jagran film festival : सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत हुए कादर खान, फिल्मों ने दिखाया आईना Meerut News
Jagran film festival के दूसरे दिन जोया व गर्ल्स हॉस्टल से लेकर बंकर चिंटू का बर्थ डे दी वॉल आपके आ जाने से और लेटर्स फिल्मों ने भी मनोरंजन के साथ-साथ संदेश दिया।
मेरठ, जेएनएन। जागरण फिल्म फेस्टिवल की फिल्में समाज को आईना दिखा रही हैं। शनिवार को प्रसारित ‘कुली नंबर-वन’ के माध्यम से मरहूम कादर खान दर्शकों के दिलों में जीवंत हो उठे। यह फिल्म उन्हें बतौर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जोया व गर्ल्स हॉस्टल से लेकर बंकर, चिंटू का बर्थ डे, दी वॉल, आपके आ जाने से और लेटर्स फिल्मों ने भी मनोरंजन के साथ-साथ एक संदेश दिया।
प्रभावशाली वे डॉयलाग
अपनी लाजवाब अभिनय शैली के माध्यम से कादर खान आज भी करोड़ों दिलों में जिंदा हैं। इसकी बानगी दैनिक जागरण के फिल्म फेस्टिवल में देखने को मिली। रजनीगंधा के सहयोग से आयोजित दैनिक जागरण के 10वें फिल्म फेस्टिवल में उनको श्रद्धांजलि देने के साथ उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक कुली नंबर-एक दिखाई गई। इसमें उनका ऐसा किरदार होता है जो हम सब में भी कहीं न कहीं छिपा है। धन-जायदाद से संपन्न होशियार चंद (कादर खान) दौलत को ही सब कुछ समझते हैं। वह अपने आपको सबसे होशियार समझते हैं। उनके डॉयलाग ‘मेरे जैसा होशियार आज तक पैदा ही नहीं हुआ’पर लोग मुस्कराए।
क्या कहती है कहानी
दरअसल, वह प्रतीक मात्र हैं। होशियार तो हम सब अपने को समझते हैं और हम सबकी इसी कहानी को लेकर यह फिल्म आगे बढ़ती है। उनके सिर्फ दो बेटियां हैं, जिनकी शादी वह ऐसे व्यक्ति के यहां करना चाहते हैं, जिसके यहां नौकरों का गांव हो और भी गाड़ी से आते हों। बड़े-बड़े बंगले हों। तीन हजार एकड़ में घर हो। जिस तरह से संपन्नता का ख्वाब बुनकर वह शादी राम घर जोड़े के जरिए कुली राजू करोड़पति समझकर बेटी की शादी कर देते हैं। वह कहते हैं देखी होशियार चंद की होशियारी? होशियारचंद तो नहीं समझ पाए पर दर्शक समझ गए कि होशियारचंद बेवकूफ बन गए हैं और उनकी इसी अक्ल पर दर्शक हंसते हैं। असल में दर्शक खुद पर भी हंस रहे होते हैं। उसी तरह से हम सब भी फंसते हैं। वह कहानी कुछ और हो सकती है, किरदार अलग हो सकते हैं।
कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा ने सराहा
इस मौके पर कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा ने कहा कि दैनिक जागरण के फिल्म फेस्टिवल में बड़ी संख्या में दर्शकों को देखकर लग रहा है कि आप सब जीवंतता से जिंदगी जी रहे हैं। यह भारतीय सिनेमा के लिए अच्छा है। जल हो या पर्यावरण या अन्य मुद्दे, सब पर जागरण ने सामाजिक दायित्व निभाया है। चारों तरफ अंधेरा था तब एक दीया निकला। धीरे-धीरे उस दीये का उजियारा दैनिक जागरण के रूप में फैला। मैं तो कहता हूं कि लोगों को समय निकालकर फिल्में देखनी चाहिए।
घंटों के भाषण पर भारी पड़ता है बस एक डायलॉग
कई घंटे का भाषण वह काम नहीं करता जो सिनेमा के संवाद व गीत कर देते हैं। कैफी आजमी ने लिखा था ..जब याद आए तो बहुत याद आए। कैफी आजमी ने गीतों को राष्ट्रभक्ति के साथ जोड़ा। यहां बहुत से वरिष्ठ नागरिक बैठे हैं। वरिष्ठ नागरिकों का अनुभव एक दिशा प्रदान करता है। युवाओं का साथ देश को मजबूत करता है। कादर खान की याद में फिल्म कुली नंबर-वन सबने देखी। मैंने भी आप सब के साथ देखी। यह फिल्म बताती है कि घर, दौलत की ईंटों से नहीं बनता है, घर प्यार की ईंटों से बनता है। मैं तो यही कहूंगा कि यह डॉयलाग लेकर घर जाएं। यह 100 मर्जो की दवा है।
गहरा असर डाल गईं जोया, दीवार और टैक्सी
एक अन्य फिल्म में एक जूलॉजिस्ट जो बाघिन की तलाश कर रहा होता है। जंगल की खाक छानता है, पर वह जब उसके जिंदा होने की तस्वीर दूरबीन से देखता है तो उसके चेहरे की खुशी ऐसी होती है मानो उसकी संतान मिल गई हो। वन्य प्राणियों के प्रति संरक्षण का संदेश देने के बाद गल्र्स हॉस्टल फिल्मायी गई। इसके बाद शाम के समय शॉर्ट फिल्मों का दौर चला। फिर आपके आ जाने से को मौका मिलता है। इसमें वायरल वीडियो को ढेरों व्यूज मिल जाने की जो खुशी को बयां किया गया। टैक्सी उस ख्याली पुलाव पकाने वाले को संदेश देती है जो टैक्सी में इसलिए घूमता है कि उसे एक दिन लड़की मिल जाएगी। टैक्सी का किराया चुकाने पर जब उसे एक लड़की नंबर देती है तो उसी पर एक संदेश यह भी होता है कि कॉल तब करना जब जेब में 10 हजार रुपये हों। फिल्म दीवार कश्मीर के उस सकारात्मक पक्ष को दिखाने की कोशिश करती है एक बच्चा उन दीवार के छेद को हर रोज सीमेंट से भर देता है जो गोलियों से छलनी होती रहती हैं।