शहरों की सुंदरता संग रोजगार सृजन भी, कबाड़ से तय कर रहे स्वावलंबन की यात्रा
सरफराज ने बताया कि वह प्लास्टिक लेने के बाद मशीन के माध्यम से उसे रिसाइकिल करते हैं। इसके बाद उत्पाद का डिजाइन तैयार कर उत्पाद तैयार करते हैं। वर्ष 2018 से सरफराज और साक्षी यह काम कर रहे हैं। सबसे पहले चश्मा बनाया था।
गाजियाबाद अभिषेक सिंह/मेरठ दिलीप पटेल। दुनिया प्लास्टिक के कचरे से परेशान है। इससे गंदगी के साथ पर्यावरण को भी नुकसान होता है, लेकिन वेडिंग प्लानर से कलाकार बने मेरठ के सरफराज अली और दरभंगा की साक्षी झा ने इसके सदुपयोग संग आत्मनिर्भरता की राह भी खोजी है। ये दोनों प्लास्टिक के कबाड़ से कुर्सी, मेज, दीवार घड़ी के साथ साज-सज्जा का सामान तैयार कर रहे हैं। सिर्फ गाजियाबाद ही नहीं, इनके बनाए उत्पादों की मांग मेरठ, गोरखपुर सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में है। दोनों के बनाए गए उत्पादों को उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सराह चुके हैं। अब ये ऐसे यंत्र तैयार कर रहे हैं जो प्लास्टिक कचरे के पुनः प्रयोग और रोजगार सृजन का माध्यम बनेंगे। पीएम द्वारा मन की बात में मेरठ के अभियान का जिक्र करने के बाद से इनके पास कई नगर निगमों से काम के लिए प्रस्ताव आने शुरू हो गए हैं। मुंबई, रांची और श्रीनगर ने संपर्क किया है।
वैवाहिक समारोहों में कचरा देख आया विचार
इस यात्रा के बारे में सरफराज बताते हैं कि कालेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात साक्षी से हुई। दोनों ने मिलकर पहले वेडिंग प्लानर का कार्य किया। इसी दौरान वैवाहिक समारोहों में उन्होंने बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा देखा, तो उसे सदुपयोग में लाने का विचार आया। दोनों ने इस पर कार्य शुरू किया और लोहे के कबाड़ को भी अपनी योजना में शामिल किया। गाजियाबाद नगर निगम से प्लास्टिक का कचरा लेना आरंभ किया। इन की बनाई की-बोर्डनुमा टेबल गाजियाबाद में कौशांबी क्षेत्र के पार्क में लगी तो सुंदरता बढ़ गई। इसके बाद सरफराज और साक्षी ने ताजमहल, लालकिला, कुतुबमीनार सहित कई अन्य धरोहरों की प्रतिकृतियां बनाईं, जिन्हें गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के पास लगाया गया। इन्होंने विश्व का सबसे बड़ा चरखा बनाया है जो नोएडा में लगा है। 20 फीट का लूडो बोर्ड कानपुर के पार्क में लगा है। इन दोनों द्वारा प्लास्टिक और आयरन स्क्रैप (पुराने हाथ ठेले के पहिए, रिम, चैन, पैडल व अन्य प्रकार के कबाड़) से चौराहों पर बनाए गए फाउंटेन, लाइट ट्री, चरखा जैसी क्लाकृतियों की वजह से मेरठ नगर निगम के प्रयासों की सराहना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में मन की बात कार्यक्रम में थी। इसके बाद से इनका काम देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है।
प्लास्टिक के कचरे से बनेगी रुई
सरफराज ने बताया कि उन्होंने एक साल तक प्रयोग करके एक ऐसी मशीन तैयार की है, जो प्लास्टिक के कचरे से रुई तैयार करेगी। बिजली से चलने वाली यह मशीन एक दिन में 500 किलो प्लास्टिक को रुई में बदलेगी। इस रुई से तकिया, रजाई भरी जा सकेंगी। टेडी बियर भी बनाए जा सकते हैं। रुई से धागा तैयार कर कपड़े के थैले भी बनाए जा सकेंगे। यह मशीन कैंडी फ्लास (बुढ़िया के बाल) बनाने वाली मशीन की तर्ज पर डिजाइन की गई है। इसमें एक तरफ से प्लास्टिक का कचरा डालते हैं और दूसरी तरफ फाइबर काटन के रूप में रुई निकलती है। इसकी लांचिंग के लिए बहुत जल्द मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलेंगे।
ऐसे करते हैं कार्य
सरफराज ने बताया कि वह प्लास्टिक लेने के बाद मशीन के माध्यम से उसे रिसाइकिल करते हैं। इसके बाद उत्पाद का डिजाइन तैयार कर उत्पाद तैयार करते हैं। वर्ष 2018 से सरफराज और साक्षी यह काम कर रहे हैं। सबसे पहले चश्मा बनाया था। अब तक 200 टन प्लास्टिक के कचरे को रिसाइकिल कर चुके हैं। घर-घर जाकर प्लास्टिक एकत्र करने के लिए लोगों को जागरूक भी करते हैं। सरफराज और साक्षी बताते हैं कि उन्हें तीन एशिया बुक आफ रिकार्ड और तीन इंडिया बुक आफ रिकार्ड मिल चुके हैं। दोनों की आय लगभग एक लाख रुपये प्रतिमाह है। गाजियाबाद के डासना में वर्कशाप है। जहां सात लोगों की टीम मिलकर काम करती है। 15 लोगों की टीम फील्ड पर काम करती है।