रहीम की मस्जिद का रखवाला था राम का चाहने वाला, 300 साल पुरानी मस्जिद है मिसाल Muzaffarnagar News
हिन्दू-मुस्लिम एकता का इतिहास संजोय है काजीवाडा की जामा मस्जिद।300 साल पुरानी जामा मस्जिद आपसी सौहार्द की है मिसाल। आजादी से पूर्व हकीम कृष्ण शर्मा करते थे मस्जिद की देखभाल।
मुजफ्फरनगर, [दीपक राठी]। मैं मुस्लिम हूं, तू हिंदू है, पर हैं दोनों इंसान, ला तेरी गीता मैं पढ़ लूं, तू पढ़ ले मेरी कुरान। इन पंक्तियों में जितना देशभक्ति का जज्बा झलकता है, उतना ही आपसी सौहार्द का रिश्ता भी मजबूत जाहिर करता है। कस्बे के काजीवाड़ा स्थित जामा मस्जिद भी ऐसे ही आपसी एकता और भाईचारे की सदियों से गवाह है। यहां 'रहीम' (मुस्लिम) की मस्जिद का रखवाला 'राम' का चाहने वाला रहा है। ऐतिहासिक मस्जिद की नक्काशी और इसकी दरों-ओ-दीवार गंगा-जमुनी तहजीब समेटे हुए है।
300 साल पुराना है इतिहास
300 साल पुरानी है प्रसिद्ध जामा मस्जिद मुगलकाल में बनी बुढ़ाना के मोहल्ला काजीवाड़ा में स्थित जामा मस्जिद करीब 350 वर्ष पुरानी है। जिसके भीतर जाने का एक ही दरवाजा है। खास यह है कि इसकी 40-40 फीट की दो बड़ी मीनारे हैं। जिनकी नक्काशी इस तरह की गई है कि चारों तरफ से हवा आ सके। मस्जिद समिति के सचिव सभासद राशिद अजीम बताते हैं कि मस्जिद को करीब 350 साल पहले शेख अब्दुल दायम ने बनवाया था। उन्होंने बताया कि कुरान का उर्दू अनुवाद करने वाले मौलाना शाहवली उल्ला मोहद्दिस दहलवी के पुत्र शाह माेेहम्मद इसहाक का मजार भी मस्जिद में स्थापित है। आम दिनों में 500 नमाजी नमाज अदा कर सकते हैं। जबकि ईद, बकरीद और रमजान में अलविदा जुमे पर एक हजार नमाजी तक एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं। उस्मानी खानदान के वंशज कारी मुदस्सिर मस्जिद के इमाम हैं।
हकीम कृष्ण शर्मा रहे थे मस्जिद के प्रबंधक
जामा मस्जिद सदियों से अनोखा इतिहास समेटे हुए है। आजादी से पूर्व कस्बे के हकीम कृष्ण शर्मा ने मस्जिद की देखभाल की है। सभासद मुकेश शर्मा बताते हैं कि उनके दादा हकीम कृष्ण शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और कई वर्षों तक जामा मस्जिद के प्रबंधक रहे। उनके दादा ने वर्षों तक प्रबंधक के पद पर रहते हुए मस्जिद की देखरेख की और इस पर किसी मुस्लिम ने कभी कोई एतराज नहीं किया। ईद पर मुस्लिम समाज के लोग मस्जिद में नमाज अदा करने के बाद हिन्दू भाईयों से गले मिलते हुए घर आते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र थी मस्जिद
जानकर बताते हैं कि जंग-ए-आजादी में भी मस्जिद का अहम योगदान रहा है। क्रांतिकारियों के लिए लाल रुमाल आंदोलन का केंद्र भी रहा है। जिसे देखकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी।