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यहां दुनिया से रुख्सत होने के बाद उठती है 'बेटी की डोली'

एक परंपरा ऐसी भी, सैकड़ों साल पुरानी मान्यताओं के ताने-बाने में लिपटा है नट समाज। धूमधाम से बरात आती है, भोज होता है और तस्वीरों को दिलाते हैं फेरे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 May 2018 11:24 AM (IST)Updated: Fri, 18 May 2018 11:24 AM (IST)
यहां दुनिया से रुख्सत होने के बाद उठती है 'बेटी की डोली'
यहां दुनिया से रुख्सत होने के बाद उठती है 'बेटी की डोली'

मेरठ। मरने के बाद शादी! सुनने में यह बात भले ही अजीब-ओ-गरीब और कोरी कल्पना लगे लेकिन इसमें सौ फीसद सच्चाई है। यह परंपरा है नट समाज की, जिसमें मृत बच्चों की शादी की जाती है। धूमधाम से बरात आती है और भोज होता है। शादी की तमाम रस्मों के बाद विदाई आदि भी होती है। समाज के लोगों का विश्वास है कि ऐसा करने से मृत बच्चों की आत्मा को शांति और उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है।

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खरखौदा क्षेत्र के गांव उलधन की बस्ती मढैया में नट जाति के लोग रहते हैं। समुदाय की तमाम परंपराएं हैं, जिनका निर्वहन भी किया जाता है। बस्ती के लोगों ने बताया कि 17 वर्ष पूर्व राजबीर सिंह की बेटी रूपा और मुनेश की बेटी पायल का निधन हो गया था। उस समय दोनों बच्चियों की उम्र करीब पांच वर्ष थी। वहीं, दूसरी तरफ भावनुपर थानाक्षेत्र के गांव आलमपुर निवासी नट जाति के गोविंदा एवं अक्षय के पुत्र का भी निधन लगभग इसी उम्र में हो गया था।

समुदाय की परंपरा को निभाते हुए आलमपुर निवासी दोनों मृत बच्चों का विवाह उलधन की बस्ती मढैया निवासी मृत बच्चियों के साथ तय किया गया। बुधवार को दूल्हा पक्ष के लोग मृत बच्चों की तस्वीरों पर सेहरा लगाकर डीजे और ढोल नगाड़ों के साथ बरात लेकर पहुंचे थे। बरातियों के लिए भोज आदि की भी व्यवस्था थी। ऐसे हुए फेरे

बरात-चढ़त के बाद चार कलश चारों कोनों पर रखे गए। इन पर कलावा लपेटकर मंडप का रूप दिया गया। दूल्हा-दूल्हन की तस्वीरों के प्रतीकात्मक रूप से इसी घेरे के अंदर फेरे करा विवाह की रस्म संपन्न कराई गई। फेरों के बाद बरातियों को पगड़ी बांधी और भेंट देकर विदा किया। मंदिर में की पूजा-अर्चना

विदाई के बाद बस्ती के लोगों ने मंदिर में पूजा-अर्चना कर बच्चों की आत्मिक शांति के लिए भगवान से प्रार्थना की। सैकड़ों साल पुरानी परंपरा

लोगों ने बताया कि यूपी में नट जाति के सरपंच हापुड़ जनपद के गांव बधनौली निवासी चौधरी किशोर सिंह हैं। समुदाय के लोग पांच माह में एक बार गेहूं की कटाई के बाद सरपंच के आह्वान पर गढ़मुक्तेश्वर के पूठ गांव स्थित बाबा हुकम सिंह मंदिर पर पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं। लोगों का कहना है कि यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है। बचपन में किसी बच्चे की मौत हो जाती है तो उसके बालिग होने के समय उसकी शादी इसी तरह कराई जाती है। आज भी यह प्रथा जारी है। तेरह वर्ष पूर्व भी हुई थी शादी-

मढैया निवासी मनोज कुमार ने बताया कि 13 वर्ष पूर्व उसकी मृत बहन कविता की शादी भी इसी परंपरा के अनुसार की गई थी। उसकी बरात झड़ीना गांव से आई थी।


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