फिर चहचहाएगी पहाड़ी बया, हस्तिनापुर में बनेगा पहला प्रजनन केंद्र
विश्व में अपनी तरह का पहला प्रजनन केंद्र बनेगा। उत्तर प्रदेश वन विभाग ने बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को 25 लाख रुपये का प्रोजेक्ट दिया।
मेरठ, [अमित तिवारी]। झुंड में रहने वाली पहाड़ी बया कभी अनाज से लहलहाते खेतों में उड़ती नजर आती थी। खादर क्षेत्रों में बसने वाली यह पक्षी अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और घोंसला बुनने के कौशल के लिए पहचानी जाता है। भारत में चार तरह की बया पाई जाती है, जिनमें से फिन्न वीवर (पहाड़ी बया) लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। इसे बचाने और संरक्षित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग की ओर से हस्तिनापुर में विश्व का पहला पहाड़ी बया प्रजनन केंद्र बनाया जा रहा है। यह जिम्मेदारी बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) को दी गई है। सोसायटी ने हस्तिनापुर में पाई जाने वाली बया की अन्य तीनों प्रजातियों पर सर्वे भी शुरू कर दिया है।
हस्तिनापुर रहा है इनका घर
हस्तिनापुर के खादर चारों तरह की बया का घर हुआ करते थे। यहां एक समय बड़ी संख्या में मौजूद फिन्न वीवर साल 1979 के बाद नजर नहीं आई। धीरे-धीरे इनकी संख्या तेजी से कम होती गई। इसे संरक्षित करने के लिए वन विभाग की ओर से हस्तिनापुर में फॉरेस्ट ट्रेनिंग सेंटर के निकट प्रजनन केंद्र बनाने का स्थान चिन्हित कर लिया गया है। यहां बया की अन्य तीनों प्रजातियों के साथ ही पहाड़ी बया को भी रखा जाएगा जहां इनकी संरक्षित प्रजनन होगी। अन्य तीन प्रजातियां बया वीवर (देशी बया), स्ट्रीक्ड वीवर (जालीदार बया) और ब्लैक ब्रेस्टेड वीवर (मोमिया चोंच की बया) है।
बेहद कम दिखाई दी पहाड़ी बया
दुनिया भर में पहाड़ी बया केवल भारत और एक-दो जगहों पर नेपाल में पाई जाती है। बीएनएचएस के अनुसार उत्तर भारत में पिछले 15 सालों में पहाड़ी बया की जनसंख्या में 84.1 से 95.8 फीसद की गिरावट आई है। साल 2001 में बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने 1866 से 2000 तक के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर देश में पहाड़ी बया के 17 लोकेशन बताए थे। बीएनएचएस की स्टडी में देश में पहाड़ी बया के 47 लोकेशन मिले। इनमें से साल 2012 से 2017 के दौरान हुए पांच सर्वे में अब केवल नौ जगहों पर ही पहाड़ी बया है। साल 2016-17 के दौरान हुए सर्व में नौ में से तीन नए जगह चिन्हित किए गए हैं। इनमें दो पश्चिम उत्तर प्रदेश के हरेवली बांध और भगवानपुर रेनी हैं।
कौवों ने उजाड़े घोंसले
अन्य चिड़िया जहां अब अपने घोंसले छिपाकर बनाती हैं वहीं पहाड़ी बया अपने घोसले पेड़ों पर खुले में बनाती है। इसके अंडे कौवे खा जाते हैं। छोटी पक्षी होने के कारण यह अपना बचाव भी नहीं कर पाती है। यह ज्यादातर अपने घोंसले सेमुल के पेड़ों पर बनाती है। कौवों के अंडे खाने और इन पेड़ों की संख्या कम होने के कारण ही पहाड़ी बया प्रायं लुप्त प्रजाति बन गई है।
दिया 25 लाख का प्रोजेक्ट
हस्तिनापुर वाइल्डलाइफ सैंचुअरी में पहाड़ी बया को संरक्षित प्रजनन केंद्र बनाने का प्रोजेक्ट बीएनएचएस ने तैयार किया था। मुख्य वन संरक्षक मेरठ सर्किल ललित वर्मा की अगुवाई में वरिष्ठ पक्षी वैज्ञानिक डा. रजत भार्गव द्वारा तैयार प्रोजेक्ट को प्रधान मुख्य वन संरक्षक पवन कुमार ने स्वीकृत करते हुए 25 लाख रुपये आवंटित कर दिए हैं।
इन्होंने कहा
पहाड़ी बया का प्रजनन केंद्र बनाने के लिए फॉरेस्ट ट्रेनिंग सेंटर के निकट स्थान चिन्हित किया गया है। यहां पर कार्य शुरू करने के लिए अनुमति पत्र शासन को भेजा गया है। इस महीने के अंत तक अनुमति मिलने की उम्मीद है। अनुमति मिलते ही प्रजनन केंद्र के लिए आगे का काम शुरू होगा।
- ललित वर्मा, मुख्य वन संरक्षक, मेरठ सर्किल
कौवों द्वारा पहाड़ी बया के अंडे खत्म करने के कारण लुप्त होती इस प्रजाति को बचाने का एक मात्र उपाय इनका संरक्षित प्रजनन करना ही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिले इनके नए ठिकानों के आस-पास इनका प्रजनन केंद्र बनाए जाने से आने वाले दिनों में इस प्रजाति को एक बार फिर बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- डा. रजत भार्गव, वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी व प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर, बीएनएचएस