Move to Jagran APP

वंशी की तान से झमाझम बरसा संगीत रस

चेहरे पर मैहर घराने का पांडित्य है। व्यक्तित्व में खांटी बनारसी रंग है तो संस्कारों में पश्चिम बंगाल की सोंधी महक है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 05:00 AM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 05:00 AM (IST)
वंशी की तान से झमाझम बरसा संगीत रस

जागरण संवाददाता, मेरठ: उनकी तानों में संगीत इतराता है। चेहरे पर मैहर घराने का पांडित्य है। व्यक्तित्व में खांटी बनारसी रंग है तो संस्कारों में पश्चिम बंगाल की सोंधी महक है। होठों पर बांसुरी ठहरते ही पंडित रोनू मजूमदार संगीत के सरोवर में डूबने लगते हैं। साधना इतनी गहरी कि वाद्य मानो गाने लगता है। संगीत के आकाश में स्वरों का आकार साकार हो उठाता है।

loksabha election banner

नट भैरव के साथ भोर का आगाज

स्पीक मैके भारतीय शास्त्रीय संगीत की विरासत को दशकों से संजो रहा है। इसी कड़ी में सोमवार को मेरठ में पंडित रोनू मजूमदार के दो कार्यक्रम आयोजित किए गए। भारत रत्न पंडित रविशंकर के शिष्य पंडित रोनू मजूमदार ने स्कूलों में आयोजित संगीत के कार्यक्रमों को अपने रंग में बहा लिया। छात्र-छात्राओं से अपने वादन के जरिए संवाद किया। भारतीय संगीत की गहराई और शुद्धता से वाकिफ कराया। पहली प्रस्तुति कैंट स्टेशन के पास स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल में की गई। सुबह आठ बजे से शुरू इस कार्यक्रम में उन्होंने राग नट भैरव से बांसुरी वादन का आगाज किया। सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति के इस राग के वादन में कोमल 'ध' का जादुई एहसास कराया। वादी और संवादी स्वरों पर शालीनता के साथ पहुंचते हुए रोनू मजूमदार ने बनारस के गंगा घाट पर संवरती एक सुबह का आकार खींच दिया। उनकी प्रस्तुति में भोर की सादगी, प्रकृति की अंगड़ाई और चिड़ियों की चहचहाने का भी बिंब उभरा। पश्चिमी संगीत की बहती हवा के बावजूद छात्रों ने पंडित मजूमदार की बांसुरी को बड़ी शिद्दत से सुना। इस दौरान लयकारी और अलापकारी का बेजोड़ संगम पेश किया। तबले और बांसुरी पर दो साथियों के साथ तपी हुई साधना से पूरा हाल झंकृत हो गया। स्कूल की प्रिंसिपल डा. रीटा गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

द अध्ययन में छेड़ा राग शुद्ध सारंग

शताब्दीनगर स्थित स्कूल द अध्ययन में बांसुरी की यादगार महफिल सजी। दुनिया का सबसे पुराना वाद्य आज भी जादुई असर रखता है। पंडित रोनू ने दोपहर करीब 12 बजे प्रस्तुति दी। छात्रों से वार्तालाप के दौरान उन्होंने सबसे पहले राग शुद्ध सारंग का परिचय दिया। एक गुरु की तरह राग के व्याकरण को सरल तरीके से पेश किया। दोपहर के वक्त गाया जाने वाला यह राग वातावरण में गर्मी बढ़ाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने तीन ताल और 16 मात्रा के साथ राग शुद्ध सारंग का वादन शुरू किया। धीरे-धीरे संगीत की चाल और लय तेज होने लगी। बीच-बीच में उन्होंने दु्रत लय के बीच से ठहराव का सफर भी तय किया। रेला बजाया तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तबले की थाप से बनारस घराने के महान वादक पंडित कुमार बोस की याद ताजा हो गई। इसके बाद पंडित रोनू ने देशभक्ति गीत सारे जहां से अच्छा की धुन बजाकर छात्रों को अपने साथ जोड़ा। अंत में एक भजन पेशकर बनारस की गलियों को याद किया। रघुपति राघव राजाराम की धुन के बीच उन्होंने बनारस की कजरी का फ्यूजन कर छात्रों को गदगद कर दिया। उन्होंने महान गायक महादेव प्रसाद को याद करते हुए कजरी का एक टुकड़ा बजाया। इसके बाद छात्रों ने बांसुरीवादन से लेकर शास्त्रीय संगीत के बारे में कई सवाल पूछे। द अध्ययन की प्राचार्या ने मेहमान कलाकर का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम संयोजिका सुचेता सहगल का विशेष योगदान रहा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.