एक दिन नहीं, पूरे साल चले आत्मरक्षा की क्लास, लगातार प्रशिक्षण के बिना छात्राओं को नहीं मिलता लाभ
मिशन शक्ति अभियान के अंतर्गत भी मेरठ के विभिन्न स्कूलों में मार्शल आट्र्स के इस्तेमाल से स्वयं को सुरक्षित रखने की जानकारी दी जा रही है लेकिन स्कूलों छात्राओं व अभिभावकों की चिंता यही है कि बिना प्रशिक्षण छात्राएं मनचलों का सामना किस तरह कर सकेंगी।
मेरठ, [अमित तिवारी]। बालिकाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए समय-समय पर स्कूल-कालेजों में प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। वर्तमान में प्रदेश सरकार की ओर से भी मिशन शक्ति के अंतर्गत हर जगह छात्राओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाया जा रहा है। लेकिन यह शिविर और इससे जुड़ी तमाम योजनाएं केवल कागजों पर ही सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं। हकीकत में अब तक हुए इन शिविरों का कोई लाभ उन्हें नहीं मिला है।
शिविर के बाद सीखे हुए तौर-तरीकों का एक एक भी दिन अभ्यास न करने के कारण शिविर का कोई लाभ नहीं मिल पाता है। मिशन शक्ति के अंतर्गत भी हर जिले के विभिन्न स्कूलों में मार्शल आट्र्स के इस्तेमाल से स्वयं को सुरक्षित रखने की जानकारी दी जा रही है, लेकिन स्कूलों, छात्राओं व अभिभावकों की चिंता यही है कि बिना प्रशिक्षण छात्राएं मनचलों का सामना किस तरह कर सकेंगी। किसी भी खेल से जुड़ी बालिकाएं काफी हद तक शारीरिक और मानसिक रूप से अपनी सुरक्षा के लिए सक्षम होती हैं लेकिन अन्य छात्राओं के लिए यह शिविर महज एक दिन का एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी मात्र बनकर रह जाता है।
फेल हो गई हर सप्ताह प्रशिक्षण की योजना
प्रदेश के सभी राजकीय व सहायता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ने वाली बालिकाओं को जूडो सिखाने के लिए कोच नियुक्त किए गए थे। वह सप्ताह में एक-दो दिन एक-एक स्कूल में निर्धारित समय पर जाकर छात्राओं को प्रशिक्षण दे रहे थे। उस योजना में भी हर सप्ताह प्रशिक्षण मिलने से छात्राओं ने निरंतर प्रशिक्षण शुरू कर दिया था। लेकिन वह योजना फेल हो गई और सभी जगह प्रशिक्षण बंद हो गए। स्कूलों में खेल प्रशिक्षक ही नहीं हैं तो जूडो या अन्य मार्शल आट्र्स प्रशिक्षक नियुक्त करने की कोई सोचता भी नहीं है। कुछ निजी स्कूलों ने अपने स्तर पर व्यवस्था की है जहां बालिकाएं भी प्रशिक्षण लेती हैं। इनके अलावा तमाम मार्शल आट्र्स के क्लबों और एकेडमीज में बालकों के साथ बालिकाएं भी प्रशिक्षण कर रही हैं। इनमें वुशू, ताइक्वांडो, बाक्सिंग, कराटे आदि मार्शल आट्र्स की विधाएं शामिल हैं।
ऐसे नहीं मिलता कोई लाभ
रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित जूडो प्रशिक्षक अंशु दलाल के अनुसार शारीरिक प्रशिक्षण के किसी भी खेल में एक-दो दिन या एकाध महीने के प्रशिक्षण से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मार्शल आट्र्स की विधाओं में शारीरिक मजबूती के साथ ही मानसिक तौर पर भी मजबूत होना पड़ता है जो निरंतर प्रशिक्षण से आता है। हमने भी स्कूलों में प्रशिक्षण दिए हैं लेकिन किसी स्कूल में दोबारा पहुंचने पर पिछला सिखाया किसी को याद नहीं रहता है। इसका सीखा कारण यह होता है कि छात्राएं महज चंद दिनों के शिविर में उस विधा से स्वयं को जोउ़ ही नहीं पाती हैं। मानसिक तौर पर बिना इन विधाओं से जुड़े शारीरिक तौर पर इसे अपना पाना कठिन होता है। शिविर में सिखाए गए गुर देखने को आकर्षक लगते हैं लेकिन जब उनके इस्ते्रमाल की बारी आती है तब आतमविश्वास डगमगा जाता है। ऐसा केवल प्रशिक्षण के अभाव में होता है।
सुविधा और प्रेरणा दोनों चाहिए
खालसा कन्या इंटर कालेज की प्रिंसिपल डा. मनु भारद्वाज के अनुसार आत्मरक्षा के गुर सिखाने की व्यवस्था होने पर ही छात्राओं को प्रेरित किया जा सकता है। अन्यथा उनकी भी रुचि समाप्त हो जाती है। शिविरों में छात्रों ने रुचि दिखाई लेकिन निरंतर प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं हो सकी। सेठ बीके माहेश्वरी बालिका इंटर कालेज की वरिष्ठ शिक्षिका अलका शर्मा के अनुसार बालिकाओं में सीखने की ललक बहुत है पर उन्हें वह माहौल व प्रशिक्षक नहीं मिल पाते हैं। स्कूलों में यह व्यवस्था होने पर कम खर्च में अधिक छात्राओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है। स्कूल के अलावा अभिभावक भी कम ही भेजना चाहते हैं।