मुन्ना बजरंगी की हत्या से पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए सिरे से गैंगवार की आशंका
मुन्ना के कत्ल में सुनील राठी का नाम आने से माना जा रहा है कि अब उत्तर प्रदेश में गैंगवार की नए सिरे से पटकथा लिखी जा सकती है।
मेरठ [राजन शर्मा]। बागपत जेल में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी के कत्ल के बाद पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराधियों की मजबूत कड़ी टूट गई। दरअसल, मुन्ना बजरंगी प्रदेश के दोनों हल्कों के जरायमफरोशों के बीच पुल का काम करता था। उसने पश्चिम के शातिर संजीव जीवा व सुनील राठी से दोस्ती कर खास नेटवर्क खड़ा कर लिया था। एक दशक पूर्व बने इस आपराधिक गठजोड़ ने पश्चिम के माफिया सरगना सुशील मूंछ के वजूद को भी चुनौती दे रखी है। इसके चलते दोनों ओर से कई लाशें गिर चुकी हैं। मुन्ना के कत्ल में सुनील राठी का नाम आने से माना जा रहा है कि अब उत्तर प्रदेश में गैंगवार की नए सिरे से पटकथा लिखी जा सकती है।
कुख्यातों के इस समीकरण को समझने के लिए अपराध के बीते तीस साल के इतिहास को खंगालना पड़ेगा। बात अस्सी के दशक की है। माफिया सुशील मूंछ ने मुजफ्फरनगर जिले के मथेड़ी गांव से निकलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में अपना जाल फैला लिया था। उसने दीपक शर्मा, गिरीश बहुगुणा, अरुण शर्मा, बिल्लू और सुकरम पाल जैसे कई शॉर्प शूटरों का गैंग खड़ा कर लिया।
कत्लोगारत के अलावा तमाम सरकारी ठेकों में इनकी दखल आम हो गई। नब्बे के दशक में सतबीर गुर्जर और महेंद्र फौजी के बीच गैंगवार से पश्चिम की धरती हिल गई। इस दौरान राजबीर रमाला, रविंद्र भूरा, रविंद्र सोटा जैसे सतबीर के कई सिपहसालारों ने जमकर आग उगली। इन्होंने सुशील मूंछ के वर्चस्व को चुनौती देनी शुरू कर दी। कुछ माह पहले मुजफ्फरनगर में जीवा के खास सुशील उर्फ चीकू की हत्या में सुशील मूंछ का नाम सामने आया था।
सतबीर और महेंद्र गुर्जर के बीच गैंगवार के दौरान सुनील राठी के पिता की गांव की रंजिश के चलते हत्या कर दी गई। रविंद्र भूरा ने सतेंद्र बरवाला और सुनील राठी समेत कई नई लड़कों की खेप खड़ी कर दी।
दूसरी ओर अपराध जगत में उतरने के बाद संजीव जीवा ने अपराध का ककहरा हाईप्रोफाइल अपराधी रविप्रकाश से सीखा। रवि के माध्यम से ही उसने पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी गैंग तक अपनी पैठ बना ली। यहीं पर वह मुन्ना बजरंगी के संपर्क में आया। कृष्णानंद राय व ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद ये सभी पूर्वी उत्तर प्रदेश में सनसनी बन गए। बताया जाता है कि संजीव जीवा की मार्फत सुनील राठी का भी मुन्ना बजरंगी से संपर्क हो गया।
मुन्ना बजरंगी, सुनील राठी और संजीव जीवा की तिकड़ी ने सुशील मूंछ के वर्चस्व को खुली चुनौती दी। बताते हैं कि मूंछ के कत्ल की फिराक में मुन्ना बजरंगी कई बार आया, लेकिन सुशील मूंछ हर बार बच गया।अब मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद अपराधियों के बीच क्या समीकरण बनते हैं। यह भविष्य के गर्भ में है। बहरहाल नए सिरे से गैंगवार की आशंका गहराने लगी है।
हत्या से गैंगवार की आशंका
वाराणसी : अपराध की उम्र लंबी नहीं होती। अपराधी की चलाई गोली एक न एक दिन लौटकर आती जरूर है। तीन दशक से आतंक का पर्याय बने बजरंगी की हत्या के बाद पूर्वांचल से आतंक का एक और अध्याय समाप्त हो गया। बनारस से लेकर पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में मुन्ना बजरंगी ने एके-47 से बस्र्ट फायर कर कई लोगों को मौत के घाट उतारा था।
मुन्ना बजरंगी की सुबह बागपत की जेल में हत्या के कुछ देर बाद ही लखनऊ से लेकर वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ तक मोबाइल फोन की घंटियां घनघनाने लगी। माफिया से लेकर जरायम की दुनिया से जुड़े हर शख्स मोबाइल और टीवी पर चिपक गए कि मौत को कई बार चकमा दे चुका डान कैसे मारा गया।
बजरंगी की हत्या से पूर्वांचल की जरायम की दुनिया में हड़कंप मच गया। जेल के भीतर बजरंगी की हत्या की बात सामने आते ही वाराणसी की सेंट्रल जेल में बंद चर्चित एमएलसी बृजेश सिंह के साथ ही पश्चिम की जेल में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की सुरक्षा बढ़ा दी गई। गैंगवार की आशंका पर पूर्वांचल के कई बाहुबली अंडरग्राउंड हो गए हैं।
उधर, कारोबार, चिकित्सा व कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने राहत की सांस ली। वाराणसी के एक दर्जन से अधिक चिकित्सक बजरंगी गिरोह को हर महीने गुंडा टैक्स देते थे। कारोबारियों से खासी वसूली होती थी। बिल्डरों से बजरंगी गिरोह का इन दिनों खासा जुड़ाव था। बजरंगी के गुर्गे विवादित जमीनों पर कब्जा करते और सस्ती कीमत पर बिल्डरों को जमीन उपलब्ध कराते। अपार्टमेंट तैयार होने के बाद कुछ फ्लैट बजरंगी के खाते में आ जाते थे।