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Independence Day 2022: स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगियों ने जला डाले थे नकुड़ के तीन गांव

Independence Day 2022 27 मई 1857 को सहारनपुर के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट राबर्टसन ने बोला था हमला। कारतूस पर गाय-सूअर की चर्बी की सूचना पर भारत के हिंदू-मुस्लिम हुए एक। मेरठ से शुरूआत हुई तो नकुड़ के कुछ गांव के लोगों ने मिलकर फिरंगियों को खुलकर चुनौती दे दी।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 06:50 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 06:50 PM (IST)
Independence Day 2022: स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगियों ने जला डाले थे नकुड़ के तीन गांव
मेरठ से क्रांति की शुरुआत हुई तो यह आग सहारनपुर पहुंची।

सहारनपुर, सर्वेंद्र पुंडीर। आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। देश 15 अगस्त को आजादी का तिरंगा फहराएगा। इस आजादी में सहारनपुर के क्रांतिकारियों का अहम योगदान रहा है। प्रथम स्वाधीनता संग्राम से ही सहारनपुर में आजादी का बिगुल बज गया था। 1857 में जब भारतीय सैनिकों को नए तरह के कारतूस दिए गए तो भारतीय सैनिकों को पता चला कि यह कारतूस चर्बी से बने हुए है। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और अंग्रेजों का खुलकर मुकाबला करना शुरू कर दिया। मेरठ से शुरूआत हुई तो नकुड़ के कुछ गांव के लोगों ने मिलकर फिरंगियों को खुलकर चुनौती दे दी। फिरंगियों ने नकुड़ के तीन गांव गोकुलपुर, फतेहपुर, सांपला को जला डाला। इसमें 50 से 60 वीरों ने अपनी जान गवाई थी।

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मेरठ से क्रांति की शुरुआत हुई तो यह आग सहारनपुर पहुंची
डा. केके शर्मा के द्वारा लिखी गई पुस्तक सहारनपुर संदर्भ के अनुसार, जिस समय मेरठ से 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई तो यह आग सहारनपुर तक पहुंची। 23 मई को सहारनपुर के हिंदू-मुस्लिम लोगों ने एकजुट होने के बाद नकुड़ क्षेत्र के थाने और तहसील को पूरी तरह से जला दिया था। जिसके बाद सहारनपुर के उस समय के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट राबर्टसन ने मेजर विलियम्स के साथ मिलकर नकुड़ क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने देखा कि जनता विद्रोह पर उतर आई है। इसलिए फिरंगियों ने 27 मई 1857 को गुजरों और रांघड़ों के गांवों को सबक सिखने के लिए अपने अफसरों के साथ एक बैठक की। बैठक करने के बाद अंग्रेज अफसरों ने कई दिन तक रणनीति बनाई। इसके बाद 20 जून को नकुड़ कस्बे पर हमला कर दिया। जिसमें यहां के सभी धर्म के लोगों ने डटकर अंग्रेजों का मुकाबला किया। उस समय यह पूरा कस्बा अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गया था।

अंग्रेजों की दी थी खुली चुनौती 

अंग्रेजों को यहां के लोगों ने खुली चुनौती दे दी थी। थाने और तहसील जलाने के बाद ग्रामीणों ने तय कर लिया था कि यदि कोई भी अंग्रेज अफसर गांव में शरण लेने के लिए आता है तो उसे मार दिया जाएगा। हालात यह बन गए थे कि सहारनपुर के अंग्रेज अफसरों ने अपनी महिलाएं और बच्चों को मसूरी भेज दिया था। ताकि वहां पर वह सुरक्षित रह सके। नकुड़ की जनता को विद्रोह करता देख राबर्टसन और मेजर विलियम्स ने सैनिकों के साथ नकुड़ के गांव बुकल (अब इसका नाम गोकुलपुर), फतेहपुर (अब इसका नाम फतेहपुर जट) और सांपला पर हमला कर दिया। तीनों गांवों को जला दिया गया, जो गांव में ग्रामीण बचे उन्हें बंदी बना लिया गया था, लेकिन ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी और फिरंगियों का अपने हथियारों से मुकाबला किया। हालांकि ग्रामीण आधुनिक हथियारों के आगे पीछे हट गए थे। बाद में 22 जून 1857 को अंग्रेजों को जब लगा कि अब सहारनपुर के वीर पीछे नहीं हटने वाले हैं तो बंदी बनाए गए ग्रामीणों को छोड़ना पड़ा था।

मिट गया था पूरा गांव बाबूपुर

नकुड़ क्षेत्र में ही बाबूपुर गांव भी पड़ता था, लेकिन इस समय इस गांव का कहीं पर कोई नामोनिशां नहीं है। हालांकि सहारनपुर संदर्भ नामक पुस्तक में इस गांव का नाम बाबूपुर दिया है, लेकिन हो सकता है बाद में इसका नाम बदलकर कुछ और कर दिया गया हो। अंग्रेजों ने बाबूपुर गांव को भी पूरी तरह से जला दिया था। 


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