बताया कि उनके पिता भी जीवित थे लेकिन मां का पता नहीं था। पिता जी उनको ढूंढने निकल गए थे और फिर वह भी नहीं मिले । आकाश ने बताया कि माता पिता को इस तरह अचानक खोने से हुए दुख से उबरने का मौका नहीं मिला था कि एक दो माह बाद ही लोगों ने तकादा करना आरंभ कर दिया। पिता के सम्मान पर आंच न आए इस अहसास ने उन्हें काम पर ध्यान केंद्रित करने को मजबूर कर दिया और धीरे धीरे कर 35 लाख रुपये की देनदारी चुकाई। पिता जी ने जो रकम उन्होंने दूसरों को दी थी उसका कुछ पता नहीं चला। दो तीन माह के बाद सरकार ने मुआवजे के रूप में साढ़े पांच लाख रुपये दिए थे। पर मेरे जैसे लोग जिनका सब कुछ चला गया उनके लिए यह रकम ना काफी है। सरकार को सम्मानजनक मुआवजा और सहायता प्रदान करनी चाहिए।